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संघर्ष को रचनात्मकता देने वाले अनूठे नेता जॉर्ज फर्नांडिस – रघु ठाकुर

रघु ठाकुर

जॉर्ज फर्नांडिस से मेरा परिचय करीब 51साल से था। उनका जन्म मंगलूर के पास हुआ था और वे रोजगार की तलाश में 1949 में मुंबई आए थे। कोई रोजगार नहीं मिला तो उन्होंने एक चर्च में पादरी बनने का प्रयास किया लेकिन, पादरी भी वे नहीं बन पाए। जब एक दिन वे समुद्र के किनारे टहल रहे थे तो उनकी मुलाकात समाजवादी यूनियन लीडर पी डिमेलो से हुई और उन्होंने कहा कि हमारे साथ मजदूर संगठन का काम करो और फर्नांडिस मजदूर संगठन का काम करने लगें। बाद में उन्होंने मुंबई में बीईएसटी सहित तीन संगठन बनाए जो मुंबई का आधार माने जाते थे।

आजादी के बाद उन्होंने सबसे पहले भारतीय राजनीति में बंद का प्रयोग शुरु किया। कभी-कभी हल्के मूड में वे कहा करते थे कि मैं बंद का बाप हॅू। मजदूरों और दबे-कुचले वर्गो के अधिकारों के संघर्ष में उन्होंने अपनी जान तक जोखिम में डाली। एक बार उन्होंने मुंबई के क्रांति मैदान से मजदूरों की रैली का नेतृत्व किया तो उन पर पुलिस ने लाठियां बरसाई थी। इसी तरह 1964 में संसद के सामने प्रदर्शन के दौरान उन पर लाठी चार्ज हुआ। इन दोनों घटनाओं में उनकी जान भी जा सकती थी। वहां से उनकी संघर्ष यात्रा चली। 1974 में वे नेशनल मजदूर यूनियन के अध्यक्ष चुने गए। फिर रेलवे के संगठनों को एकजुट कर उन्होंने ईआरएफ का गठन किया और उसके अध्यक्ष चुने गए। उन्होंने एक को-ऑर्डिनेशन कमेटी बनाई और 1974 में उन्होंने रेल हड़ताल का आह्वान किया। 8 मई 1974 को रेल हड़ताल शुरु हुई थी और चौदह दिन तक देश की रेल लाइनें ठप रही। एक तरह से वह आपातकाल की पूर्व पीठिका थी, क्योंकि मिसा यानी मैन्टेनेंस ऑफ इंटरनल सिक्योरिटी एक्ट इस हड़ताल के बाद ही अस्तित्व में आया था, इस रेल हड़ताल से सरकार हिल गई।

1975 में देश में आपातकाल लागू कर दिया गया। सेंसरशिप लागू हुई और बुनियादी अधिकार निलंबित कर दिए गए। जिस दिन आपातकाल लागू हुआ वे गोपालपुर में थे समुद्रतट के पास। वे वहॉ से भूमिगत हो गए। उन्होंने बड़ोदरा में डायनामाइट बनाना शुरु किया।वे कोई जनहानि नही करना चाहते थे, वे कहते थे कि धन-हानि करेंगे ताकि सरकार मजबूर होकर लोगां के बुनियादी अधिकार बहाल कर दे। करीब सवा साल बाद उन्हें सरकारी इमारतें उड़ाने के इरादे से डायनामाइट की तस्करी करने के आरोप में उन्हें गिरफ्तार किया गया। तब 114 देशों के शीर्ष नेताओं ने भारत सरकार से अपील की थी कि उन्हें कोई नुकसान न पहुंचे। आपातकाल के बाद चुनाव हुआ, जिसमें उन्होंने बिहार के मुजफ्फरपुर से लड़ा और विजयी हुए।

जॉर्ज साहब के मजदूर आंदोलन की बड़ी विशेषता यह थी कि वे मजदूर को संघर्ष करना तो सिखाते थे पर उसके साथ-साथ उसे सकारात्मक रचना का काम भी सिखाते थे। इस दिशा में उन्होंने तीन प्रयोग किए। उन्होंने मुंबई के मजदूरों से पैसा इकट्टा करके एक बैंक बनाया। नाम रखा ’’लेबर बैंक’’, आजकल उसका नाम ’’द न्यू कोऑपरेटिव बैंक’’ है और उसके पास कई हजार करोड़ की पूंजी है। मुंबई व उसके बाहर उसकी 48 शाखाएं है। दूसरा उन्होंने जो टैक्सी यूनियन बनाई थी, उसके नाम से उन्होंने पेट्रोल पम्प के छह लाइसेन्स लिए और पेट्रोल पम्प चलाने से जो पैसा आया उससे एक हाउसिंग सोसायटी बनाई। आज मुंबई में तीन सौ से ज्यादा टैक्सी यूनियन के लोगों के अपने मकान है। वे मकान उसी सोसायटी का नतीजा थे। तीसरा कदम यह था कि मजदूरों को उन्होंने देश की राष्ट्रीय आंदोलन से जोड़ने के लिए एक राष्ट्रीय संगठन बनाया। वे अध्यक्ष बने और मैं उपाध्यक्ष।

वर्ष 1977 में बिहार से वे दोबारा चुनकर आए तो जनता सरकार में सबसे पहले उन्हें संचार मंत्री बनाया गया, बाद में उन्हें उद्योग मंत्री बना दिया गया। इस पद पर उन्होंने दो बड़े काम किए। एक आपातकाल के दौरान देश में आई कोका कोला कंपनी को देश से बाहर कर दिया। उन्होंने सरकार की तरफ से एक देशी कंपनी स्थापित की। उन्होंने देश की जनता से कंपनी का नाम सुझाने को कहा। एक पुराने नेता जो कि संविधान सभा के सदस्य श्री हरि विष्णु कामत उन्होंने नाम सुझाया ’’पेय 77’’ और दूसरा काम उन्होंने छोटे उद्योगों को मजबूती देने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए। उन्होंने दो अखबार भी निकाले हिंदी ’प्रतिपक्ष’ और अंग्रेजी में ’अदर साइड’। इसके माध्यम से वे लगातार देश में सामाजिक व आर्थिक बदलाव की अलख जगाते रहे। जनता दल की सरकार बनी तो वे रेलमंत्री बने। रेलमंत्री बनते ही उन्होंने देश के स्टेशनों पर कुल्हड़ों में चाय देना शुरु करवाया। उनका मानना था कि गांव के कुम्हारों को इससे रोजगार मिलेगा। दूसरा महत्वपूर्ण काम उन्होंने कोंकण रेलवे कॉरपोरेशन की स्थापना की। पहली बार रेल मंत्रालय ने किसी प्रोजेक्ट में राज्यों को शामिल किया। इसमें बहुत कम समय में 700 किलोमीटर दुर्गम मार्ग पर रेल लाइन बनाई गई।

बाद में जब वे अटलजी की सरकार में रक्षामंत्री बने तो सबसे पहले फर्नांडिस ने सियाचिन का दौरा किया। 13-14 बार वे खुद सियाचिन गए। इसका परिणाम यह हुआ कि वहां तैनात जवानों के लिए अत्यधिक ठंड से बचने की जो सुविधाएं मंजूर नही होती थी, वह मंजूर हो गई। इस तरह सत्ता का काल उनका रचना का काल था। अपने आखिरी दशक में वे भाजपा के साथ हो गए। मंत्री रहते हुए उनका विभागीय कार्य तो अच्छा था पर राजनीति बदल गई थी। राजनीति में वे नितांत ईमानदार थे। हम लंबे समय साथ-साथ रहे। उन्होंने कभी एक पैसे की बेईमानी नही की। कांग्रेस सरकार में जब वे सांसद थे तो उनके घर के सामने गृहमंत्री शंकरराव चव्हाण का घर था। जब वे निकलते तो सुरक्षा के लिए आसपास के सारे घरों के दरवाजे-खिड़कियां बंद कर दी जाती थी। उन्होंने विरोध में चिट्ठी लिखी पर कुछ नही हुआ तो उन्हेंने अपने घर का दरवाजा ही तोड़ दिया कि न रहेगा बांस, न रहेगी बांसुरी। इसी बिना दरवाजे के घर में वर्मा की सरकार से लड़ने वाले विद्रोही, तिब्बती और तमाम आंदोलनकारी रहते थे। उनका घर सारे आंदोलनकारियों के लिए खुला था।

 

सम्प्रति – लेखक श्री रघु ठाकुर देश के जाने माने समाजवादी चिन्तक एवं लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के संस्थापक है।