सेक्स के बारे में दुनिया एवं समाज में कई तरह की धारणाएं फैली हुई हैं जिनमें कई धारणाएं विज्ञान और रिसर्च के पैमाने पर ग़लत साबित हुई हैं।ऐसी ही कुछ धारणाएं और उसका सच ये हैं-
समलैंगिकता का कोई ख़ास जीन नहीं होता –
दुनिया में लोगों की बड़ी तादाद ऐसी है जो समलैंगिक हैं,मगर तमाम कोशिशों के बावजूद वैज्ञानिक इसके जेनेटिक्स का पता नहीं लगा सके हैं।इंसान में समलैंगिकता का भाव पैदा करने वाला कोई ख़ास जीन होता है,वैज्ञानिक ऐसा नहीं मानते है।
अब तक हुए अनुभवों को देखा जाय हमारे माहौल और हमारी ख़्वाहिशों का हमारे ऊपर असर होता है।कुछ लोगों पर इसका ऐसा असर होता है कि उनके भीतर समलैंगिकता की ख़्वाहिश पैदा हो जाती है,इसका पता उनके डीएनए से फिलहाल नहीं लगाया जा सकता है।
टेस्टोस्टेरॉन से महिलाएं होती हैं कामोत्तेजित-
इस बात के बिल्कुल भी सबूत नहीं हैं कि मर्दों के हारमोन टेस्टोस्टेरॉन से महिलाओं में सेक्स की ख़्वाहिश पैदा होती है।बहुत सी ऐसी महिलाएं हैं जो सेक्स की इच्छा नही होने की शिकायत करती हैं।डॉक्टर उन्हें टेस्टोस्टेरॉन के इंजेक्शन लेने के नुस्खे लिखते हैं।
तमाम रिसर्च से ये बात साफ़ हो चुकी है कि महिलाओं में सेक्स की चाहत,टेस्टोस्टेरॉन से तो बिल्कुल नहीं जुड़ी है,बल्कि इसकी असल बुनियाद का तो अब तक कोई पता ही नहीं है।
बच्चे अपने लिंग को लेकर रहते हैं उलझन में-
हमारी ज़िंदगी की शुरुआत में हमें अपने लिंग का एहसास ज़रा कम होता है।बहुत से बच्चे ये सवाल पूछते हैं कि वो लड़की हैं या लड़का।लेकिन जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है उन्हें अपने किरदार का एहसास हो जाता है।हां, इनमें से 10 फ़ीसदी ऐसे भी होते हैं जो आगे चलकर ट्रांसजेंडर बन जाते हैं।
ऐसे बच्चों पर हमें ज़्यादा ध्यान देने की ज़रूरत है, क्योंकि किशोर उम्र में पहचान का संकट उन्हें डिप्रेशन की तरफ़ धकेल सकता है,कई बार तो बच्चे इससे घबराकर ख़दकुशी भी कर लेते हैं।
लिंग की पहचान का पुराना है संकट
सिर्फ़ हमारी पीढ़ी ही नहीं है जो औरत और मर्द के बंधे-बंधाए खांचे से बाहर आने की कोशिश कर रही है।दो लिंगों के इस बंटवारे को चुनौती पहले भी दी जा चुकी है।उन्नीसवीं सदी में फ्रेंच कलाकार क्लॉड काहुन ने भी इसे चुनौती दी थी।वो लूसी के तौर पर पैदा हुए थे,लेकिन बाद में उन्होंने अपना नाम क्लॉड रख लिया।
फ्रांस में ये नाम औरतों के भी हो सकते हैं और मर्दों के भी।अपने लिंग के बारे में क्लॉड का कहना था कि कभी वो मर्द हैं तो कभी औरत।किरदार बदलते रहते हैं और ये हालात पर निर्भर करता है।
बहुत से जीवों में होते हैं दो से ज़्यादा लिंग
अक्सर हम ये मानते हैं कि तमाम जानवरों में नर या मादा होते हैं. नर एक ख़ास तरह का बर्ताव करते हैं।इसी तरह मादाएं एक ख़ास तरह का व्यवहार करती हैं, मगर ये बात सच से काफ़ी परे है।
जैसे इंसानों में कई लोग समलैंगिक होते हैं,ट्रांसजेंडर होते हैं,इसी तरह जानवरों की कई नस्लों में होता है जहां नर और मादा के सिवा भी अलग लिंग के जानवर पाए जाते हैं।ब्लूगिल सनफ़िश के बीच तो नर की ही तीन क़िस्में मिलती हैं. जब ये विपरीत लिंगी को लुभाने की कोशिश कर रहे होते हैं, तो उसी वक़्त किसी नर साथी से भी टांका भिड़ाने की जुगत में होते हैं।
‘हमें सेक्स की ज़रूरत महसूस नहीं होती’
दुनिया में ऐसे बहुत से लोग सामने आ रहे हैं जो ये कहते हैं कि उन्हें सेक्स की ज़रूरत नहीं महसूस होती।समलैंगिकता को क़ानूनी दर्जा मिलने के बाद ऐसा कहने वालों की तादाद तेज़ी से बढ़ रही है।अमरीका में ऐसे लोगों के संगठन,एसेक्सुअल विज़िबिलिटी ऐंड एजुकेशन नेटवर्क के 2003 में केवल 391 सदस्य थे,आज ये तादाद 80 हज़ार हो चुकी है।
आज के दौर में जहां हर चीज़ सेक्स की चाशनी में लपेटकर परोसी जा रही है,वहां ये वो लोग हैं, जो दुनिया को बताना चाहते हैं कि सुखी, सेहतमंद ज़िंदगी के लिए सेक्स इतना भी ज़रूरी नहीं।
दुनिया ‘मोहब्बतों’ की दुश्मन है
दुनिया में ऐसे बहुत से लोग हैं जो एक वक़्त में कई लोगों से इश्क़ करते हैं, जिस्मानी ताल्लुक़ात बनाते हैं।ज़्यादातर लोग ऐसा छुपकर करते हैं।मगर कुछ ऐसे भी हैं जो सार्वजनिक तौर पर ऐसा करते हैं।ऐसे लोगों को पॉलीएमॉरस कहा जाता है,जो एक वक़्त में कई मोहब्बतें करते हैं।
क्योंकि ये समाज के बंधे-बंधाए उसूलों को चुनौती देते हैं,इसलिए इन्हें गंदी नज़र से देखा जाता है।इसका सबसे बुरा असर ऐसे लोगों के बच्चों पर पड़ता है,जिनके किरदार पर बचपन से ही सवाल उठाए जाने लगते हैं।
हालांकि ऐसे बच्चों की परवरिश ज़्यादा बेहतर ढंग से होती है, जिनके मां-बाप एक साथ कई रिश्ते निभाते हैं।बच्चों को अलग-अलग तरह के लोगों का साथ मिलता है,बचपन से ही उनके अंदर दुनिया के बहुरंगी होने का एहसास होता है और वो ज़्यादा उदार इंसान बनते हैं।