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लोकतंत्र,समता और संपन्नता तीनों चाहिये साथ-साथ – रघु ठाकुर

समाजवादी विचारधारा को लेकर सदैव कई प्रकार के संशय और आरोप लगाए जाते रहे हैं। यद्यपि आजादी के कई वर्षों के बाद स्वयं जवाहरलाल नेहरू ने समाजवादी ढंग की समाज रचना का उल्लेख कांग्रेस पार्टी के अवाड़ी अधिवेशन में एक प्रस्ताव में कराया था और वह भी इनकी लाचारी थी, क्योंकि उसके पूर्व वे समाजवाद का मजाक उड़ाकर कहते रहते थे कि पाँच उंगलियां बराबर नहीं होती। तब डॉ लोहिया ने उनका उत्तर दिया था कि यद्यपि पाँच उंगलियां बराबर नहीं होती परंतु इनके बीच का जो फर्क है वह फर्क मुश्किल से एक बनाम डेढ़ है। जबकि उस समय उद्योगपतियों की बात तो छोड़ो प्रधानमंत्री के दफ्तर पर 25000 रुपया रोज खर्च होता था और उस समय देश के आम आदमी की आमदनी डॉ लोहिया के अनुसार तीन आने और सरकार के अनुसार 15 आने प्रति व्यक्ति प्रतिदिन थी। कांग्रेस के इस अवाड़ी अधिवेशन में भी सोशलिस्ट पैटर्न आफ सोसाइटी का प्रस्ताव तब किया गया जब समाजवादी विचारधारा और समाजवादी पार्टी देश में तेजी से फैल रही थी तथा इस कारण से यह जवाहरलाल नेहरू जी के लिये एक मजबूरी बन गई थी।

   उस समय भी कुछ लोग यह आरोप समाजवादी विचारधारा पर लगाते थे कि समाजवादी देश को गरीब बनाकर रखना चाहते हैं या समाजवाद गरीबी का दर्शन है और तब भी समाजवादियों ने यह उत्तर दिया था कि समाजवाद गरीबी का दर्शन नहीं है। 09 जुलाई 25 के दैनिक भास्कर के दिल्ली संस्करण में श्री हरिवंशजी का एक लेख गरीबी समाजवाद नहीं है आर्थिक संपन्नता जरूरी है शीर्षक से छपा है। चूँकि यह लेख श्री हरिवंश जी का है, जो राज्यसभा के उपसभापति तो हैं ही हमारे पुराने समाजवादी साथी व मित्र भी हैं इसलिये उनके इस लेख की भावना जो भी रही हो परंतु समाजवाद की विचारधारा के विरोधी इसे अपने हथियार के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं। इस लेख में उन्होंने फरवरी में इन्वेस्ट केरल ग्लोबल समिट को लेकर लिखा है कि इस समिट में राजनीति के तीन धुव भा.क.पा.,कांग्रेस व एन.डी.ए. एक मंच पर थे। जहाँ केरल सरकार का देशी, विदेशी निवेशकों को न्यौता था उनके अनुसार इसका संदेश साफ था कि पूँजी व उद्योगपतियों का स्वागत है आर्थिक सुधारों व प्रगति को सर्वोच्च प्राथमिकता होगी। उन्होंने मुख्यमंत्री को उद्दत करते हुए लिखा है कि केरल ने नौकरशाही ढाँचे की सफाई की हैं, निवेशक फ्रेंडली बनने के लिये बड़े बदलाव किये हैं। इस समिट में श्री नितिन गडकरी जी ने कहा कि 3 लाख करोड़ की सड़क योजनायें केरल में पूरी होगी। उन्होंने इस अवसर पर 31 नई परियोजनाओं की सौगात भी दी। हरिवंश जी के अनुसार विपक्षी कांग्रेसी नेता वीडी सत्तीशन ने कहा कि राजनैतिक विवादों से परे हमारा सामूहिक लक्ष्य ये है कि केरल आर्थिक समृद्धि व औद्योगिक श्रेष्ठता का पर्याय बने।विपक्ष ने नई संस्कृति शुरू  की है, हम सरकार को पूरा समर्थन दे रहे हैं, सरकार से अनुरोध है कि जब आप विपक्ष में हों तो यही संस्कृति अपनाये।

   केरल में जो नई औद्योगिक नीति बनी है उसके अनुसार 2023 में केरल में लगभग 3 लाख एमएसएमई यूनिटस ने लगभग 250 करोड़ की पूँजी जुटाई (33.2 मिलियन डॉलर) देश का पहला टेक्नो पार्क 180 मिलियन डॉलर याने लगभग 1500 करोड़ और डिजिटल साइंस पार्क भी लगभग इतनी ही राशि से सरकार ने बनाया है। श्री हरिवंश जी ने यह निष्कर्ष निकाला है कि साम्यवादी केरल ने पूँजीवादी निवेश उद्यमिता का महत्व अब हड़ताल, आंदोलन, अनावश्यक यूनियनबाजी के अनुभवों के बाद समझा है। चीन ने अपनी यात्रा के 29 वर्षों के बाद 1978 में ही माना था कि गरीबी समाजवाद नहीं है। संपन्न होना गौरवपूर्ण है। चीन के तत्कालीन मुखिया डेंग जियाओपिंग के इस कथन के साथ यह भी कि आर्थिक ताकत ही मुल्कों का भविष्य तय करेगी। श्री हरिवंश जी के मुताबिक साम्यवादियों ने बदले वक्त की नब्ज पहचान ली है।

   दरअसल भारत में कांग्रेस पार्टी की सरकार ने 1 जनवरी 95 को वैश्वीकरण के कुख्यात समझौते डब्ल्यूटीओ के मसौदे पर हस्ताक्षर किये थे और उसके बाद से देश की लगभग सभी बड़ी संसदीय विरोधी पार्टियाँ भी डब्ल्यूटीओ के पालन के मंत्र का जाप करती रही है, चाहे वह प्रधानमंत्री  स्वं अटलबिहारी वाजपेयी रहे हों, श्री देवगोड़ा हों, स्वंगुजराज हों, स्वं डॉ मनमोहन सिंह हों या वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हों। इस वैश्वीकरण के समझौते के बाद देश में इन सभी सरकारी व गैर सरकारी दलों ने विदेशी पूँजी निवेश को ही अपना आदर्श लक्ष्य माना है।

   परंतु क्या पिछले 30 वर्षों में देश में गरीबी वास्तव में घटी है, अगर घटी है तो श्री हरिवंश जी को यह उत्तर भी देना चाहिये कि वर्तमान सरकार जिसके वे अप्रत्यक्ष हिस्से है, पिछले 11 वर्षों से 85 करोड़ लोगों को 5 किलो अनाज पेट भरने के लिये क्यों दे रही है और देश की लगभग 65 प्रतिशत आबादी इसके लिये लाचार क्यों है? देश की करोड़ों मातायें, बहिनें महीने के 1000 या 1500 रुपये लाड़ली बहिन योजना के तहत लेने को लाचार क्यों हैं?

    निश्चित ही चीन ने श्री डेंग जियाओपिंग के कार्यकाल में पूँजीवादी रास्ता चुना है और अपने इस रास्ते के बचाव के लिये बाजार समाजवाद शब्द का प्रयोग किया है। परंतु वस्तुस्थिति यह है कि आज चीन में निजी पूँजी के बड़े-बड़े टापू खड़े हो चुके हैं और पूँजीवाद ने साम्यवादी विचार को जड़ों से उखाड़ दिया है। इतना ही साम्यवाद चीन या रूस में बचा है कि वहाँ साम्यवादी पार्टी की सत्ता है और दोनों जगह वह निरंकुश तानाशाही का पर्याय है। चीन दुनिया की एक बड़ी आर्थिक शक्ति है परंतु इसका बड़ा कारण चीन का सस्ता और लाचार श्रमिक हैं। सर्वहारा की तानाशाही के नाम पर चीन के करोड़ों लोग कम मजदूरी पर और अधिक समय तक काम करने को लाचार हैं। वे न हड़ताल कर सकते हैं, न मांग कर सकते हैं और न विरोध कर सकते हैं। क्योंकि इन सबका या लोकतंत्र का उत्तर चीन में केवल गोली है। तियानमेन चैक पर सैकड़ों छात्रों की नृशंस हत्या को कैसे भुलाया जा सकता है।

   केरल के 3 लाख स्टार्टअप के पूँजी निवेश में औसतन प्रति स्टार्टअप योगदान लगभग 10000 रुपया प्रति स्टार्टअप है, यह कौन सा बड़ा पूँजी निवेश है जिससे श्री हरिवंश जी प्रभावित हैं? वैसे भी केरल अपने आरंभ से ही एक शिक्षित और संपन्न प्रदेश रहा है, जहां शत-प्रतिशत शिक्षा का लक्ष्य दशकों पहले ही पा लिया गया था और केरल की बड़ी आबादी आज लगभग पूरी दुनिया में (विदेशों में) फैली है, जो प्रतिवर्ष लाखों रुपये विदेश से कमाकर अपने घरों को भेजते हैं। केरल की स्थिति यह है कि खेती पर काम करने वाले मजदूर पिछले 10 वर्षों से अधिक से मणिपुर, नागालेंड आदि प्रदेशों से आकर काम कर रहे हैं क्योंकि केरल के विदेशी रिश्तेदारों के द्वारा भेजे गये धन के कारण अब वहाँ के लोग हाथ से काम नहीं करना चाहते। केरल का बड़ा इलाका समुद्र तट से जुड़ा है और माल वाहक पानी के जहाजों का लंबे समय से वहाँ काम रहा है, इसके कारण वहाँ बड़े-बड़े बंदरगाह हैं।

   समाजवाद का मतलब गरीबी कभी भी नहीं था बल्कि गरीबी को मिटाकर संपन्नता लाने का था और संपन्नता के साथ-साथ समानता। संपन्नता दो प्रकार की हो सकती है, एक-अमीरी के चंद टापू को बनाने वाली और दूसरे समानता के साथ संपन्नता। संपन्नता 140 करोड़ के चीन में हैं पर कितने लोगों की है। वस्तुस्थिति यह है कि जिस प्रकार अमेरिका में हजार दो हजार खरबपति हैं जिनके पास अमेरिका की संपत्ति का दो तिहाई से अधिक हिस्सा है और अब यही स्थिति चीन और रूस की है कि वहाँ भी कुछ सैकड़ा खरबपति हैं, बकाया सारे देश की आबादी सामान्य जीवन जी रही है। भारत देश की 140 करोड़ आबादी संपन्न बने यह समाजवाद भी चाहता है परंतु करोड़ों की लाश पर चंद अमीर अरब खरब पति बनें यह समाजवाद नहीं चाहता।

   श्री हरिवंश जी ने एक प्रकार से हड़ताल, आंदोलन और यूनियन के गठन को गैर जरूरी तथा संपन्नता के रास्ते के खिलाफ बताया है। उनका यह कथन एक प्रकार से भारतीय संविधान के उस महत्वपूर्ण खंड को ही नकारता है जिसकी शपथ लेकर उन्होंने राज्यसभा का स्थान लिया था। संविधान ने शांतिपूर्ण तरीके से आंदोलन, हड़ताल और इसके लिये यूनियन के गठन को एक वैधानिक रास्ते के रूप में मान्यता दी है। यह लोकतंत्र की बुनियाद भी है, अगर लोकतंत्र में अपनी बात को कहने का अधिकार न हो, शांतिपूर्ण सविनय अवज्ञा और प्रतिकार का अधिकार न हो, अपनी राय अभिव्यक्त करने का अधिकार न हो तो लोकतंत्र नहीं बचेगा। मुझे लगता है कि श्री हरिवंश जी ने भावावेश में यह पंक्तियाँ लिखी हैं। महात्मा गांधी और डा लोहिया ने तो सिविल नाफरमानी को जनतंत्र का मूल आधार बताया था। श्री हरिवंश जी ने स्वयं चन्द्रशेखर जी पर एक अच्छी पुस्तक लिखी है। श्री चन्द्रशेखर उनके आदर्श रहे हैं, परंतु श्री चन्द्रशेखर जी ने भी कभी भी शांतिपूर्ण हड़ताल आंदोलन व यूनियन बनाने का विरोध नहीं किया।

    यह स्थापना इसलिये भी चिंताजनक है कि अगर यह मान लिया जायेगा कि हड़ताल,यूनियन और मजदूर आंदोलन विकास के अवरोध हैं तो किसी दिन यह तर्क विपक्ष के राजनैतिक दलों की जरूरत पर भी प्रश्न चिन्ह खड़े करेगा, कि देश में इनकी आवश्यकता क्या है? चीन व रूस में तो एक ही दल है और कोई यह भी कह सकता है कि चीन व रूस का विकास केवल एक दलीय तानाशाही प्रणाली से हो रहा है। इसलिये भारत देश के विकास के लिये एक दलीय तानाशाही होना चाहिये।

   रोटी बनाम आजादी, याने रोटी बनाम लोकतंत्र की बहस 19वीं सदी के आरंभ से दुनिया में साम्यवादियों ने शुरू की थी और विकल्प रखा था कि रोटी चाहिए या आजादी। इसका उत्तर डा. लोहिया ने दिया था कि हमें रोटी व आजादी दोनों चाहिए तथा दोनों साथ मिल सकते हैं। आज श्री हरवंश जी ने उसी विचार पर नया रूप प्रस्तुत किया है कि संपन्नता चाहिये या लोकतंत्र और मैं कहना चाहता हूँ कि संपन्नता व लोकतंत्र तथा समता और संपन्नता दोनों साथ-साथ चाहिये तथा इसे साथ-साथ हासिल भी किया जा सकता है।

सम्प्रति- लेखक श्री रघु ठाकुर जाने माने समाजवादी चिन्तक और स्वं राम मनोहर लोहिया के अनुयायी हैं।श्री ठाकुर लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के भी संस्थापक अध्यक्ष हैं।