
(गाँधी जयंती 02 अक्टूबर पर विशेष)
02 अक्टूबर गाँधी का जन्मदिवस है और सदा की तरह उनके जन्म दिवस के अवसर पर सरकारें उन्हें श्रद्धांजलि देने और कुछ गुणगान करने की औपचारिकतायें पूरी करेगी। देश में आज भी गाँधी आमजन के लिये सबसे बड़े ब्रांड हैं, इसलिये प्रचारतंत्र में भी महात्मा गाँधी के बारे में कुछ सरकारी या गैर सरकारी विज्ञापन, कुछ राजनेताओं, संस्थाओं के फोटो आदि छपेंगे। परन्तु गाँधी पर जो हमले विशेषतः हाल ही के वर्षों में शुरु हुये है वे भी कम चिंताजनक नहीं है। ऐसा नही कोई इसके पहले केन्द्र या सूबे की सरकारें गाँधी की अनुयायी रही हो। वे गाँधी की पूजक थी परन्तु गाँधी को मानने वाली नही थी। चूँकि गाँधी आजादी के आन्दोलन के और आजादी तथा भारत के बँटवारे के पहले तक कांग्रेस के बगैर पद के सर्वमान्य नेता थे, अतः गाँधी के विरुद्ध कोई घोषित या अघोषित चरित्र हत्या का प्रयास उन सरकारों की ओर से नही हुआ।
इसके इतर अब वर्तमान सरकार की जो निंयत्रक संस्थायें है और जो उनके वैचारिक मार्ग दर्शक भी है, उनकी तरफ से गाँधी के विरुद्ध चरित्र हत्या का एक सुनियोजित अभियान चल रहा है। जाहिर तौर पर तो इन संस्थाओं के शीर्ष पदाधिकारी महात्मा गांधी को महान बताते है परन्तु यह आर्श्चयजनक है कि उनकी ही संस्थाओं के अन्य अनुयायी इस अभियान को आगे बढ़ाते है। उनके शीर्ष नेतृत्व और इन मैदानी योद्वाओं के बीच क्या कोई दुरभि संधि है? यह एक रहस्य है और खोज का विषय है। हिन्दु राष्ट्र और उसके पीछे छिपी हुई सवर्णवादी आंकाक्षायें एक चालकानुवर्तित्व का दीर्घ कालिक अभ्यास और परम्परा व्यक्ति को मशीन के समान स्थिर बना देती है। वैसे भी हमारा भारतीय समाज शब्दों में उदार और कर्म में क्रूरता के पाखंड का अभ्यस्त रहा है। हम कण कण में भगवान भी मानते है पत्थर और जानवरो में भी भगवान देखते हैं उन्हें अपनी महान संस्कृति परम्परा निरुपित करते हैं और जाति आधार पर उसी इन्सान से जानवर से भी बदतर व्यवहार करते हैं। हमारा प्रिय कुत्ता पंलग पर साथ सो सकता है परन्तु इंसान हमारे बर्तन को छू भी नही सकता।
महात्मा गाँधी कहते थे कि उनका जीवन ही उनका संदेश है। याने वे जो विश्वास करते थे उसे न केवल साहस के साथ कहते थे बल्कि उस पर अमल भी करते थे। उनके कथन से कौन खुश होगा, कौन नाराज होगा लोग उन पर फूल फेकेंगे या पत्थर फेकेंगे यह उनकी चिंता का विषय नही रहा और इसलिये गांधी ने अपने जीवन काल में भी भीतर और बाहर अपने और पराये से भारी हमले सहे। गाँधी ने अपनी आजादी को अक्षुण्ण रखा और दूसरों की आजादी को उतना ही सम्मान दिया। गाँधी के लिये आजादी केवल अपनी आजादी नहीं थी बल्कि कई बार तो अपने से ज्यादा दूसरे की आजादी थी।
गांधी पर पिछले दिनों जो आरोपों के हमले हुये हैं और अगर कहा जाये तो जो झूठ अभियान शुरू किया गया, वह निम्न प्रकार का है-
1. देश को आजादी अहिंसा या चरखे से नहीं मिली बल्कि क्रांतिकारी आंदोलनों और हिंसा की वजह से मिली।
2. गांधी ने भगतसिंह, की फांसी को रोकने के लिए कुछ प्रयास नहीं किए बल्कि कुछ लोग तो यह भी लिख रहे हैं कि गांधी ने तत्कालीन गवर्नर जनरल को यह कहा था कि कराची में कांग्रेस का अधिवेशन होना है, इसलिए वे भगत सिंह को शीघ्र फांसी दे दें ताकि कांग्रेस के सम्मेलन के समय भगतसिंह के अनुयायिओं के द्वारा कोई अशांति न हो।
3. गांधी ने सुभाष बाबू को सम्मान नहीं दिया।
4. महात्मा गांधी ने कहा था कि भारत पाकिस्तान का बंटवारा उनकी लाश पर होगा परंतु वे अपने वायदे से मुकर गए।
5. आजादी का दस्तावेज तो 1935 में ही तैयार हो गया था और जिस पर गांधी ने हस्ताक्षर किए थे।
6. गांधी ने मुसलमानों को ज्यादा महत्व दिया और पाकिस्तान को 60 करोड़ रुपया दिलाने के लिए जो दबाव डाला वह हिंदू विरोधी था।
7. गांधी ने वल्लभ भाई पटेल को प्रधानमंत्री नहीं बनने दिया।
8. गोडसे ने गांधी की हत्या कर जिसे उनके शब्द में गांधी वध कहा जाता है अच्छा काम किया था कुछ लोग तो गोडसे को महात्मा सिद्ध करते हैं।
9. भारत के पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम से अप्रत्यक्ष तुलना कर यह कहा जाता है कि वे सच्चे महात्मा थे और इशारे इशारे में यह कहने का प्रयास होता है कि गांधी महात्मा नहीं थे।
10. गांधी राष्ट्रपिता नहीं है और कुछ लोग तो यह कहते हुए इतने उत्साहित या विकृत हो जाते हैं कि गांधी जैसा हड्डियों का ढांचे वाला राष्ट्रपिता कैसे हो सकता है।
ऐसे और भी अनेकों झूठे आरोप गांधी के ऊपर सोशल मीडिया के माध्यम से लगाए जा रहे हैं और अब इनका जवाब न कुछ अखबार छोड़कर गांधीवादी, न कांग्रेसी और वर्षानुवर्ष तक गांधी का नाम बेचकर जो सियासत की रोटी पकाने वाले रहे हैं उनके द्वारा पता नहीं क्यों दिया दिया जा रहा है।
अगर कांग्रेस के किसी वर्तमान नेता पर सही या गलत आरोप सोशल मीडिया में आते हैं तो सैकड़ों प्रतिवाद आते जाते हैं क्योंकि प्रतिवाद के लिए बाकायदा समूह और कम्पनियां बनी हुई हैं। यह और भी दुखद है कि जब समूची दुनिया गांधी में ही समाज का भविष्य और आदर्श खोज रही है भारत की युवा पीढ़ी को फिर से एक बार गांधी विरोधी बनाने का सुनियोजित अभियान चलाया जा रहा है। जिस प्रकार की घृणा गांधी के खिलाफ 1946-47 में पैदा की गई थी जो कानो कानो अफवाह के माध्यम से पैदा की गई थी, लगभग उसी तर्ज पर गांधी को देश की युवा पीढ़ी में घृणास्पद बनाने का अभियान चला हुआ है। न कोई तथ्य, न कोई तिथि, न कोई प्रमाण परन्तु आरोपो की बरसात हो रही है। इस समय देश में शायद गांधी इस अर्थ में सबसे निरीह हैं कि उनके विरुद्ध कोई भी कुछ भी कह सकता है। अगर बाल ठाकरे के खिलाफ कोई प्रतिक्रिया कर दे तो मुंबई जलने लगेगी और सरकारे मुकदमा दर्ज करने लगेगी, परन्तु गांधी के खिलाफ कितना भी गन्दा से गन्दा झूठ लिखा जाता रहे, पर कार्यवाही तो दूर ठीक से प्रतिवाद तक नही होगा। मेरी चिंता इसलिये भी है कि गांधी जैसे विशाल व्यक्ति को खण्डित करने के बाद देश एक सम्पूर्णतः आदर्श विहीन देश और समाज बन जायेगा, और एक कृत्रिम और पाखण्ड समाज खड़ा हो जायेगा। कोई भी समाज या देश अपने राष्ट्र के आदर्श के बगैर मजबूत नहीं बनता।
देश की युवा पीढ़ी जो सोशल मीडिया को ही अपनी जानकारी का अंतिम माध्यम समझती है। वह गांधी के प्रति उपेक्षा और अपराधी जैसा भाव पाल रही है। जब-जब मैं नई पीढ़ी के युवकों से चर्चा करता हूँ तो ज्यादातर नौजवान दुष्प्रचार से प्रभावित नजर आते है। यहाँ तक कि आप पार्टी के एक ऐसे नेता जो पत्रकार भी रहे है ने गांधी के ऊपर विवाहेत्तर संबंधों का शर्मनाक आरोप लगाया है।
संघ पृष्ठ भूमि के एक बुद्धजीवी श्री शंकर शरण है जो किसी भी व्यक्ति के खिलाफ बातो को गलत ढंग से प्रस्तुत कर अपने निष्कर्ष निकालने में माहिर है। हाल में ही उन्होंने एक लेख में लिखा गांधी जी सुहरावर्दी जैसे हत्यारो को भाई कहकर मामला पटाना चाहते थे। अब जिहादियों को परिवार कहकर वही कोशिश हो रही है। इन्हें गांधी के बारे में यह भी समझ नही है कि गांधी अंहिसा और प्रेम के चरम बिन्दु पर थे जहाँ उनकी नजरो में उनका कोई शत्रु नही था और वे इसांन के मन को बदलने का सतत् प्रयास करते थे परन्तु तथ्य और सत्य से मुँह भी नही मोड़ते थे। अपने इसी लेख में श्री शंकरशरण ने लिखा कि श्री अरविन्द के बाद उभरे गांधी नेतृत्व ने इस सभ्यता संघर्ष को बाहर कर दिया। इनके द्वारा प्रयुक्त शब्द सभ्यता संघर्ष्य लगभग हटिगंटन को नकल जैसा है जिसने सभ्यताओं का संघर्ष पुस्तक लिखकर ईसाईयत और ईस्लाम के बीच स्थाई संघर्ष की नीति के रूप में प्रस्तुत किया था। गांधी सभ्यताओं के कटघरे में बँटे हुये नही थे बल्कि गांधी एक नई सभ्यता का निर्माण कर रहे थे और यही कारण है कि श्री अरविन्दो स्वतंत्रता सेनानी थे, आध्यतमिकता में महान थे, परन्तु समूचे देश को अपने साथ एक जुटकर अंग्रेजो के खिलाफ खड़ा नही कर सके थे। यह महान कार्य गांधी ने ही किया। अगर गांधी सभ्यताओं के संघर्ष पर चले होते तो हम अभी भी चर्चिल के उत्तराधिकारियों के गुलाम होते। आज अगर शंकरशरण जैसे लोग आजादी के साथ अपने भ्रामक विचार और तथ्य रख पाते है तो यह गांधी की ही देन है। इनकी सभ्यता और शक्ति तब कहाँ थी जब हमलावर मुगल, आये और देश पर कब्जा कर लिया और जब अंग्रेज आये तो उन्होंने देश पर कब्जा कर लिया। यह स्पष्ट है कि बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ विदेशी पूंजी और वैश्वीकरण की ताकतें देश को मानसिक रूप से जाति और मजहबी आधार पर विभाजित रखना चाहती है तभी उनकी सत्ता कायम रहेगी और पूंजी वाद स्थायी रहेगा, सोशल मीडिया पर चर्चित जिन आरोपों को हमने ऊपर लिखा है उनके संदर्भ में मेरा प्रस्तुतीकरण निम्नानुसार है।
1. देश की आजादी में सभी का योगदान है पिस्तौल वालो का भी और चरखे वालों का भी। परन्तु पिस्तौल व चरखे के बीच बड़ा फर्क है, पिस्तौल वाले की कुर्बानी का जज्बा एक महान कर्म था। जिसने देश के युवा पीढ़ी को विदशी हुकूमत के खिलाफ आक्रोशित किया परन्तु संख्या के दृष्टि से वह देश का प्रतिनिधि आंदोलन नही बन सका। गांधी का चरखा व नमक देश के जन जन का आंदोलन बन गया। इसमें इनके बीच भिन्नता व दूरी खोजने के वजह इन्हें एक सामूहिक व समूचे प्रयास के हिस्से के रुप में देखना चाहिये । किसी को भी नकारना नही चाहिये।
2. महात्मा गांधी ने भगत सिंह की फांसी रद्द करने के लिये वायसराय से बात की थी व समझाने का प्रयास किया था। वायसराय को यह खतरा महसूस हुआ कि गांधी कहीं अनशन या आन्दोलन न शुरु कर दें। इसलिये गाँधी के आंन्दोलन के भय से भगत सिंह को निर्धारित समय से पूर्व फॉसी दे दी। भगत सिंह के नकली प्रेमियो से यह भी पूँछा जाना चाहिये कि अगर भगत सिंह की फांसी बच गई होती तो क्या भगत सिंह शहीदे आजम बन गये होते। भगत सिंह ने स्वतः गांधी के प्रति सम्मान का भाव रखा और कभी कोई आरोप नही लगाया। भगत सिंह हिंसा के पक्षधर नही थे। मगर यह झूठा प्रचार करने वाले जरा भगत सिंह का अदालती बयान पड़े तो उन्हें यह सत्य समझ में आ जायेगा। उन्होंने कहा था कि हम चाहते तो सांसदो पर भी बम फेंक सकते थे पर हमने खाली स्थान पर फेंका क्योंकि हम तो केवल बहरों को सुनाना चाहते थे।
3. नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने ही सबसे पहले गांधी को राष्ट्रपिता के नाम से सम्बोधित किया था उनके किसी भाषण या लेख में गांधी के प्रति एक भी असंतोष का शब्द नही है, बल्कि 9 अगस्त 1942 को गांधी जी ने जब भारत छोड़ो आंदोलन शुरु किया तब उसका समर्थन सुभाष बाबू ने जोरदार ढंग से किया था।
4. गांधी ने जब यह कहा था कि भारत पाकिस्तान का बँटवारा उनकी लाश पर होगा तब उन्होंने एक प्रकार से कांग्रेस नेतृत्व को एक कड़ा संदेश देने का प्रयास किया था कि वे बँटवारे का प्रस्ताव स्वीकार न करे। परन्तु जब भारत पाक का बँटवारा गांधी की राय के बगैर कांग्रेस नेतृत्व ने स्वीकार कर लिया जिसमें नेहरु के साथ स्व.वल्लभ भाई पटेल शामिल थे तो गांधी आश्चर्यचकित रह गये थे। उनके द्वारा बनाया हुआ नेतृत्व ही उनके खिलाफ था और ऐसी परिस्थिति में तत्काल कोई बड़ा आंदोलन संगठित करना सम्भव नही था। गांधी ने कांग्रेस पार्टी की विशेष कार्य समिति बुलाकर कांग्रेस के इस निर्णय को बदलवाने का प्रयास किया था परन्तु वे अल्पमत में हो गये और उन्होंने उपयुक्त समय का इंतजार करना उचित समझा। यह देश का दुर्भाग्य है कि मुश्किल से 6 माह के अंदर महात्मा गांधी की हत्या हो गई और अब यह कहा जा सकता है कि भारत पाक का बँटवारा गांधी की लाश पर ही हुआ। कुछ लोग यह भी तर्क देते है कि गांधी के बयान के बाद जो हिन्दू वर्तमान पाकिस्तान से हिन्दुस्तान आना चाहते थे जबकि तथ्य यह है कि ब्रिटिश हुकुमत ने अंतिम वायसराय माऊंटबेटन के हिन्दुस्तान के विभाजन के लक्ष्य के साथ ही भेजा था, और 1946 के समाचार पत्रो में इस आशय की खबरे छपती रही थी। फिर उस समय अगर लोग अपना घर बार छोड़ कर वर्तमान भारत में आते तो कहाँ रहते। कोई अंग्रेज सरकार तो उन्हें बसाने वाली नही थी। ये बहादुर प्रचारक उनकी अपनी सरकारों से कश्मीरी पंडितों को वापिस कश्मीर में नही बसा पाये जबकि 6 साल वाजपेयी प्रधानमंत्री रहे और अब ग्यारह साल से श्री नरेन्द्र मोदी जी है। 1935 का प्रस्ताव ब्रिटिश हुकमत का था जिसे गांधी ने स्वीकार नही किया था और न गांधी के हस्ताक्षर है।
5. नेहरु और वल्लभभाई पटेल कांग्रेस पार्टी के द्वारा बँटवारे का प्रस्ताव स्वीकार करते समय से परस्पर काफी नजदीक थे और गांधी का विश्वास लगभग खो चुके थे। विभाजन की लकीर को मिटाने के लिये और अपनी कल्पना के भारत को बनाने के लिये गांधी कई प्रस्तावों पर चिंतन और कार्य कर रहे थे। कांग्रेस पार्टी को पुनः अपने अनुरुप बदलना या कांग्रेस का नेतृत्व बदलना या कांग्रेस को भंग करना, दिल्ली से लाहौर की यात्रा निकालकर बगैर अनुमति के पाकिस्तान जाकर विभाजन की रेखा को मिटाना आदि आदि। ये अलोचक मित्र भूल जाते है कि महात्मा गांधी ने आजादी के बाद कांग्रेस को भंग करने का प्रस्ताव दिया था।
6. गांधी ने पाकिस्तान को बँटवारे के निर्णय के अनुरुप 60 करोड़ रुपये देने का इसलिये आग्रह किया था कि एक तो वह लिखित समझौता था और दूसरे पाकिस्तान की जनता का मन भी बदले। परन्तु गांधी के हत्यारे ने गांधी को अपने इन प्रयोगों का अवसर नहीं दिया। ये आरोप लगाने वाले लोग जाहिर तौर पर तो गांधी को महान कहते हैं परंतु इनके जी जमीनी कार्यकर्ता गांधी की हत्या के पक्ष में तर्क देते हैं। क्या कभी इनकी संस्था में इस संबंध में कोई सामूहिक निर्णय किया है? नीचे जमीन के स्तर पर गोडसे को महात्मा और राष्ट्र नायक बताना और ऊपर गांधी को महान आत्मा बताना यह एक सुनियोजित षडयंत्र है, तथा खतरनाक खेल है।
7. पूर्व राष्ट्रपति श्री कलाम एक भले इंसान थे जिन्हें राष्ट्रपति के पद पर चुनना अल्पमत वाली भाजपा सरकार की लाचारी थी और मुलायम सिंह का समर्थन देने के लिये एक बहाने की आवश्यकता थी कि कलाम साहब मुसलमान है। अगर गांधी के साथ तुलना का प्रयास कलाम साहब के जीवनकाल में किसी ने किया होता तो मेरी राय में कलाम साहब यह कहते कि सच्चे महात्मा और राष्ट्रपिता गांधी ही थे।
8. गांधी को राष्ट्रपिता की उपाधि नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने दी थी और इसलिये कि देश में सर्वमान्य के रूप में जिन्हें उनका समर्थक या विरोधी एक समान देखता था वह एक मात्र गांधी ही थे और गांधी जितने अपनों के थे, याने उनके समर्थकों के उससे ज्यादा गांधी अपने विरोधियों के प्रति ममता मय थे। कई बार तो वे अपनों पर कठोर होते थे और दूसरों पर प्रेम बरसाते थे। देश को एकजुट करने का उनका प्रेम ही सबसे बड़ा हथियार था।
मैं अपनी बात यह कहकर समाप्त करूँगा कि अंततः गांधी जीतेंगे और निंदा हारेगी। परंतु इसे नियति मानकर गांधी के मानने वालों को अपना कर्तव्य नहीं छोड़ना चाहिये। अब यह जरूरी है कि गांधी के विरोधियों से सोशलमीडिया से लेकर हर मंच पर खुला संवाद किया जाये और उनके भ्रमों का निराकरण कर उनके मस्तिष्क को विषहीन किया जाये। सरकारों से भी अब यह मांग करना चाहिये कि सोशल मीडिया पर गांधी के बारे में लिखे जा रहे झूठे और दुष्प्रचार को रोकने के लिये एक मानिटरिंग सेल का गठन करें क्योंकि अब गांधी के विरूद्ध आरोपों का उत्तर गांधी को नहीं बल्कि देश को देना है।
सम्प्रति- लेखक श्री रघु ठाकुर जाने माने समाजवादी चिन्तक और स्वं राम मनोहर लोहिया के अनुयायी हैं।श्री ठाकुर लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के भी संस्थापक अध्यक्ष हैं।
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