Tuesday , September 16 2025

परिवार में घमासान से समाजवादी पार्टी में चिंता – राज खन्ना

समाजवादी पार्टी में चिंता का माहौल है।सिर पर अखिलेश सरकार की नाकामियों का बोझ।उधर पार्टी के खेवनहार के परिवार का घमासान। यू पी की 2017 की लड़ाई के पहले ही खिलाफ नतीजों की आशंका से मौजूदा विधायकों  और टिकट की लाइन में लगे नेताओं में बेचैनी है।मुलायम सिंह यादव पहले भी अखिलेश सरकार के मंत्रियों की खिंचाई करते रहे हैं।मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को  भी नसीहतें मिलती रही हैं।अभी तक इसे बुजुर्ग पिता की बेटे को सीख के रूप में सुना समझा जाता रहा है।

स्वतन्त्रता दिवस के मौके पर पार्टी मुख्यालय में मीडिया की मौजूदगी में मुलायम सिंह यादव के खरे खरे बोल ने जाहिर कर दिया कि उनके परिवार  में राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई का हल घर की चहारदीवारी में नहीं निकल पा रहा है।उन्होंने अपने छोटे भाई शिवपाल सिंह यादव के खिलाफ साजिश पर नाराजगी जाहिर करते हुए चेतावनी दी है कि शिवपाल इस्तीफा देंगे तो पार्टी टूट जायेगी और आधे लोग उनके साथ चले जाएंगे।उधर शिवपाल सिंह के भी तेवर तीखे हैं।उन्होंने अपने इस्तीफे की धमकी के लिए पारिवारिक क्षेत्रों मैनपुरी और इटावा को चुना।मुलायम शिवपाल के बयानों की राजनीति में दिलचस्पी लेने वालों के साथ ही गांव की चौपालों तक चर्चा है।लोग इसकी अपने अपने तरीके से व्याख्या करते हुए समाजवादी पार्टी के लिए खतरे की घंटी मान रहे हैं।

पार्टी के जमीनी कार्यकर्ताओं का संकट दोहरा है। अखिलेश सरकार में कानून व्यवस्था की हालत बदतर है।नौकरशाही बेलगाम है।सरकार  की उपलब्धियों के विज्ञापनों के रंगीन पन्नों से अखबार सजे हैं।चैनलों पर भी सरकार की कामयाबी का गान है।लेकिन जमीनी हकीकत कुछ अलग है।चुनाव की दस्तक तेज है और विपक्षी कोई मौका छोड़ नहीं रहे।उधर घर की लड़ाई विपक्षियो को और ईंधन मुहैय्या कर रही है।स्थानीय स्तर पर कार्यकर्ताओं की शिकायत है कि अपनी ही सरकार में कहीं सुनवाई नहीं।इसके लिए वे अपने विधायकों को निशाने पर ले रहे हैं।उधर विधायक निजी बातचीत में कहते हैं कि महत्वपूर्ण पदों पर तैनात अधिकारी उनकी भी अनदेखी करते हैं।उन्हें पता है कि विधायक जी को तीन चार महीने से पहले मुख्यमंत्री से मुलाकात का समय नहीं मिलना और मिल भी लिए तो कुछ करा नहीं पाएंगे।मुलायम सिंह परिवार की आपसी लड़ाई के चलते विधायकों के लिए एक और परेशानी  बढ़ी है।अभी तक वे  परिवार के सभी महत्वपूर्ण सदस्यों के यहाँ सामान्यतः हाजिरी लगा देते थे।अब नए पारिवारिक समीकरणों में बिना ठप्पा लगे सबको साधने का जतन करना है।बेशक नेताजी सर्वोच्च हैं लेकिन उन्हें नेताजी का हाल का वह बयान भी चौकन्ना करता है जिसमे उन्होंने कहा था कि उन्हें बताया गया है कि पार्टी के लोग उनसे मिलते हैं तो अखिलेश को ख़राब लगता है।वह यह याद दिलाना नहीं भूले थे कि टिकट-सिम्बल उन्ही को बांटना है।

टिकट की दौड़ में जुटे लोगों को  एक ओर कहीं से भी मदद की आस रहती है। भीतर के लोग बना खेल बिगाड़ न दें इसके लिए भी पेशबंदी की जाती है।सत्ता विरोधी लहर के तेज थपेड़ों के बीच अपनों के प्रहार चुनौती को और कठिन बना रहे हैं।पार्टी टिकट की चाहत चुनाव के मौके पर स्थानीय स्तर पर धड़ेबन्दी को यों भी बढ़ा देती है।ऐसे में ऊपरी नेतृत्व का चाबुक कुनबे को एकजुट रखता है।फिलवक्त पार्टी के सर्वेसर्वा का परिवार ही आमने सामने है।फिर किसकी कौन सुने? संकट गहरा है।नतीजे पार्टी से जुड़े लोगों को डरा रहे हैं।

सम्प्रति- लेखक श्री राज खन्ना वरिष्ठ पत्रकार है।उनके समसामायिक राजनीतिक एवं अन्य मुद्दों पर आलेख राष्ट्रीय एवं प्रादेशिक समाचार पत्रों में छपते रहते है।