राजधानी भोपाल और विदिशा लोकसभा क्षेत्र लम्बे समय से भाजपा के अजेय भगवाई किले में तब्दील हो चुके हैं लेकिन ताजा विधानसभा चुनाव के रुझान के बाद राजधानी भोपाल की सीट पर कांग्रेस और भाजपा के बीच अब मात्र 69 हजार मतों का ही अन्तर बचा है। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी आलोक संजर ने कांग्रेस उम्मीदवार पीसी शर्मा को 3 लाख 43 हजार 482 मतों के भारी अन्तर से पराजित किया था। कांग्रेस इस बार भाजपा के इस किले को ध्वस्त करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाएगी, क्योंकि विधानसभा के चुनाव नतीजों से वह काफी उत्साहित है। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज काफी पहले स्वास्थ्य कारणों से विदिशा से चुनाव न लड़ने का ऐलान कर चुकी हैं इसलिए अपने इन दोनों गढ़ों को बचाने के लिए भाजपा में जिताऊ चेहरे की तलाश जोर शोर से जारी है।
भोपाल संसदीय क्षेत्र के बारे में तो यह माना जाता रहा है कि भाजपा जिसको टिकट देती है वह आसानी से जीत जाता है, यह बात 2014 के लोकसभा चुनाव तक तो एक बड़ी सीमा तक सही भी थी, लेकिन जबसे कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार प्रदेश में पदारुढ़ हुई है इस समय से ही कमलनाथ इस बात के लिए आश्वस्त नजर आ रहे हैं कि इस सीट पर अब कांग्रेस का ही परचम लहराएगा। भोपाल सीट पर 15 आम चुनावों में 9 बार गैर कांग्रेसी प्रत्याशी जीते हैं और आखिरी कांग्रेसी सांसद 1984 में केएन प्रधान बने थे। 1989 के बाद से तो इस सीट पर कांग्रेस एक प्रकार से गायब-सी हो गई है, यहां तक कि तीन अल्पसंख्यक चेहरों से लेकर सुरेश पचौरी जैसे राष्ट्रीय नेता को आजमाने के बावजूद यह सीट कांग्रेस भाजपा से छीन नहीं पाई है। 2014 के लोकसभा चुनाव में जबर्दस्त मोदी लहर थी जिसके चलते भाजपा के आलोक संजर ने कांग्रेस के पीसी शर्मा को बुरी तरह पराजित किया था। संजर को 63.19 प्रतिशत यानी 7 लाख 41 हजार 778 मत मिले थे जबकि कांग्रेस के पीसी शर्मा को संजर को मिले मतों से आधे से भी कम मत प्राप्त हुए थे। शर्मा को 30.39 प्रतिशत यानी 3 लाख 43 हजार 432 मत मिले थे। उस समय केवल एक विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस का विधायक था और बाकी सीटों पर भाजपा के विधायक और एक निर्दलीय काबिज था। किसी भी क्षेत्र में कांग्रेस प्रत्याशी को बढ़त नहीं मिल पाई थी जबकि अब कांग्रेस के तीन विधायक राजधानी भोपाल से जीते हैं और पांच क्षेत्रों पर भाजपा विधायक विजयी रहे, हालांकि जीत-हार का अंतर इतना कम हो गया है कि पांच विधायक होने के बाद भी भाजपा को कांग्रेस पर लगभग 69 हजार मतों की बढ़त ही मिल पाई। इस क्षेत्र से आरिफ अकील और पीसी शर्मा कमलनाथ सरकार में काबीना मंत्री है।
विदिशा लोकसभा सीट भाजपा का अजेय गढ़ रही है लेकिन सुषमा स्वराज के चुनावी परिदृश्य में न होने से जिताऊ चेहरा भाजपा खोज रही है। हालांकि इस क्षेत्र के बारे में भोपाल के ही समान यह माना जाता है कि भाजपा जिसके माथे पर तिलक लगाकर उम्मीदवार बना देगी वह आसानी से चुनाव जीत जाएगा, लेकिन इसके बावजूद प्रत्याशी चयन भाजपा के लिए गुत्थी बना हुआ है। विदिशा लोकसभा क्षेत्र परिसीमन के बाद रायसेन, विदिशा, सीहोर और देवास जिलों तक फैल गया है और अधिकांश सीटें भाजपा की परंपरागत सीटें रही हैं। विदिशा लोकसभा सीट पर 2014 के चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के छोटे भाई व कांग्रेस एवं भाजपा सांसद रहे लक्ष्मण सिंह का भाजपा उम्मीदवार सुषमा स्वराज से मुकाबला हुआ जिसमें स्वराज ने एकतरफा जीत हासिल करते हुए 4 लाख 10 हजार 698 मतों के अन्तर से लक्ष्मण सिंह को पराजित किया था। सुषमा स्वराज को 66.55 प्रतिशत यानी 7 लाख 14 हजार 438 मत जबकि लक्ष्मण सिंह को 28.29 प्रतिशत यानी 3 लाख 3 हजार 650 मत मिले।
ताजा विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद भी इस लोकसभा क्षेत्र में भाजपा की पकड़ काफी मजबूत है और देखने की बात तो यही रहेगी कि चुनावी मुकाबला भाजपा व कांग्रेस के किन चेहरों के बीच होता है। आठ क्षेत्रों में से सांची और विदिशा में कांग्रेस ने जीत दर्ज की जबकि अन्य क्षेत्रों में भाजपा प्रत्याशी जीते जिनमें पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी शामिल हैं। यहां से डॉ. प्रभुराम चौधरी कमलनाथ सरकार में काबीना मंत्री हैं। जहां तक विधानसभा सीटों पर जीत का सवाल है 2014 में भी कांग्रेस के दो ही विधायक थे और अब भी वही स्थिति है, अन्तर केवल इतना आया है कि कांग्रेस के विधायक नये क्षेत्रों में जीते हैं जबकि पुराने दोनों विधायक चुनाव हार गए हैं। एक और उल्लेखनीय पहलू यह है कि विदिशा विधानसभा सीट पर कांग्रेस के शशांक भार्गव ने कई वर्षों के अंतराल के बाद 15 हजार 454 मतों के भारी अन्तर से भाजपा के मुकेश टंडन को जो कि शिवराज सिंह चौहान के चहेते रहे हैं को पराजित किया।
सम्प्रति-लेखक श्री अरूण पटेल अमृत संदेश रायपुर के कार्यकारी सम्पादक एवं भोपाल के दैनिक सुबह सबेरे के प्रबन्ध सम्पादक है।