रायपुर 10 मार्च।छत्तीसगढ़ विधानसभा में आसंदी के सम्मान की कई बार अनदेखी किए जाने के बाद सत्र के समापन पर विधानसभा अध्यक्ष डा.चरणदास महंत से भाजपा सदस्यों ने उनके आवास पर शिष्टाचार मुलाकात में उनके प्रति सम्मान जताकर पूरे घटनाक्रम को ठंडा करने की कोशिश की है।
अध्यक्ष डा.महंत ने भाजपा सदस्यों की इस कवायद के बारे में यूनीवार्ता के पूछे जाने पर टिप्पणी से यह कहते हुए इंकार कर दिया कि वह समापन भाषण में सदन में अपनी बात रख चुके है।वहीं संसदीय एवं राजनीतिक जानकार भाजपा सदस्यों की इस कवायद को अच्छा कदम मान रहे है।उनका मानना है कि छत्तीसगढ़ विधानसभा में आसंदी के प्रति बहुत ही सम्मान की परम्परा रही है।वैसे भी डा.महंत बहुत ही अऩुभवी एवं सुलझे संसदीय जानकार है और प्रचंड बहुमत वाला सत्ता पक्ष होने के बाद भी वह सदन में संख्या बल में कमजोर विपक्ष को पूरा तरजीह देते है।
विपक्ष के नेता धरमलाल कौशिक के नेतृत्व में भाजपा विधायकों ने कल देर शाम अध्यक्ष डा.महंत के आवास पर पहुंचे और शिष्टाचार मुलाकात की।इस दौरान कोरबा की सांसद एवं अध्यक्ष की धर्मपत्नी ज्योत्सना महंत भी थी।मुलाकात करने वालों में वरिष्ठ विधायक नेता बृजमोहन अग्रवाल भी शामिल थे,जिन्होने पिछले तीन चार दिनों में आंसदी के निर्णय पर सवाल उठाए थे।इस सत्र में पहली बार आसंदी के प्रति सम्मान की कई बार अनदेखी के मौके भी आए।
छत्तीसगढ़ विधानसभा में पूर्व में इस तरह के बहुत कम ही उदाहरण मिलते है।जबकि राज्य गठन के बाद नवगठित विधानसभा में आसंदी पर ऐसे अध्यक्ष भी विराजमान रहे जोकि कई बार सदस्यों को सदन में कड़ी डांट लगा देते थे।कुछ जानकार और स्वयं डा.महंत ने आसंदी के प्रति सम्मान की अनदेखी के पीछे व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा को कारण मान रहे है।ऐसी चर्चा रही है कि भाजपा विधायक दल में कुछ समस्याएं है।
इस पूरे घटनाक्रम की शुरूआत बहुत ही मामूली थी लेकिन इसके चलते भाजपा सदस्यों ने विभागों की बजट मांगो की चर्चा में हिस्सा नही लिया और बजट सत्र 17 दिन पहले खत्म हो गया।इस दौरान ही अध्यक्ष को एक बार कहना पड़ा कि वह 1980 से संसदीय पाठशाला के सदस्य है।वह पांच बार विधानसभा एवं पांच संसदीय चुनाव लड़ चुके है,और आठ बार सदन के सदस्य रहे है,उऩ्हे भी नियम प्रक्रिया की पूरी जानकारी है।
अध्यक्ष डा.चरणदास महंत ने इस घटनाक्रम के बीच सत्र के समापन के मौके पर सदस्यों से आग्रह किया कि संसदीय सदन की सर्वोच्चता के लिए आसंदी के प्रति सम्मान और विश्वास का भाव बना रहना अत्यंत आवश्यक है।व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा,प्रतिष्ठा और द्वेष से सदन को मुक्त रखकर ही हम संसदीय लोकतंत्र की सार्थकता को सिद्द कर सकते है।