अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की जीत भले ही इस बार पहले से तय लग रही थी, लेकिन 2016 में हालात इसके ठीक उलट थे। डोनाल्ड ट्रंप के सामने डेमोक्रेटिक पार्टी की उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन थी और माहौल लगभग उनके पक्ष में था।
लेकिन जो नतीजे आए, उसने पूरे अमेरिका को चौंका दिया। डोनाल्ड ट्रंप चुनाव जीत चुके थे। ये पल रिपब्लिकन पार्टी के लिए जितना महत्वपूर्ण था, उससे कहीं ज्यादा अमेरिकी मीडिया के लिए भी था।
क्योंकि सिर्फ एक जीत ने रातों रात अमेरिकी मीडिया के बिजनेस को बूस्ट दे दिया था। लोग टेलीविजन से चिपके हुए थे। टीवी चैनलों की रेटिंग बढ़ने लगी थी। डिजिटल न्यूजपेपर के सब्सक्रिप्शन खरीदे जा रहे थे।
अमेरिका मीडिया के शेयर अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच रहे थे। ये सब कुछ तब हो रहा था, जब डोनाल्ड ट्रंप दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश की कमान संभालने वाले थे। वहीं डोनाल्ड ट्रंप, जिन्हें अमेरिका का मेन स्ट्रीम मीडिया कुछ खास पसंद नहीं है।
अब कैलेंडर करीब 8 साल आगे बढ़ गया है। एक बार फिर अमेरिका की कमान डोनाल्ड ट्रंप के हाथों में है। माना जा रहा है कि ट्रंप की इस जीत का लाभ एक बार फिर अमेरिकी मीडिया को मिल सकता है। एक्सपर्ट मानते हैं कि भले ही ऐसा कुछ समय के लिए हो, लेकिन होगा जरूर।
चुनाव के बाद अमेरिकी जनता की दिलचस्पी खबरों में एक बार फिर बढ़ रही है। राजनीतिक विश्लेषण की ओर जनता के इसी झुकाव का नतीजा केबल न्यूज की रेटिंग, डिजिटल अखबारों के सब्सक्रिप्शन और मीडिया को मिलने वाले डोनेशन में बढ़ोतरी के तौर पर देखने को मिल सकता है।
हालांकि कुछ विशेषज्ञ इससे उलट राय रखते हैं। जॉर्ज वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर और सीएनएन के पूर्व ब्यूरो चीफ फ्रैंक सेस्नो कहते हैं, ‘डोनाल्ड ट्रंप का यह कार्यकाल पिछली बार के मुकाबले काफी अलग होने वाला है। ऐसे में दक्षिणपंथी मीडिया के दिन भले ही बेहतर होने वाले हों, लेकिन वामपंथी मीडिया की स्थिति बुरी हो सकती है।’2016 में जब अमेरिका के राष्ट्रपति चुनावों के शुरुआती नतीजे आए थे, तब न्यूयॉर्क टाइम्स और वॉशिंगटन पोस्ट जैसे अमेरिकी अखबारों की सब्सक्रिप्शन में अचानक वृद्धि हुई थी।
इसकी वजह साफ थी कि नतीजों से जनता खुद चौंक गई थी।अमेरिकी मीडिया ने भी इसका लाभ उठाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। वॉशिंगटन पोस्ट ने अपनी आक्रामक रिपोर्टिंग की सराहना करते हुए कैंपेन भी चलाए। वॉक्स ने अपने पाठकों को ईमेल कर निष्पक्ष पत्रकारिता में सहयोग के लिए डोनेशन की अपील की। हर मीडिया की कोशिश थी कि पाठकों और दर्शकों से अधिक से अधिक लाभ अर्जित कर लिया जाए।
लेकिन इसका एक स्याह पहलू भी था। मीडिया ग्रोथ पार्टनर्स में रेवेन्यू कंसल्टेंट डेविड क्लिंच कहते हैं, ‘उन्हें लगा था कि यह सदस्यता बढ़ाने के लिए सर्वश्रेष्ठ मौका है, लेकिन परिणाम उल्टा भी देखने को मिला। कई पाठक मेनस्ट्रीम मीडिया की कवरेज से उब गए थे।’अब 2024 में ट्रंप की जीत से एक बार फिर मीडिया जगत को उम्मीद जगी है। अमेरिका में कई ऐसे मीडिया संस्थान हैं, जो खुद को लोकतंत्र के प्रहरी के रूप में पेश करते हैं और उनका दावा है कि वह बिना सरकारी दबाव के खोजी और निष्पक्ष पत्रकारिता करते हैं।
विशेषज्ञ भी उम्मीद जता रहे हैं कि ट्रंप की जीत मीडिया संस्थानों के डोनेशन और रेवेन्यू में बढ़ोतरी ला सकती है। मीडिया के अलावा पॉडकास्टर और ऑनलाइन क्रिएटर को भी ट्रंप की जीत से फायदा हो सकता है।डोनाल्ड ट्रंप और उनकी प्रतिद्वंदी कमला हैरिस, दोनों ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान इन माध्यमों का जमकर इस्तेमाल किया था। अमेरिका का एक बड़ा वर्ग ऐसा है, जो मेनस्ट्रीम मीडिया से ज्यादा पॉडकास्ट या अल्टरनेट मीडिया का समर्थक है। ऐसे में उम्मीद किसकी पूरी होगी, ये देखने वाली बात है।
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