
बेंगलुरु/रायपुर, 12 सितम्बर।पूर्व मुख्यमंत्री एवं छत्तीसगढ़ विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह ने कहा कि विधायी संस्थाएं केवल कानून बनाने वाली मशीनें नहीं हैं, बल्कि वे लोकतंत्र की आत्मा हैं, जहाँ जनता की आकांक्षाओं को अभिव्यक्ति मिलती है। संवाद और चर्चा ही वह शक्ति है, जो लोकतंत्र को जीवंत और जनोन्मुख बनाए रखती है।
डा.सिंह ने बेंगलुरु स्थित विधानसौध में आयोजित राष्ट्रमंडल संसदीय संघ (CPA) भारत क्षेत्र के 11वें राष्ट्रीय सम्मेलन में अपने संबोधन में कहा कि “लोकतंत्र का मूलाधार संवाद और विमर्श है। संसद और विधानसभाएँ तभी फलती-फूलती हैं, जब उनमें खुले मन से सार्थक और रचनात्मक चर्चा हो। यही प्रक्रिया जनता के विश्वास को मजबूत करती है।”
उन्होंने कहा कि पारदर्शिता और जवाबदेही संवाद का सबसे बड़ा प्रतीक है। स्वस्थ संवाद यह सुनिश्चित करता है कि सरकार की नीतियां जनता के सामने खुली हों और विपक्ष को भी सरकार की नीतियों की समीक्षा का पर्याप्त अवसर मिले। इससे जनता का विश्वास सुदृढ़ होता है।डॉ.सिंह ने नीति-निर्माण में संवाद की महत्ता बताते हुए कहा कि जब किसी विधेयक पर गहन चर्चा होती है, तो उसके सभी पहलुओं लाभ, कमियाँ और दीर्घकालिक प्रभाव पर विचार किया जाता है। इस प्रक्रिया से जो कानून निकलता है, वह अधिक मजबूत और संतुलित होता है।
डॉ. सिंह ने विशेष रूप से विधानसभा अध्यक्ष की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए कहा कि अध्यक्ष लोकतंत्र के प्रहरी होते हैं। “अध्यक्ष की निष्पक्षता, अनुशासन बनाए रखने की क्षमता और सभी दलों को समान अवसर देने का दृष्टिकोण ही सदन को सार्थक संवाद का मंच बनाता है। समितियों को सक्रिय करना और तकनीकी विषयों पर चर्चा को प्रोत्साहित करना भी अध्यक्ष की जिम्मेदारी है।”
इस सम्मेलन की अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने की जिसमें भारत के विभिन्न राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों के विधानमंडलों के सभापति, अध्यक्ष, पीठासीन अधिकारी एवं सचिवगणों ने भाग लिया।
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