
रायपुर/बस्तर, 18 अक्टूबर। भगवान धन्वंतरी जयंती एवं आयुर्वेद दिवस आज आयुर्वेद विश्व परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. राजाराम त्रिपाठी के नेतृत्व में श्रद्धा और संकल्प के साथ मनाया गया। कार्यक्रम की शुरुआत भगवान धन्वंतरी की पूजा-अर्चना से हुई। इसके बाद माँ दंतेश्वरी हर्बल समूह के सदस्यों ने औषधीय पौधों का रोपण कर वन औषधीय संरक्षण, संवर्धन और प्रवर्धन का सामूहिक संकल्प लिया।
डॉ. त्रिपाठी का संदेश: “आयुर्वेद केवल चिकित्सा नहीं, बल्कि जीवन-दृष्टि है”
डॉ. राजाराम त्रिपाठी ने कहा कि “आयुर्वेद केवल इलाज की पद्धति नहीं, बल्कि प्रकृति और पुरुष के संतुलन की जीवन-दृष्टि है।”उन्होंने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि कभी बस्तर जड़ी-बूटियों का खजाना था, लेकिन अब यह लूटा जा चुका है।बस्तर के साप्ताहिक बाजारों में अनेक दलाल और बिचौलिए मंजूर गोड़ी, हिरनतूतया, रसना जड़ी, कुरवां जड़ी जैसी बहुमूल्य औषधीय वनस्पतियों को कौड़ियों के भाव खरीदकर बड़ी कंपनियों को भेज रहे हैं।
उन्होंने कहा कि यदि सरकार और वन विभाग सहयोग दे, तो माँ दंतेश्वरी हर्बल समूह के वालंटियर्स इस लूट को रोकने की दिशा में ठोस कदम उठा सकते हैं।“आज आवश्यकता है कि हम अपने मूल स्रोत — लोक ज्ञान, जनजातीय परंपरा और वन औषधीय धरोहर — को पुनः सम्मान दें और वैज्ञानिक दृष्टि से संरक्षित करें।”
एथनो-मेडिको गार्डन : आयुर्वेद की जीवित प्रयोगशाला
डॉ. त्रिपाठी ने अपनी एक एकड़ भूमि में 340 से अधिक जड़ी-बूटियों वाला एथनो-मेडिको गार्डन विकसित किया है।इसमें 22 विलुप्तप्राय और दुर्लभ वनौषधियां, साथ ही स्थानीय वैद्यों द्वारा उपयोग की जाने वाली परंपरागत प्रजातियाँ संरक्षित हैं।
यह अनूठा उद्यान केवल पौधों का संग्रह नहीं, बल्कि जनजातीय ज्ञान और आधुनिक विज्ञान के बीच एक जीवित सेतु है। यहाँ स्थानीय गुनिया, सिरहा, गायता और गांडा समुदायों के पारंपरिक उपचार ज्ञान का दस्तावेजीकरण किया जा रहा है।
वनौषधि संरक्षण और प्रशिक्षण के लिए डॉ. त्रिपाठी की पहल
- दुर्लभ जड़ी-बूटियों के बीज बैंक और कलम संवर्धन केंद्र की स्थापना
- वन औषधीय सर्वेक्षण और एथनो-बोटैनिकल मैपिंग
- युवाओं और किसानों के लिए हर्बल फार्मिंग प्रशिक्षण कार्यक्रम
- ग्राम स्तर पर औषधीय उद्यान और सामुदायिक भागीदारी मॉडल
- नीति स्तर पर हर्बल उद्योग और आयुर्वेद संरक्षण प्रस्ताव
भारत की औषधीय जैवविविधता — एक संक्षिप्त दृष्टि
- भारत में लगभग 6,000 औषधीय पौधों की प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
- इनमें से लगभग 1,000 प्रजातियाँ लुप्तप्राय या संकटग्रस्त हैं।
- छत्तीसगढ़ और बस्तर क्षेत्र में इनका लगभग 20% भंडार मौजूद है।
- भारतीय हर्बल उद्योग का वार्षिक आकार करीब ₹80,000 करोड़ पहुँच चुका है, परंतु ग्रामीण उत्पादकों का लाभ हिस्सा बहुत कम है।
डॉ. त्रिपाठी ने कहा कि “जिस ज्ञान को हमारे ऋषियों ने जन्म दिया, आज उसका लाभ विदेशी कंपनियाँ उठा रही हैं।अब समय आ गया है कि भारत पुनः ‘विश्व औषधीय गुरु’ बने।”
कार्यक्रम के समापन अवसर पर डॉ. त्रिपाठी ने कहा कि “आयुर्वेद और जनजातीय ज्ञान की यह लौ अब कभी बुझनी नहीं चाहिए।बस्तर से लेकर हिमालय तक हर किसान, हर जनजातीय परिवार इसका रक्षक बने — यही सच्ची धन्वंतरी आराधना है।”
कार्यक्रम में बड़ी संख्या में शोधकर्ता, चिकित्सक, किसान नेता, युवा छात्र और स्थानीय गुनिया-वैद्य उपस्थित रहे।
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