नई दिल्ली 08 दिसम्बर।उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि अंतर धार्मिेक विवाह में महिला के धर्म का स्वत: ही पति के धर्म में मिल जाने की कोई कानूनी मान्यता नहीं है।
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ उस कानूनी मुद्दे पर सुनवाई कर रही थी कि क्या एक पारसी महिला अन्य धर्म के व्यक्ति से विवाह के बाद अपनी धार्मिक पहचान खो देती है।पीठ ने वलसाड पारसी ट्रस्ट की पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल सुब्रहमण्यम से कहा कि वे इस बारे में अपने मुवक्किल से जरूरी निर्देश लेने के बाद सुनवाई की अगली तारीख 14 दिसंबर को न्यायालय को अवगत करायें।
न्यायालय ने पूछा कि क्या पारसी महिला गूलरुख एम गुप्ता को हिंदू व्यक्ति से शादी के बाद अपने माता-पिता के अंतिम संस्कार में भाग लेने की अनुमति होगी ? गूलरुख ने इस परंपरागत कानून को चुनौती दी थी कि किसी हिंदू से विवाह के बाद एक पारसी महिला अपने समुदाय में सभी धार्मिक अधिकार खो देती है। पीठ ने कहा कि ऐसा कोई कानून नहीं है जो कहता हो कि किसी अन्य धर्म के व्यक्ति से विवाह के बाद महिला की अपनी धार्मिक पहचान खत्म हो जाती है।
पीठ ने कहा कि ऐसे मामले में केवल महिला ही अपनी पसंद से अपनी धार्मिक पहचान के बारे में फैसला ले सकती है।
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