नई दिल्ली 03 नवम्बर।साहित्य के क्षेत्र में देश का सर्वोच्च सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार इस वर्ष हिन्दी के प्रख्यात उपन्यासकार कृष्णा सोबती को दिया जाएगा।
भारतीय ज्ञानपीठ के निर्णायक मंडल की आज यहां हुई बैठक में उन्हें यह पुरस्कार देने का फैसला किया गया। यह बैठक हिन्दी के सुप्रसिद्ध आलोचक डॉक्टर नामवर सिंह की अध्यक्षता में हुई।
सन् 1925 में अब के पाकिस्तान में जन्मी कृष्णा सोबती ने अपनी साहित्यिक जीवन की शुरूआत वर्ष 1950 में प्रकाशित कहानी लामा से की। परिवार और समय समाज को केंद्र में रख कर लिखी गई उनकी कालजयी रचनाओं में निर्भिकता और खुलापन स्पष्ट परिलक्षित होता है। 92 वर्षीय सोबती ने, विभाजन, भारतीय समाज के बदलते परिवेश से लेकर मानवीय मूल्यों में धीरे-धीरे आ रही गिरावट जैसे विषयों पर भी अपनी कलम चलाई है।
उन्होंने अपने लेखन में नए रूपों और शैलियों के साथ प्रयोग कर और अनेक शब्दों को गढकर हिंदी साहित्य को समृद्ध बनाया है। स्त्री की आजादी और न्याय की पक्षधरता में लिखने वाली अग्रीम रचानाकारों में शुमार कृष्णा सोबती की प्रमुख कृतियों में मित्रो मरजानी, सूरजमुखी अंधेरे के, जिंदगीनामा और समय सरगम शामिल हैं।