Thursday , October 31 2024
Home / MainSlide / सोनिया-मायावती के बीच बनती केमेस्ट्री भाजपा की मुसीबत – अरुण पटेल

सोनिया-मायावती के बीच बनती केमेस्ट्री भाजपा की मुसीबत – अरुण पटेल

अरूण पटेल

बेंगलूरु में जनतादल-एस और कांग्रेस की मिलीजुली सरकार के मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री के शपथग्रहण समारोह में विपक्षी दलों ने जिस एकता का प्रदर्शन किया उसके अखिल भारतीय स्तर पर 2019 के लोकसभा चुनाव को लेकर अर्थ निकाले जा रहे हैं। शपथग्रहण समारोह के मंच पर यूपीए की चेयरपर्सन सोनिया गांधी और बसपा सुप्रीमो मायावती के बीच जो नई केमेस्ट्री बनती नजर आयी है उसने कम से कम मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के विधानसभा चुनावों में भाजपा की मुसीबतें बढ़ाने की आधारभूमि तैयार कर दी है। सोनिया, मायावती और ममता बनर्जी सहित अन्य नेताओं के बीच जो नजदीकियां बढ़ रही हैं उसके असर का नतीजा तो लोकसभा चुनाव में ही पता चलेगा। कांग्रेस और बसपा की नजदीकियां 2018 के विधानसभा चुनावों में गुल खिला भी सकती हैं बशर्ते कि यह केमेस्ट्री चुनावों तक बनी रहे। सोनिया और मायावती का नजदीक आना और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के छत्तीसगढ़ प्रवास के दौरान गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के मुखिया हीरासिंह मरकाम का मंच पर नजर आना कांग्रेस के लिए अजीत जोगी ने अपनी पार्टी बनाकर जो चुनौती देने की कोशिश की है उसे न्यूनतम करने में एक बड़ी सीमा तक मददगार साबित होगा।

जहां तक मध्यप्रदेश का सवाल है मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और भाजपा की चुनौती से निपटने के लिए कांग्रेस ने प्रदेश अध्यक्ष के रूप में कमलनाथ और चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष के रूप में ज्योतिरादित्य सिंधिया की ताजपोशी पहले ही कर दी थी। कांग्रेस इन दिनों जो भी कदम उठा रही है उसका एकमात्र मकसद डेढ़ दशक से चला आ रहा राजनीतिक वनवास समाप्त कर प्रदेश के सत्ताशीर्ष पर काबिज होना है। हालांकि यह उतना आसान नहीं है जितना कि कांग्रेस समझ रही है, इसके लिए अभी कांग्रेस को बहुत कुछ करना बाकी है। जिस एकजुटता का वह परिचय दे रही है वह कितना पुख्ता है इसका आभास आने वाले तीन-चार माह में लग सकेगा। जबसे कमलनाथ ने प्रदेश की बागडोर संभाली है सबको साथ लेकर चलने की राजनीति कर रहे हैं और चुनाव की दृष्टि से कांग्रेस ने जितनी कमेटियां बनाई हैं उनमें इस बात का ध्यान रखा गया है कि वे पूरी तरह से समन्वयकारी चेहरा लिए हुए हों। भाजपा से मुकाबले के लिए कांग्रेस ने जहां उम्रदराज लोगों के अनुभव का फायदा लिया है तो वहीं युवा जोश को भी पूरी तवज्जो दी है। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह एक अनुभवी राजनेता हैं और उनसे अधिक किसी को भी इस बात की जानकारी नहीं है कि कहां कौन मजबूत कांग्रेस का नेता व कार्यकर्ता है और कौन घर में बैठ गया है या अपने को उपेक्षित महसूस कर रहा है। इस समय कांग्रेस में सबसे अधिक जरूरत आपसी समन्वय की है और समन्वय समिति का अध्यक्ष दिग्विजय सिंह को बनाया गया है।

दिग्विजय सिंह ने बिना कोई देरी किए समन्वय समिति की पहली बैठक कर ली है और नर्मदा परिक्रमा के बाद धार्मिक, आध्यात्मिक और राजनैतिक शक्ति से लैस होकर एक प्रकार से उन्होंने स्वयं को नये सिरे से चार्ज कर लिया है। अब वे अपनी नई भूमिका के लिए पूरी तरह तैयार हैं तथा दायित्व मिलने के तत्काल बाद समन्वय समिति की बैठक कर यह घोषित कर दिया कि 31 मई को एकता बैठकों की श्ाुरुआत होगी। यह श्ाुरुआत टीकमगढ़ जिले के ओरछा स्थित रामराजा दरबार में पूजा-अर्चना व आशीर्वाद लेने के साथ ही प्रारंभ होगी। बैठकों में पूरी पारदर्शिता रहेगी और जो भी चर्चाएं होंगी उसकी पूरी वीडियोग्राफी भी कराये जाने की संभावना है ताकि उसको तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत न किया जा सके। 31 अगस्त तक पूरे जिलों का समिति दौरा कर लेगी और सभी सदस्य साथ रहेंगे। दिग्विजय ने पहली बैठक में ही साफ कर दिया है कि समिति का कोई भी सदस्य न तो टिकट मांगेगा न ही चुनाव लड़ेगा और जिसे चुनाव लड़ना है वह समिति से हट जाये। यह समिति जिलों में जाकर रूठे हुए नेता व कार्यकर्ताओं को मनाने का काम करेगी और उन्हें एकजुट होकर पार्टी की मूलधारा में फिर से सक्रिय करने में उत्प्रेरक की भूमिका अदा करेगी। लेकिन न तो टिकटों के लिए समिति कोई आवेदन लेगी और न कोई चर्चा करेगी। पहली बैठक में जब भोपाल की पूर्व महापौर विभा पटेल ने कहा कि मुझे चुनाव लड़ना है तब दिग्विजय ने फौरन कह दिया कि फिर आप पद छोड़ो। इसके बाद विभा भी चुप हो गयीं और अन्य सदस्य भी कुछ नहीं बोल पाये।

दिग्विजय एक प्रकार से अपने पुराने चिर-परिचित अंदाज में लौट आये हैं और अब वे प्रदेश की कांग्रेस राजनीति में सभी लोगों को जोड़ने की राजनीति की धुरी बनने जा रहे हैं। दिग्विजय पूरी तरह आत्म-विश्‍वास से लबरेज हैं और उन्हें पूरा यकीन है कि वे कांग्रेसजनों को एकजुट करने में सफल रहेंगे। बैठक के बाद जब वे मीडिया से रूबरू हुए और उनसे यह पूछा गया कि आपकी तमाम कोशिशों के बाद भी यदि कांग्रेस की सरकार नहीं बनी तो समन्वय न होने की बात के आधार पर हार का जिम्मा आप पर भी आयेगा। इस पर उन्होंने तुरन्त अपने पुराने अंदाज में कह दिया कि आप यह प्रश्‍न कर रहे हैं इसका मतलब है कि आप दिग्विजय सिंह को नहीं जानते। दिग्विजय में जो आत्मविश्‍वास और पुराना अंदाज वापस लौटा है उसका इंतजार लम्बे समय से कांग्रेसजनों को था। लगता है अब दिग्विजय सिंह बदल गए हैं और ऐसी कोई बात कहने से परहेज करेंगे जिससे बात का बतंगड़ बने। पूर्व मंत्री सलमान खुर्शीद के संबंध में जब सवाल सामने आया तो बड़ी ही चतुराई से दिग्विजय यह कहते हुए बच निकले कि आप उन्हीं से पूछिए कि उन्होंने क्या कहा है मुझसे क्यों पूछ रहे हो। चूंकि दिग्विजय सबसे अनुभवी हैं और प्रदेश को भलीभांति जानते हैं इसलिए समन्वयकारी भूमिका में वे कांग्रेस को एकजुट करने वाले कमांडर के रूप में सामने आ रहे हैं। उनकी जो बैठकें होंगी उसके बाद उसमें उपस्थित सभी लोगों के लिए सामूहिक भोज पंगत की तर्ज पर होगा, इसीलिए इसे ‘पंगत में संगत’ नाम दिया जा रहा है, सब एक साथ बैठ कर भोजन करेंगे। दिग्विजय के कथन से एक बात साफ होती है कि यह समिति सभी कार्यकर्ताओं को उनके मन की बात कहने का पूरा अवसर देगी और उनके गिले-शिकवे दूर कर न केवल आपस में हाथ मिलवाने की औपचारिकता निभायेगी बल्कि उनके दिल भी मिलें, ऐसा हरसंभव प्रयास करेगी।

राहुल गांधी ने 2018 के विधानसभा चुनाव के लिए जो विभिन्न समितियां गठित की हैं उनमें बुजुर्ग नेता से लेकर युवाओं तक को शामिल किया गया है। यदि कमलनाथ, दिग्विजय सिंह और हजारीलाल रघुवंशी तथा सुरेश पचौरी जैसे अनुभवी नेताओं को जिम्मेदारियां दी गयी हैं तो वहीं ज्योतिरादित्य सिंधिया और कार्यकारी अध्यक्षों के रूप में युवा चेहरों को भी महत्व दिया गया है। समिति के सदस्यों में भी अनुभवी और युवा दोनों प्रकार के लोगों को रखा गया है। सुरेश पचौरी को योजना और रणनीति समिति, राजेंद्र सिंह को चुनाव घोषणापत्र समिति तथा अनुशासन समिति में हजारीलाल रघुवंशी को अध्यक्ष बनाया गया है। इस प्रकार राहुल गांधी ने यह भी बताने की कोशिश की है कि कांग्रेस में सबसे बुजुर्ग व्यक्ति से लेकर युवा वर्ग तक को पूरा महत्व दिया जाता है। इन दिनों कांग्रेस में घर-वापसी का दौर चल रहा है लेकिन ऐसा करते समय कुछ सतर्कता बरतना जरूरी है और यह भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि कौन किस कारण से पार्टी से हटा था या हटाया गया था। किसी को लेना जरूरी हो तो उस अंचल के वरिष्ठ कांग्रेस नेता को भी विश्‍वास में ले लिया जाए ताकि ऐसी स्थिति निर्मित न हो जैसी राजेंद्र गौतम को लेने से मंदसौर जिले में पैदा हुई।

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने कहा है कि कांग्रेस केवल जिताऊ उम्मीदवार को ही टिकट देगी। धरना, प्रदर्शन करने और नेताओं के कोटे से टिकट कतई नहीं मिलेगा। उसे ही टिकट दिया जायेगा जो मजबूत होगा। कमलनाथ ने जो कहा है यही कांग्रेस की असली समस्या है, अभी तक यही होता आया है और यही कांग्रेस की कमजोर कड़ी रही है। देखने की बात यही होगी कि उन्होंने जो कहा है उस पर टिकट बांटते समय कितना अमल होता है।

 

 

सम्प्रति-लेखक श्री अरूण पटेल अमृत संदेश रायपुर के कार्यकारी सम्पादक एवं भोपाल के दैनिक सुबह सबेरे के प्रबन्ध सम्पादक है।