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म.प्र. में बड़ी चुनौती: पारिवारिक मोह छोड़ें या जिताऊ चेहरा तलाशें? – अरुण पटेल

अरूण पटेल

लोकसभा चुनाव के लिए तारीखों की घोषणा के साथ ही चुनावी बिसात बिछना तेज हो गया है और 26 सीटों पर काबिज भारतीय जनता पार्टी और तीन सीटों पर काबिज कांग्रेस के लिए अपने-अपने लक्ष्य की पूर्ति करने के लिए जिताऊ चेहरों की तलाश करना आसान नहीं है। जहां तक लोकसभा चुनाव का सवाल है इक्का-दुक्का अपवादों को छोड़कर जीत-हार कर परचम भाजपा या कांग्रेस ही लहराती रही है। हमेशा कांग्रेस पर परिवारदार का आरोप लगाने वाली भाजपा में इस समय सबसे बड़ी समस्या परिवारवाद ही है, क्योंकि उसके नेता अपने बेटे-बेटियों या नाते-रिश्तेदारों को चुनावी समर में उतारना चाहते हैं। भाजपा में कोई अपने बेटे-बेटियों के लिए टिकिट मांग रहा है तो कोई भाई के लिए और ऐसे-ऐसे तर्क दिए जा रहे हैं जिससे कि उनका पक्ष मजबूत हो। विधानसभा चुनाव में हारे कुछ भाजपा और कांग्रेस नेता लोकसभा में अपनी किस्मत आजमाने के मकसद से टिकटों की दावेदारी कर रहे हैं तो कुछ ऐसे लोग जो विधानसभा की गाड़ी चूक गये थे वे लोकसभा चुनाव की गाड़ी में अपनी किस्मत आजमाने के लिए जमीन आसमान एक कर रहे हैं। भाजपा के सामने सबसे बड़ी समस्या यह है कि वह आधे से अधिक यानी लगभग 16 लोकसभा सदस्यों का टिकट काटे तो ही शायद अपने लक्ष्य के कुछ करीब पहुंच सके, लेकिन ऐसा करना उसके लिए आसान नहीं होगा। वह कुछ की सीटें भी बदल सकती है तो बाकी कितनों को बेटिकट कर पायेगी इस पर ही उसकी चुनावी संभावनाएं निर्भर करेंगी। कांग्रेस के सामने टिकट काटने का तो कोई संकट नहीं है क्योंकि पिछले लोकसभा चुनाव में जीते उसके दो उम्मीदवार ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ में से कमलनाथ विधायक का चुनाव लड़ेंगे और वहां नये चेहरे के रुप में उनके बेटे नकुलनाथ चुनावी समर में ताल ठोकेंगे। देखने वाली बात यही होगी कि दोनों ही पार्टियां कितने उम्मीदवारों को पैराशूट से उतारेंगी और वास्तविक मजबूत जनाधार वाले नेताओं को उनके वाजिब हक से वंचित करेंगी।

इन दिनों कांग्रेस और भाजपा दोनों ही पार्टियों में प्रत्याशियों को लेकर माथापच्ची अंतिम चरण में है और हो सकता है कि इस बार कांग्रेस में प्रत्याशियों की घोषणा होने के बाद भाजपा अपने पत्ते खोले। यह भी हो सकता है कि जितने चरणों में चुनाव हो रहा है उतने ही चरणों में वह अपने उम्मीदवारों के नाम सामने लाये। कांग्रेस भी कुछ क्षेत्रों में भाजपा के पत्ते खुलने का इंतजार करने की रणनीति पर आगे बढ़ सकती है। कांग्रेस के सामने जबलपुर, भोपाल, इंदौर,रीवा, विदिशा, खरगोन, धार, देवास, उज्जैन सहित लगभग डेढ़ दर्जन ऐसे क्षेत्र हैं जहां जीतने वाले दमदार चेहरे उसके पास नहीं हैं और यहां उसे उम्मीदवारों के चयन में ज्यादा मशक्कत करना पड़ रही है। वहीं भाजपा के सामने भी लगभग एक दर्जन से कुछ अधिक सांसदों के स्थान पर नये चेहरों की तलाश एक बड़ी समस्या बनी हुई है। भाजपा व कांग्रेस दोनों में ही ऐसे नेताओं की लम्बी कतार है जो अपने बेटे-बेटियों या पत्नियों के लिए टिकट का दावा कर रहे हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान आरंभ से कह रहे हैं कि उनकी पत्नी साधना सिंह टिकट की दावेदार नहीं हैं लेकिन इसके बावजूद विदिशा क्षेत्र के लोग साधना सिंह को ही प्रत्याशी बनाये जाने की जोरशोर से मांग कर रहे हैं। पूर्व मंत्री रामपाल सिंह का भी यही मानना है कि साधना सिंह को ही यहां से उम्मीदवार बनाया जाए क्योंकि वे सबसे मजबूत उम्मीदवार होंगी। टिकट के लिए दांवपेंच भाजपा में ही नहीं कांग्रेस में भी चल रहे हैं। दोनों ही पार्टियों में नाते-रिश्तेदारों को टिकट दिलाने की होड़ लगी हुई है।

लोकसभा चुनाव में भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती पुन: आदिवासी मतदाताओं का विश्‍वास जीतना होगी जिनका झुकाव 2014 के बाद हुए उपचुनावों तथा हाल के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की तरफ काफी झुक गया था। मुख्यमंत्री कमलनाथ के एजेंडे में प्राथमिकता सूची में आदिवासी मतदाताओं का दिल जीत कर उनके बीच में और अधिक जनाधार बढ़ाने की है तो दूसरी ओर अपेक्षाकृत भाजपा के पक्ष में मजबूती से खड़े पिछड़े वर्ग के मतदाताओं को कांग्रेस से जोड़ने के लिए ओबीसी आरक्षण करने का दांव भी उन्होंने चल दिया है। प्रदेश में अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सभी 6 लोकसभा सीटों पर पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने कब्जा जमाया था, लेकिन दिलीपसिंह भूरिया के निधन के बाद कांग्रेस के कांतिलाल भूरिया ने झाबुआ संसदीय सीट पर धमाकेदार जीत दर्ज कराते हुए यह सीट भाजपा से उपचुनाव में छीन ली थी। शहडोल उपचुनाव में भी कांग्रेस लगभग 60 हजार मतों से ही हारी थी लेकिन 2014 के चुनाव में जीत-हार का एक बहुत बड़ा अन्तर यहां उसने पाट लिया था। कांग्रेस इस सीट को जीतने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगायेगी और यदि गोंडवाना गणतंत्र पार्टी से उसकी कोई सहमति हो गयी तो यह सीट बचाना भाजपा के लिए आसान नहीं रहेगा। पिछले लोकसभा चुनाव में शहडोल संसदीय क्षेत्र की आठ विधानसभा सीटों में से अधिकांशत: भाजपा काबिज थी जबकि अब चार पर कांग्रेस और चार पर भाजपा का कब्जा है यानी यहां कांटे का मुकाबला होगा। मंडला लोकसभा सीट पर भी भाजपा की राह अब आसान नहीं बची है क्योंकि इस लोकसभा में आने वाले आठ विधानसभा क्षेत्रों में से छ: सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है जबकि भाजपा के खाते में केवल दो सीटें आई हैं।  बैतूल में भाजपा की राह कुछ अधिक कांटेदार हो गयी है क्योंकि उसकी लोकसभा सदस्य ज्योति धुर्वे के जाति प्रमाण पत्र को लेकर मामला काफी पेचीदा हो गया है, इसलिए यहां उसे नये उम्मीदवार की तलाश होगी। 2014 में यहां भाजपा की मजबूत पकड़ थी, लेकिन अब चार विधायक कांग्रेस के और चार भाजपा के हैं। खरगोन लोकसभा क्षेत्र में भी भाजपा के लिए प्रतिकूल परिस्थितियां हैं इसलिए यहां अपनी सीट बचाये रखने के लिए उसे एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ेगा। इस समय आठ में से छ: क्षेत्रों में कांग्रेस, एक पर निर्दलीय और महज एक पर भाजपा का कब्जा है। इसी प्रकार धार लोकसभा सीट भी भाजपा के लिए डेंजर जोन में आ गयी है क्योंकि आठ क्षेत्रों में से छ: पर यहां कांग्रेस काबिज हो गयी है।

और यह भी

बेटे-बेटियों, पत्नियों को टिकट दिलाने के लिए दिलचस्प तर्क के साथ विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव का कहना है कि जब किसान का बेटा किसानी करता है, अधिकारी का बेटा सरकारी नौकरी करता है, सेठ का बेटा व्यापार करता है तो फिर क्या नेता के बेटे को भीख मांगना चाहिए। उल्लेखनीय है कि चौधरी देवीलाल ने उपप्रधानमंत्री बनने के बाद अपने बेटे ओमप्रकाश चौटाला को हरियाणा का मुख्यमंत्री बनाया था। भोपाल पत्रकार भवन में आयोजित मीट द प्रेस में जब एक वरिष्ठ पत्रकार ने उनसे सवाल पूछा कि आपने अपने बेटे को मुख्यमंत्री बना दिया तो तुरत ही देवीलाल ने कहा कि बेटे को नहीं बनाउंगा तो क्या तेरे को बनाउंगा,और बाकी तर्क गोपाल भार्गव जैसे ही थे। उल्लेखनीय है कि भार्गव दमोह लोकसभा क्षेत्र से अपने बेटे अभिषेक भार्गव के लिये टिकट की दावेदारी कर रहे हैं।  पूर्व मंत्री जालम सिंह पटेल अपने भाई प्रहलाद पटेल के लिए होशंगाबाद से टिकट मांग रहे हैं तो इसी क्षेत्र से पूर्व विधानसभा अध्यक्ष एवं भाजपा विधायक डॉ सीतासरन शर्मा अपने भाई गिरिजा शंकर शर्मा या भतीजे पीयूष शर्मा को टिकट देने की मांग कर रहे हैं। पूर्व मंत्री गौरीशंकर बिसेन भी अपनी बेटी मौसम के लिए टिकट चाहते हैं तो वहीं पूर्व वित्तमंत्री राघवजी भाई अपनी बेटी ज्योति शाह के लिए लोकसभा के लिए टिकट मांग रहे हैं। दूसरी ओर गृहमंत्री बाला बच्चन अपनी पत्नी प्रवीणा बच्चन के लिए और उच्च शिक्षा मंत्री जीतू पटवारी इंदौर से अपनी पत्नी के लिए दावेदारी कर रहे हैं, मंत्री द्वय तुलसी सिलावट एवं सज्जन सिंह वर्मा अपने बेटों के लिए टिकट चाह रहे हैं, तो वहीं पूर्व सांसद व पूर्व विधायक सुंदरलाल तिवारी जिनका हाल ही में निधन हुआ है उनके  बेटे सिद्धार्थ तिवारी अब रीवा से कांग्रेस के उम्मीदवार हो सकते हैं।

भाजपा में यह सवाल उठ रहा है कि जब छत्तीसगढ़ में रमन सिंह के बेटे, राजस्थान में वसुंधरा राजे सिंधिया के बेटे, उनके मुख्यमंत्री रहते लोकसभा सदस्य बन सकते हैं तो फिर पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की पत्नी साधना सिंह विदिशा से उम्मीदवार क्यों नहीं हो सकतीं जबकि वे महिला मोर्चे में लम्बे समय से सक्रिय हैं तथा किरार समाज की राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं।

 

सम्प्रति-लेखक श्री अरूण पटेल अमृत संदेश रायपुर के कार्यकारी सम्पादक एवं भोपाल के दैनिक सुबह सबेरे के प्रबन्ध सम्पादक है।