मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ भले ही अब दो अलग-अलग राज्य हो गए हों लेकिन दोनों की राजनीतिक तासीर लगभग एक जैसी ही है। उनमें खास अन्तर इसलिए नहीं आया है क्योंकि दोनों ही जगह निर्णायक भूमिका में लगभग वे ही चेहरे सामने हैं जिन्होंने अविभाजित मध्यप्रदेश से अपनी राजनीति शुरू की थी। सबका साथ और सबका विकास का नारा देने वाली भारतीय जनता पार्टी को अब 2018 का विधानसभा चुनाव जीतने के लिए तांत्रिकों और साधुओं का सहारा लेना पड़ रहा है तो वहीं दूसरी ओर डेढ़ दशक से सत्ता से वनवास भोग रही कांग्रेस अपनी चुनावी वैतरणी पार करने के लिए एक प्रकार से बहुजन समाज पार्टी से तालमेल की कोशिश कर रही है।इस प्रकार कुल मिलाकर कहा जाए तो भाजपा तांत्रिकों और साधुओं के भरोसे है तो कांग्रेस बसपा के सहारे अपनी चुनावी वैतरणी पार करना चाहती है।
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ.रमन सिंह ने विधानसभा में तांत्रिक का सहारा लिया तो मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कुछ साधुओं को राज्यमंत्री का दर्जा देने के बाद अब साधुओं के सहारे अपनी उन योजनाओं को जो कि सामाजिक सरोकारों से जुड़ी हैं और विकास के जो कीर्तिमान उनकी सरकार के द्वारा गढ़ने का दावा किया जा रहा है उन्हें जन-जन तक पहुंचाने के लिए साधुओं की मंडली का सहारा लेने वाले हैं। बहुजन समाज पार्टी की भले ही दोनों राज्यों में ऐसी हैसियत न हो कि उसकी मुट्ठी में सत्ता की चाबी बंद हो जाए लेकिन इतनी शक्ति अवश्य उसके हाथ में है कि यदि वह कांग्रेस से तालमेल कर लेती है तो फिर भाजपा की राह अपेक्षाकृत अधिक कांटों भरी हो जाएगी।
छत्तीसगढ़ में वैसे ही अंधविश्वास की जड़ें कई अंचलों में गहरे तक बैठी हुई हैं और वहां एक तांत्रिक बाबा ने दावा कर दिया है कि तंत्र-मंत्र के द्वारा अदृश्य शक्तियों से उसने विधानसभा को बांध दिया है इसलिए फिर बनेगी रमन की प्रदेश में चौथी बार सरकार। विधानसभा के मानसून सत्र के दौरान दर्शक दीर्घा का पास लेकर पहुंचे एक बाबा ने जब चौथी बार सरकार बनने का दावा किया तो इससे वहां की राजनीति में थोड़ा-बहुत उबाल आना स्वाभाविक था जो दिखाई भी पड़ा। सत्र के दौरान पहुंचे बाबा छत्तीसगढ़ के एक शक्तिशाली राजनेता और रमन सिंह सरकार के वरिष्ठतम मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के साथ भी नजर आये। चूंकि यह विधान सभा परिसर का मामला था इसलिए सत्तापक्ष एवं विपक्ष के विधायकों के बीच तीखी नोकझोंक भी हो गयी। हालांकि संसदीय कार्यमंत्री अजय चंद्राकर ने विवाद को शान्त करने का प्रयास करते हुए कहा कि बाबा की विचारधारा भाजपा से मिलती है इसलिए वह विधानसभा में पहुंचे थे, लगातार तीसरी बार भाजपा की सरकार किसी बाबा के नहीं जनता के विश्वास से बनी थी और आगे भी बनी रहेगी। एक तरफ सदन के अंदर विधानसभा की कार्यवाही चल रही थी तो वहीं दूसरी ओर सदन के बाहर सिर पर जटा, लाल रंग से रंगा बाबा का माथा, टीके के साथ भभूत, हाथों में हर उंगली में अंगूठियां पहने बाबा चहलकदमी कर रहे थे। चौथी बार राज्य में भाजपा की सरकार बनने का दावा करते हुए बाबा ने कहा कि मैंने विधानसभा को बांध दिया है और अब अमरनाथ जाकर ही अपनी जटा को खोलूंगा।
बाबा का असली नाम रामलाल कश्यप है और मूल रूप से वे जांजगीर जिले के पामगढ़ के पास मुलमुला निवासी हैं। उनका दावा है कि वे 20 साल से तंत्र-मंत्र कर रहे हैं। बाबा ने यह भी बताया कि वे जांजगीर चांपा के भाजपा युवा मंडल अध्यक्ष हैं। तांत्रिक बाबा जमाने के साथ चल रहे हैं और वे डिजीटल भी हैं, उनका ट्वीटर एकाउंट है, अपने प्रोफाइल में मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के साथ वाली तस्वीर भी लगाई है। विधानसभा परिसर में बाबा का स्वागत मंत्रियों व भाजपा विधायकों ने किया और उनके साथ फोटो खिंचवाने में भी दिलचस्पी दिखाई। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल ने निशाना साधा कि सरकार को जनता पर भरोसा नहीं है अब वह बाबाओं के सहारे चुनाव जीतने की तैयारी में है। इसके जवाब में ब्रजमोहन अग्रवाल ने कहा कि भाजपा को किसी के सहारे की जरूरत नहीं है, जनता का विश्वास पहले से ही है और विधानसभा में 90 बाबा (विधायक) पहले से ही मौजूद हैं। जब सदन के अंदर कांग्रेस विधायक बृहस्पति सिंह ने सवाल उठाते हुए जानना चाहा कि विधानसभा में एक बाबा घूम रहे हैं आखिर यह हैं कौन, इसका पता लगाया जाना चाहिए। विधानसभा अध्यक्ष गौरीशंकर अग्रवाल ने एतराज करते हुए कहा कि इस तरह के सवाल नहीं पूछना चाहिए, वे व्यक्तिगत तौर पर बाबा को जानते हैं, बाबा एक सज्जन व्यक्ति हैं और मैंने उनके साथ फोटो भी खिंचवाई है। कारण चाहे जो बताया जाए लेकिन एक बात दिन के उजाले की तरह साफ है कि राजनेता चाहे किसी पक्ष के हों, साधु-संन्यासियों, महामंडलेश्वरों, जगद्गुरुओं, बाबाओं और तांत्रिकों के फेर में उलझे रहते हैं। इन्हें जनता से ज्यादा भरोसा इन लोगों पर रहता है जिसका कारण शायद यह है कि हमने बाबाओं को साध लिया तो उनके भोले-भाले अंध भक्त वोटों से हमारी झोली भर देंगे।
मध्यप्रदेश में बाबाओं को राज्यमंत्री का दर्जा देकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अब बाबाओं, पुजारियों को साधने के लिए 15 जुलाई से 15 अगस्त के बीच एक समागम करने वाले हैं जिसमें शिवराज के फोटो वाली एक किट भी होगी। इस प्रकार चुनावी साल में भाजपा सरकार ने प्रदेश के बाबाओं और पुजारियों को खुश कर साधने की तैयारी कर ली है। शिवराज एक चतुरसुजान राजनेता हैं और वे यह बात भलीभांति जानते हैं कि गांव-गांव में मंदिर हैं, जहां पुजारियों के साथ बाबा अपना डेरा जमाये रहते हैं और ग्रामीण अंचल में समाज में इन्हें अच्छा-खासा सम्मान भी मिलता है। उनके द्वारा जो बात कही जायेगी वह बाकी प्रचार की तुलना में भोले-भाले श्रद्धालुओं पर कुछ अधिक असर करेगी। देखने की बात यही होगी कि शिवराज की इस पहल की कांग्रेस क्या काट खोजकर लाती है क्योंकि उसे भी अपना आधार ग्रामीण अंचलों में बढ़ाना है। प्रदेश के धर्मस्व विभाग की ओर से मुख्यमंत्री निवास पर संत समागम की तैयारियां चल रही हैं। 15 जुलाई से 15 अगस्त के बीच मुख्यमंत्री की सुविधा के हिसाब से कोई तिथि तय की जाएगी। इस समागम में हर जिले से पचास बाबा और पुजारियों को बुलाया जा रहा है। समागम में शिवराज इनके हित में भी घोषणाओं की झड़ी लगाकर पहले उनका और बाद में उनके माध्यम से उनके भक्तों का दिल जीतने की कोशिश करेंगे। मध्यप्रदेश में इस समय लगभग 50 हजार छोटे-बड़े मंदिर हैं जिनमें से 22 हजार मंदिर पंजीकृत हैं। संत समागम के बाद यह प्रक्रिया निरन्तर जारी रहे और माहौल बना रहे इसलिए सात जगहों पर पुजारियों का प्रशिक्षण शिविर भी लगाया जाएगा जिसमें आसपास के जिलों के मंदिरों के पुजारी शामिल होंगे। उम्मीद की जाना चाहिए कि लम्बे समय से साधु-संतों की कुछ मांगें हैं और हो सकता है कि उनमें से कुछ को सरकार पूरा करने का ऐलान कर दे।
और यह भी सवाल यह है कि भाजपा के बाद अब कांग्रेस किसके सहारे अपनी चुनावी संभावनाओं को चमकीला बनायेगी। ऐसा समझा जाता है कि बहुजन समाज पार्टी से अंदरखाने समझौते की बात काफी आगे बढ़ गयी है और विधानसभा चुनाव में उससे समझौता हो जायेगा। इस समय दलित वर्ग में प्रदेश की कम केन्द्र सरकार की कुछ नीतियों व पहल में देरी के कारण भाजपा के प्रति समूचे देश में जो असंतोष है उससे मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ भी अछूते नहीं हैं। कांग्रेस का यदि मध्यप्रदेश में बहुजन समाज पार्टी से समझौता हो जाता है तो इससे उत्तरप्रदेश से लगे इलाकों में राजनीतिक परिदृश्य एक प्रकार से बदल जायेगा जिसका फायदा कांग्रेस को मिलेगा। अन्य स्थानों में भी दलित वर्ग का वोट कांग्रेस की ओर मोड़ने में भी यह समझौता कारगर साबित हो सकता है। मध्यप्रदेश में तो कोई बड़ी रुकावट नहीं है लेकिन छत्तीसगढ़ में समझौता होगा या नहीं यह अभी स्पष्ट नहीं है क्योंकि वहां अजीत जोगी कि पार्टी भी मायावती से हाथ मिलाने की अंदरखाने कोशिश में लगी है। यह चुनाव परिणामों से ही पता चल सकेगा कि तंत्र-मंत्र तांत्रिक और साधु भाजपा को कितना सहारा दे पाते हैं और मायावती कांग्रेस को कितनी ताकत दे पाती हैं।
सम्प्रति-लेखक श्री अरूण पटेल अमृत संदेश रायपुर के कार्यकारी सम्पादक एवं भोपाल के दैनिक सुबह सबेरे के प्रबन्ध सम्पादक है।