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महाकोशल में कमलनाथ और राकेश सिंह की प्रतिष्ठा दांव पर – अरुण पटेल

अरूण पटेल

महाकोशल अंचल की छह लोकसभा सीटों पर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और मुख्यमंत्री कमलनाथ तथा प्रदेश भाजपा अध्यक्ष राकेश सिंह दोनों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। इस क्षेत्र के अन्तर्गत आने वाले छ: लोकसभा क्षेत्रों में से केवल एक छिंदवाड़ा कांग्रेस का अभेद्य किला है और भाजपा अभी तक वहां लोकसभा के आम चुनाव में जीत हासिल नहीं कर पाई है। हालांकि एक उपचुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा ने कमलनाथ को चुनाव में हरा दिया था। कमलनाथ और राकेश सिंह दोनों ही महाकोशल अंचल के हैं और काफी अंतराल के बाद दोनों पार्टियों के प्रदेश अध्यक्ष इस अंचल का वर्तमान में प्रतिनिधित्व भी कर रहे हैं। विधानसभा चुनाव के पूर्व संगठनात्मक बदलाव के तहत इन दोनों नेताओं को पूरे विश्‍वास के साथ पार्टियों की बागडोर सौंपी गई थी। विधानसभा चुनावों की चुनौती में तो कमलनाथ सफल रहे और उनके नेतृत्व में प्रदेश में कांग्रेस सरकार भी बन गई, लेकिन राकेश सिंह उस कसौटी पर खरे नहीं उतर पाए, क्योंकि महाकोशल अंचल में कांग्रेस ने भाजपा से काफी सीटें छीन लीं।

पिछले लोकसभा चुनाव में हासिल की गईं पांच सीटें अपने पास रख पाना राकेश सिंह के लिए आसान नहीं होगा जबकि बदले हुए परिवेश में कमलनाथ इस अंचल में जितनी अधिक सीटें भाजपा से छीनकर काग्रेस की झोली में डालेंगे उतनी अधिक उपलब्धि उनके खाते में दर्ज होगी। इस क्षेत्र में भाजपा को लोकसभा चुनाव में हराकर कुछ सीटें अपनी झोली में डालने का सुनहरा अवसर कांग्रेस के लिए इस मायने में माना जाएगा कि लम्बे अंतराल के बाद इसको राजनीतिक फलक पर सर्वाधिक महत्व मिला है। मुख्यमंत्री के अलावा वित्त मंत्री और विधानसभा अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष सहित पूर्व की तुलना में अपेक्षाकृत अधिक काबीना मंत्री महत्वपूर्ण विभागों के साथ इस अंचल का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। इसके साथ ही राज्यसभा सदस्य और अब जबलपुर से कांग्रेस उम्मीदवार विवेक तन्खा के प्रयासों से पहली बार जबलपुर में कमलनाथ मंत्रिमंडल की बैठक हुई तथा सरकार जबलपुर सहित इस अंचल के विकास को सर्वोच्च प्राथमिकता देने का संकेत लगातार दे रही है।

क्या जबलपुर में सेंध लगा पाएंगे विवेक तन्खा?

महाकोशल अंचल की राजनीतिक फिजा जबलपुर से बनती है। इस सीट पर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह और कांग्रेस उम्मीदवार विवेक तन्खा के बीच असली चुनावी लड़ाई होने जा रही है। दोनों के लिए यह सीट जीतना काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि यदि कांग्रेस जीतती है तो वह भाजपा के धीरे-धीरे मजबूत होते जा रहे इस गढ़ में सेंध लगा देगी। वहीं प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते राकेश सिंह के लिए यह सीट जीतना नाक का सवाल बन गया है। कभी कांग्रेस के मजबूत रहे इस गढ़ पर धीरे-धीरे भाजपा ने अपनी काफी मजबूत पकड़ बना ली है। 2014 के चुनाव को देखा जाए तो मोदी लहर में राकेश सिंह ने विवेक तन्खा को 2 लाख 8 हजार 639 मतों के अन्तर से शिकस्त दी थी। दस लाख दो हजार 184 मतों में से राकेश सिंह को 56.34 प्रतिशत यानी 4 लाख 64 हजार 609 मत मिले थे जबकि विवेक तन्खा को 35.25 प्रतिशत यानी 3 लाख 55 हजार 970 वोट मिले। इस चुनाव में राकेश सिंह ने हर क्षेत्र में विवेक तन्खा पर अच्छी-खासी बढ़त ली थी, केवल जबलपुर उत्तर एकमात्र ऐसा क्षेत्र था जहां विवेक तन्खा ने कड़ी टक्कर दी और वे राकेश सिंह से मात्र 233 मतों से पिछड़ गए थे। अब परिदृश्य बदला हुआ है। पिछले लोकसभा चुनाव के समय कांग्रेस के दो विधायक थे तो अब भाजपा व कांग्रेस में मुकाबला बराबरी का है और दोनों के चार-चार विधायक हैं। चार में दो कांग्रेस विधायक तरुण भानोट और लखन घनघोरिया काबीना मंत्री हैं। इस सीट पर जीत का परचम लहराने के लिए विवेक तन्खा को एड़ी-चोटी का जोर लगाना होगा तो राकेश सिंह को भी लोहे के चने चबाने होंगे।

क्या मंडला सीट कुलस्ते बचा पाएंगे?

अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित मंडला लोकसभा सीट में सिवनी और नरसिंहपुर जिले की कुछ विधानसभा सीटें भी आती हैं। फग्गन सिंह कुलस्ते भाजपा के इस अंचल में एक बड़े आदिवासी चेहरे हैं लेकिन कुलस्ते को लेकर क्षेत्र के मतदाताओं में तो असंतोष पनपा ही है और उन्हें मंत्रिमंडल विस्तार में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बाहर का रास्ता दिखा दिया था। 2014 के लोकसभा चुनाव में कुलस्ते को कुल 48.7 प्रतिशत यानी 5 लाख 85 हजार 720 मत मिले थे और उन्होंने कांग्रेस के ओंकार सिंह मरकाम को 1 लाख 10 हजार 469 मतों के अन्तर से पराजित किया। मरकाम को 39 प्रतिशत यानी 4 लाख 75 हजार 251 मत मिले थे। इसी चुनाव में दो विधानसभा क्षेत्रों में मरकाम को कुलस्ते से ज्यादा मत मिले थे जबकि शेष क्षेत्रों में कुलस्ते ने बढ़त हासिल की थी। हाल ही के विधानसभा चुनाव में परिदृश्य और बदल गया है क्योंकि अब आठ में से 6 विधायक कांग्रेस के हैं जिनमें से ओंकार सिंह मरकाम कमलनाथ सरकार में काबीना मंत्री हैं तो नर्मदाप्रसाद प्रजापति मध्यप्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष हैं। ऐसे में लाख टके का सवाल यह है कि क्या कुलस्ते अपनी सीट बचा पाएंगे।

क्या बालाघाट में तीसरी शक्ति कोई गुल खिला पाएगी?

बालाघाट लोकसभा क्षेत्र में भाजपा व कांग्रेस के अलावा समाजवादियों तथा रिपब्लिकन पार्टी की भी कुछ पकड़ रही है ऐसे में यहां दिलचस्पी का विषय केवल इतना रहेगा कि चुनावी नतीजों को तीसरी शक्ति कितना प्रभावित करती है। कांग्रेस और भाजपा दोनों ने ही इस चुनाव में नए चेहरे मैदान में उतारने की घोषणा की है। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के बोधसिंह भगत ने कांग्रेस की हिना लिखीराम कांवरे को 96 हजार 41 मतों के अन्तर से पराजित किया था। भगत को 43.17 प्रतिशत यानी 4 लाख 80 हजार 594 मत मिले थे जबकि कांवरे को 34.54 प्रतिशत यानी 3 लाख 84 हजार 553 मत प्राप्त हुए थे। इस समय हिना कांवरे विधानसभा उपाध्यक्ष हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में हिना कांवरे दो विधानसभा क्षेत्रों में भगत से आगे थीं और 6 क्षेत्रों में भगत आगे थे। पिछले विधानसभा चुनाव में चार विधायक कांग्रेस और एक निर्दलीय सफल रहा जबकि तीन विधायक भाजपा के हैं। निर्दलीय विधायक प्रदीप जायसवाल कमलनाथ मंत्रिमंडल में काबीना मंत्री हैं। वर्तमान परिस्थिति में भाजपा के लिए यह सीट बचाना आसान नहीं होगा।

कमलनाथ का मजबूत किला है छिंदवाड़ा

छिंदवाड़ा लोकसभा क्षेत्र कांग्रेस का एक ऐसा मजबूत किला है जिसे 1977 की जनता लहर में भी विपक्षी भेद नहीं पाए थे। यहां हुए सभी लोकसभा चुनावों में कांग्रेस का ही परचम लहराया है। इस दृष्टि से मुख्यमंत्री कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ की राह काफी आसान है और वे आराम से टहलते हुए लोकसभा में पहुंच जाएंगे। देखने की बात केवल यही होगी कि भाजपा उनका कितना मुकाबला कर पाती है। नकुलनाथ की राह इसलिए भी अधिक आसान है क्योंकि उनके पिता मुख्यमंत्री कमलनाथ भी छिंदवाड़ा विधानसभा सीट से उपचुनाव लड़ रहे हैं और मतदान एक ही दिन होना है, जिसका पूरा-पूरा फायदा नकुल को मिलेगा। 2014 के लोकसभा चुनाव में कमलनाथ ने भाजपा के चौधरी चन्द्रभान सिंह को 1 लाख 16 हजार 537 मतों के अन्तर से पराजित किया था, उस समय चौधरी चंद्रभान सिंह सहित सात में से चार विधायक भाजपा के थे। छिंदवाड़ा लोकसभा क्षेत्र मध्यप्रदेश के उन दो लोकसभा क्षेत्रों में से एक है जहां विधानसभा के सात-सात क्षेत्र आते हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में सभी सातों क्षेत्रों में कमलनाथ को बढ़त मिली थी, यहां तक कि चौधरी चंद्रभान सिंह अपने छिंदवाड़ा विधानसभा क्षेत्र में भी बढ़त हासिल नहीं कर पाए थे। गत विधानसभा चुनाव में परिदृश्य पूरी तरह बदल गया और सातों सीटों पर कांग्रेस ने ही सफलता पाई, इसे देखते हुए यहां चुनावी परिदृश्य पूरी तरह एकतरफा रहने की संभावना है।

आसान नहीं कांग्रेस के लिए होशंगाबाद

होशंगाबाद लोकसभा क्षेत्र जो कभी तीखे समाजवादी और कांग्रेस तेवर वाला हुआ करता था वह भाजपा के मजबूत किले में तब्दील हो चुका है। यहां तक कि कांग्रेस के हैवीवेट राजनेता अर्जुनसिंह भी यहां से लोकसभा चुनाव हार चुके हैं। लम्बे समय बाद 2009 का लोकसभा चुनाव कांग्रेस ने जीता, लेकिन उसके उम्मीदवार राव उदयप्रताप सिंह ने 2014 के चुनाव में कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थामा और वे दूसरी बार यहां से लोकसभा सदस्य चुने गए। उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार देवेंद्र पटेल गुड्डू भैया को 3 लाख 89 हजार 960 मतों के अन्तर से हराया। उदयप्रताप को 64.89 प्रतिशत मत मिले, यानी उन्हें 6 लाख 69 हजार 128 मत मिले जबकि कांग्रेस पूर्व की तुलना में सबसे निचले पायदान पर पहुंच गई और उसे 27.7 प्रतिशत यानी 2 लाख 79 हजार 168 मत ही मिले। इस चुनाव में सभी आठों विधानसभा क्षेत्रों में उदयप्रताप को अच्छी-खासी लीड मिली थी, लेकिन अब स्थिति में कुछ अन्तर आया है और आठ में से तीन विधायक कांग्रेस के और पांच विधायक वर्तमान में भाजपा के हैं। देखने की बात यही होगी कि उदयप्रताप की राह में कांग्रेस उम्मीदवार कितने कांटे बिछा पाते हैं। फिलहाल तो भाजपा की स्थिति आंकड़ों के हिसाब से काफी मजबूत नजर आती है लेकिन राजनीति में हमेशा चमत्कार की गुंजाइश बनी रहती है।

बैतूल में होगा कड़ा मुकाबला 

2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की ज्योति धुर्वे ने कांग्रेस के अजय शाह को इस सीट पर 3 लाख 28 हजार 614 मतों के भारी अन्तर से पराजित किया था। उन्हें 61.43 प्रतिशत यानी 6 लाख 43 हजार 651 मत मिले थे जबकि शाह को 30.7 यानी 3 लाख 15 हजार 37 मत मिले। उस समय आठ क्षेत्रों में से एक ही क्षेत्र में कांग्रेस विधायक था लेकिन लोकसभा चुनाव में हर क्षेत्र में ज्योति धुर्वे ने अच्छी-खासी बढ़त हासिल की थी। हाल ही हुए विधानसभा चुनाव में यहां के परिदृश्य में बदलाव आया है और कांग्रेस एवं भाजपा के चार-चार विधायक इस क्षेत्र में हैं। कांग्रेस विधायक सुखदेव पांसे केबिनेट मंत्री भी हैं। ज्योति धुर्वे जाति प्रमाणपत्र के विवाद में उलझने के कारण इस बार चुनाव नहीं लड़ रही हैं और दोनों ही दल नए चेहरे पर दांव लगा रहे हैं इसलिए यहां पर दिलचस्प चुनावी मुकाबला होने की संभावना है।

 

सम्प्रति-लेखक श्री अरूण पटेल अमृत संदेश रायपुर के कार्यकारी सम्पादक एवं भोपाल के दैनिक सुबह सबेरे के प्रबन्ध सम्पादक है।