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राजस्थान में भ्रष्टाचार के मामलों की खबरे देने पर हो सकती है दो वर्ष की सजा ?

जयपुर 22 अक्टूबर।राजस्थान विधानसभा के कल से शुरू हो रहे सत्र में सीआरपीसी में संशोधन के लिए पेश किए जाने वाले एक विधेयक को पारित हो जाने पर सांसदों-विधायकों, जजों और अफ़सरों के खिलाफ पुलिस या अदालत में शिकायत करना आसान नहीं रह जायेगा।

इस विधेयक के कथित प्रावधानों के बारे में मीडिया में आई खबरों के बाद विवाद शुरू हो गया है।इसे लोकतंत्र के खिलाफ माना जा रहा है।इसमें जजों को शामिल करने पर सवाल उठ रहे है और कहा जा रहा है कि दिखावे के लिए इसका दायरा वृहद होना प्रदर्शित करने हेतु ऐसा किया गया है।अदालतों और जजों के बारो में अभी भी मीडिया में अवमानना के प्रावधानों के चलते खबरे नही आती है।

    खबरों के मुताबिक राजस्थान सरकार के इस विधेयक के पारित होने के बाद एक तरह से सभी सांसदों-विधायकों, जजों और अफ़सरों को लगभग संरक्षण प्रदान कर देगा।उनके ख़िलाफ़ पुलिस या अदालत में शिकायत करना आसान नहीं होगा।सरकार की मंज़ूरी के बिना इनके ख़िलाफ़ कोई केस दर्ज नहीं कराया जा सकेगा।यही नहीं, जब तक एफआईआर नहीं होती, प्रेस में इसकी रिपोर्ट भी नहीं की जा सकेगी।ऐसे किसी मामले में किसी का नाम लेने पर दो साल की सज़ा भी हो सकती है।

इस बिल के अनुसार किसी जज या पब्लिक सर्वेंट की किसी कार्रवाई के खिलाफ, जो कि उसने अपनी ड्यूटी के दौरान की हो, आप अदालत के जरिए भी एफआईआर दर्ज नहीं कर सकते।ऐसे मामलों में एफआईआर दर्ज कराने के लिए सरकार की मंजूरी लेना जरूरी होगा।

अगर सरकार इजाजत नहीं देती, तो 180 दिनों के बाद किसी पब्लिक सर्वेंट के खिलाफ कोर्ट के जरिए एफआईआर दर्ज कराई जा सकती है।ऐसे लोक सेवक का नाम तब तक प्रेस की किसी रिपोर्ट में नहीं आ सकता जब त‍क कि सरकार इसकी इजाजत नही दे दे। किसी  अगर मंजूरी से पहले किसी भी पब्लिक सर्वेंट का नाम किसी प्रेस रिपोर्ट में आता है तो ऐसे मामलों में दो साल तक की सजा का प्रावधान किया गया है।

इस प्रस्तावित विधेयक से लोगो को लोकतांत्रिक अधिकार को जहां खतरा उत्पन्न हो रहा है वहीं इसे प्रेस को दबाने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है।देश में आमतौर से सत्तापक्ष एवं नौकरशाहों के घपले घोटाले के मामले मीडिया प्रमुखता से उठाता रहा है,लेकिन इसके पारित होने पर उसके लिए मामले उठाना आसान नही रह जायेगा।