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मोदी-सेना: हिंद की सेना के नए नामकरण के राजनीतिक-निहितार्थ – उमेश त्रिवेदी

उमेश त्रिवेदी

भारतीय जनता पार्टी और उसके नेताओं के चुनाव अभियान में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रति गहराता भक्ति-भाव और समर्पण का आवेश व्यक्ति-पूजा के नित नए आयाम गढ़ रहा है। वैसे तो देश के सभी प्रधानमंत्रियों की खुशामद के किस्सों से राजनीतिक इतिहास के पन्ने रंगे हुए हैं, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के झंडाबरदार ’इंदिरा इज इंडिया’ और ’इंडिया इज इंदिरा’ की जज्बाती किंवदंतियों को पीछे ढकेलते हुए उनकी खुशामद के नए कथानक पेश कर रहे हैं। ताजा उदाहरण उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का वह भाषण है कि जिसमें उन्होंने भारत की सेना को ’मोदी की सेना’ के नए नामकरण से नवाजा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की स्तुति का यह अध्याय नया नहीं हैं, लेकिन यह विवादास्पद इसलिए है कि योगी आदित्यनाथ ने मोदी के गुणगान को भारत की नभ-जल और थल सेना के शौर्य के साथ गूंथ दिया है।

लोकसभा चुनाव के दौर में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के इस कथन ने राजनीतिक विवाद का रूप ले लिया है। चुनाव आयोग से इसकी शिकायत हो चुकी है और जांच पड़ताल जारी है। उल्लेखनीय है कि पुलवामा-अटैक के बाद चुनाव आयोग ने सभी राजनीतिक दलों को स्पष्ट दिशा निर्देश जारी किए थे कि चुनाव प्रचार के दौरान सैनिकों और सैन्य-बलों के अभियानों के जिक्र से बचा जाए। आयोग ने इसे आचार संहिता का स्पष्ट उल्लंघन बताते हुए कहा था कि राजनेता सोशल मीडिया पर भी सैन्य अभियानों की तस्वीरों और संबद्ध सामग्री के प्रसारण से बचें।

यह विवादास्पद टिप्पणी रविवार को गाजियाबाद में पूर्व सेनाध्यक्ष और केन्द्रीय मंत्री वीके सिंह की चुनावी सभा में की गई थी। योगी आदित्यनाथ ने रैली को संबोधित करते हुए भारतीय सेना को ’मोदीजी की सेना’ संबोधित किया था। ’मोदीजी की सेना’ के रूप में भारतीय सेना के नामकरण पर मंच पर विराजमान पूर्व थल सेनाध्यक्ष जनरल वीके सिंह की खामोशी और सहमति आश्‍चर्यजनक और चौंकाने वाली है कि एक सेनाध्यक्ष ने इसे कैसे कबूल कर लिया?  उन्होंने तत्काल इसका प्रतिवाद क्यों नहीं किया? जनरल वीके सिंह के भीतर मौजूद ’वीर सिपाही’ की देश-भक्ति कहां सो गई थी? क्या राजनीति ने उनके सोच की प्राथमिकताओं में सेना के गौरव को हाशिए पर ढकेल दिया है?

बहरहाल, राजनीति की मजबूरियों और स्वार्थों के चलते मोदी-सेना के नामकरण पर जनरल वीके सिंह ने भले ही खामोशी ओढ़ ली हो, लेकिन उनके ही संगी-साथियों को यह बात कांटे की तरह चुभी है। नौसेना के पूर्व-प्रमुख एडमिरल एल रामदास और सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल एचएस पनाग ने योगी आदित्यनाथ के कथन पर गहरी आपत्ति दर्ज कराई है। योगी की अनर्गल टिप्पणी को सैनिकों और सेना ने पसंद नहीं किया है। एडमिरल रामदास के आक्रोश का अंदाज इसी से लग सकता है कि उन्होंने भारतीय सेना को मोदी-सेना कहने पर चुनाव आयोग को शिकायत कर दी है। उनका कहना है कि देश की सेनाएं किसी व्यक्ति विशेष से जुड़ी नहीं होती हैं। वो देश की होती हैं और देश की सेवा के लिए होती हैं। लोकसभा चुनाव खत्म होने तक मुख्य चुनाव आयुक्त ही सर्वेसर्वा होते हैं, इसीलिए मैंने उनके पास इसकी शिकायत भेज दी है।

सेना मोदी और भारतीय जनता पार्टी की  राष्ट्रवादी रणनीति का हिस्सा है। पुलवामा और बालाकोट एयर-स्ट्राइक के बाद मोदी की सभाओं के बैक-ड्रॉप में सेना के शहीदों के चित्र लगाए गए थे। मोदी के भाषणों की सेंट्रल-थीम सेना के इर्दगिर्द केन्द्रित रहती है। वैसे भी मोदी-सरकार अपने राजनीतिक हितों को साधने के मामले में सेना का उपयोग करने में पीछे नहीं रही है। राफेल मामले में भी सफाई देने के लिए मोदी-सरकार ने एयर चीफ मार्शल धनोआ को आगे कर दिया था। राजनीतिक आरोपों के जवाब में सेना को कवच बनाने का उपक्रम देश को खतरनाक दिशा की ओर ले जा रहा है। मोदी-सरकार अपनी राजनीति और राजनीतिक-निहितार्थों को पूरा करने के लिए सेना को इंस्ट्रुमेंट की तरह उपयोग करने की ओर मुखातिब हैं। राष्ट्रवाद के नाम पर सेना को राजनीति का सूत्रधार बनाना लोकतंत्र के लिए घातक है।

इस एपीसोड पर लेफ्टिनेंट जनरल पनाग की यह टिप्पणी गौरतलब है कि योगी ने जो कुछ किया वह आश्‍चर्यजनक नहीं है। इससे इसलिए हैरान नहीं होना चाहिए कि मोदी सरकार के ज्यादातर मंत्री भाजपा की राष्ट्रवादी राजनीतिक थीम को पुख्ता करने के लिए सेना के नाम का उपयोग करते रहे हैं। लेकिन क्या देश की जनता यह महसूस करेगी कि राजनेताओं के ये बयान सेना को राजनीतिकरण की ओर ले जाते हैं? योगी का बयान जाने-अंजाने सेना को राजनीतिकरण की ओर ढकेल रहा है। ऐ मेरे वतन के लोगों के मार्मिक गीत के अंत में कवि प्रदीप ने लिखा था- जय हिंद की सेना… जय हिंद की सेना… सवाल यह है कि हिंद की सेना क्या अब मोदी-सेना के रूप में जानी जाएगी… ऐसे में उसके प्रेरणास्रोत क्या होंगे..?

 

सम्प्रति- लेखक श्री उमेश त्रिवेदी भोपाल एनं इन्दौर से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के प्रधान संपादक है। यह आलेख सुबह सवेरे के 04 अप्रैल के अंक में प्रकाशित हुआ है।वरिष्ठ पत्रकार श्री त्रिवेदी दैनिक नई दुनिया के समूह सम्पादक भी रह चुके है।