आजादी का 75वाँ वर्ष पूरा होने जा रहा है, और राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की हत्या का भी यह 74वाँ वर्ष है, परन्तु लगभग पौन सदी बीत जाने के बाद भी गाँधी पर हमले जारी हैं। जिनका शरीर 74 वर्ष पूर्व समाप्त हो गया। आज भी उन जमातों के लिये जिन्होंने गाँधी की हत्या की थी गाँधी से खतरा है।डा. लोहिया ने कहा था कि साम्प्रदायिकता खतरनाक होती है, और अगर वह सत्ता का संरक्षण पा जाय तो भयावह हो जाती है।जिन कट्टरपंथी ताकतों ने गाँधी की हत्या की थी वे अब भी निरंतर गाँधी पर उनके विचार और कर्म पर हमला कर रहे हैं। गाँधी पहले भी हमलों के शिकार थे परन्तु अब तो वो सारी कायरों की जमात जो गाँधी के विचारों के ताप से भयभीत है, अभी भी गाँधी के विरूद्ध प्रतिदिन झूठे आक्षेप गढ़ रही हैं। और उनके यश को अपमानित कर उनकी यश हत्या के प्रयास कर रही हैं।
धर्म संसदों के नाम पर आजकल देश में अधर्म का प्रचार हो रहा है। धर्म इंसान को अपराधी या दुश्मन बनाने की सीख नहीं देता बल्कि प्रेम व बंधुत्व का मार्ग बताता है। इसलिये कहा गया था कि ‘‘मजहब नहीं सिखाता इंसा से बैर करना’’।रायपुर में जिस धर्म संसद का आयोजन हुआ उसमें कालीचरण नामक एक भगवा वेश धारी तथाकथित संत पहुंचे थे।पिछले कुछ समय से कर्मकांड का दौर बढ़ा है। और लोगों को कर्मकांड तथा कथाओं को ही धर्म कार्य बताया जा रहा है।धर्म संसद के इस आयोजन में श्री कालीचरण ने जब भाषण शुरू किया तो उन्होंने महात्मा गाँधी की हत्या को सही बताते हुये गोडसे को नमन किया और गाँधी के प्रति अपशब्दों का प्रयोग किया। धर्म संसद के आयोजक और वहां के स्थानीय महंत (जिनके स्वतंत्रता संग्राम के संस्कार रहे हैं) उन्हें में बधाई देना चाहता हूं कि उन्होंने साहस के साथ खड़े होकर मंच से ही कालीचरण की बातों का खंडन किया, महात्मा गाँधी के योगदान का जिक्र किया और बहिष्कार का एलान किया। उसके बाद लोगों में भी एक आक्रोश पैदा हुआ और कुछ नागरिकों ने जो धर्म संसद में उपस्थित थे पुलिस में रपट दर्ज कराई। श्री कालीचरण को जैसे ही यह जानकारी मिली कि उनके विरूद्ध पुलिस में रपट दर्ज हुई है वह वहाँ से छिपकर भागे और फरार हो गये। उन्होंने रातों रात गुप चुप तरीके से छत्तीसगढ़ की सीमाओं को पार किया और म.प्र. के खजुराहो पहुंच गये। हालांकि दो दिन में छत्तीसगढ़ पुलिस ने उनका ठिकाना खोज लिया और देर रात उन्हें खजुराहो से गिरफ्तार किया। श्री कालीचरण अपने स्वभाव से ही एक आपराधिक व्यक्ति लगते हैं क्योंकि उनकी भाषा बोली और उनका आचरण तीनों ही आपराधिक है। वह कितने भयभीत है और भीतर से इतने कायर है कि पुलिस कार्यवाही का पता लगते ही छिप गये व फरार हो गये। महात्मा गाँधी ने करोड़ों लोगों को ब्रिटिश कानूनों की अवज्ञा व स्वेच्छा से जेल जाना सिखाया था। इन नकली बहादुर कालीचरणों को शायद अब समझ में आये या जानना चाहिये कि जेल जाना कितना कठिन होता है।
श्री कालीचरण के पक्ष में जो लोग खड़े हुये हैं, उससे ही इस घटनाक्रम और इसके पीछे की योजना का अनुमान लगाया जा सकता है। चार प्रकार की प्रतिक्रियायें इस घटनाक्रम पर आई हैं:-
1-भा.ज.पा. व कांग्रेस ने धर्म संसद के लिये एक दूसरे पर आरोप लगाना शुरू किया। भा.ज.पा. ने कहा कि कांग्रेस सरकार ने यह आयोजन कराया था और कांग्रेस पार्टी ने इस आयोजन के लिये भा.ज.पा. के नेताओं पर आरोप लगाया। कांग्रेस ने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह इसमें शामिल हुये थे और भा.ज.पा. ने कहा कि वर्तमान मुख्यमंत्री भूपेश बघेल इसमें शामिल होने वाले थे। दरअसल यह दोनों ही पक्ष मूल प्रश्न से दूर हैं। धर्म संसद के आयोजन का मतलब गाँधी को गाली देना, उनका अपमान करना नहीं होता। मैं मानता हूं कि, धार्मिक आयोजनों से राजनैतिक नेताओं का सत्ता व प्रतिपक्ष का दूर होना संभव नहीं होता। और खासकर वह लोग जो वोट की राजनीति करते हैं, उन्हें तो धर्म संसद हो या नर्तकी का नृत्य जाने अनजाने चाहे या अनचाहे उनमें शामिल होकर अपनी प्रतीकात्मक हाजिरी दर्ज कराना होती हैं। तथा आमजन के साथ अच्छे या बुरे में समरस होने का प्रयास वे करते हैं।
कितना अच्छा होता कि अगर कांग्रेस व सत्तापक्ष यह कहता कि हमने यह आयोजन किया था। हमारी यह प्राचीन परंपरा रही है और हमें धोखा हुआ कि श्री कालीचरण जैसे अपराधी भगवा वेश में इसमें शामिल हो गये और यह भी कितना अच्छा होता कि प्रतिपक्ष के नेता भी यह स्वीकार करते कि धर्म संसद का आयोजन उनकी सरकार के दौर में होता आया है। उन्हें खेद है कि श्री कालीचरण नाम के व्यक्ति ने इस धर्म संसद को अधर्म संसद बना दिया। परन्तु दोनो के ही मन में राजनैतिक लाभ उठाने का पाप और अपराध बोध छिपा है।
2.बजरंगदल ने प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुये कहा कि अगर संत कालीचरण पर कार्यवाही हुई तो वह सड़कों पर उतरेंगे व ईंट से ईंट बजा देंगे। जन चर्चा यह है कि बजरंगदल के कस्बाई लोग आमतौर पर भा.ज.पा. की बी टीम के रूप में काम करते हैं। वैसे तो मेरी राय में इन श्री कालीचरण के समर्थकों पर भी वैधानिक कार्यवाही होना चाहिये। क्योंकि अपराध का समर्थन करना भी अपराध होता है। जिस प्रकार गाँधी जी की हत्या के समर्थन के लिये श्री कालीचरण अपराधी है उसी प्रकार यह बजरंगदल भी अपराधी है। वैसे तो समाज को भी इसमें आगे आना चाहिये और स्वतः प्रतिकार करना चाहिये। अच्छा होता कि राजिम के सभी धर्म और वर्गों के नागरिक पुरूष व महिलायें घर से निकलकर सड़क पर आते और इन बजरंगदलियों के और श्री कालीचरण के खिलाफ खड़े होते। उनका सामाजिक बहिष्कार करते तो शायद तब समाज एक स्वस्थ समाज बनता।
3- म.प्र. सरकार के गृहमंत्री जी ने श्री कालीचरण की रात में गिरफ्तारी पर तकलीफ व्यक्त की हैं। उनकी तकलीफ भी राजनैतिक है। वरना एक गृहमंत्री जानते हैं कि जो अपराधी छिपकर भागता है, उसे पकड़ने के लिये दिन या रात नहीं देखा जाता। वह कब पकड़ा जा सकता, कैसे पकड़ा जा सकता है यह पुलिस को तय करना होता है। जब गिरफ्तारी की रात में पुलिस श्री कालीचरण को पकड़ने के लिये गई और उनके सहायक से पूछा व कहा कि हमें बाबा जी के दर्शन करना है, तो उनके सचिव ने कहा कि अभी एक लाख लोगों की प्रतिक्षा सूची दर्शनाथियों की है। और तब पुलिस वालों ने कहा कि हमें अभी गाड़ी पकड़कर बाहर जाना है।तब वह सचिव पुलिस को अंदर ले गये क्योंकि पुलिस सादी वर्दी में थी। और छत्तीसगढ़ पुलिस ने कौशल व साहस के साथ श्री कालीचरण को गिरफ्तार किया। कालीचरण व उनके सहयोगी किस मानसिकता व कितने घमंड से भरपूर है यह इसी से समझा जा सकता है कि उनका शिष्य कहता है कि एक लाख की प्रतिक्षा सूची है, जबकि श्री कालीचरण घर में छिपा हुपा था व अकेला था। म.प्र. शासन को भी इसकी जानकारी अवश्य रही होगी और शायद इसीलिये वह भागकर आकर म.प्र. में छिपा था कि म.प्र. में भा.ज.पा. सरकार और प्रशासन का संरक्षण उसे मिलेगा। प्रदेश के गृहमंत्री जी को मैं याद दिलाना चाहूंगा कि छ.ग. के मुख्यमंत्री जी ने ब्राहम्णों के प्रति अनुचित शब्दों के प्रयोग के कारण जो उन्होंने उ.प्र. में कहे थे अपने ही पिता के खिलाफ न केवल मुकदमा कायम कराया था बल्कि उन्हें गिरफ्तार कर जेल में डाला था। सुशासन व निष्पक्ष प्रशासन के लिये यह एक अनुकरणीय उदाहरण था।
4- अब कुछ कट्टरपंथी दिमाग के लोग कालीचरण के बचाव के लिये नये प्रकार के तर्क खोज रहे हैं, और जिन महात्मा गाँधी की हत्या को श्री कालीचरण सही ठहरा रहे थे उन्हीं बापू के विचार व शब्दों की आड़ में कालीचरण को बचाना चाह रहे हैं। एक भा.ज.पा. के नेता ने कहा कि छ.ग. की कांग्रेस सरकार महात्मा गाँधी के सिद्धान्तों के खिलाफ काम कर रही है क्योंकि उन्होंने श्री कालीचरण को गिरफ्तार करवाया। यदि गाँधी जी होते तो वह श्री कालीचरण को माफ कर देते और गिरफ्तार करने से रोकते। गाँधी का अर्थ क्या है, भा.ज.पा. को और उनके पीछे की संस्थाओं को इसी से समझ लेना चाहिये, कि उन्हें अपने बचाव के लिये उन्ही गाँधी जी के नाम का इस्तेमाल करना पड़ रहा जिनकी हत्या को वह उचित ठहराते रहे है।
दूसरा भा.ज.पा. के इन मित्रों को यह समझना चाहिये कि क्षमा का अधिकार नैतिक व सैद्धांतिक रूप से उसी व्यक्ति को होता है जिसके खिलाफ अपराध किया गया हो। इसके अलावा क्षमा का अधिकार संवैधानिक व कानूनी रूप से या तो अदालत को अथवा राष्ट्रपति को होता है। तीसरा यह भी समझना होगा कि भारतीय संविधान के अनुसार देश में कानून का राज्य है। और कानून के राज्य का मतलब यह होता है कि व्यक्ति कितना ही छोटा बड़ा क्यों न हो कानून सबके लिये समान होता है। जो लोग आज कालीचरण को सत्ता के सहारे महिमा मंडित कर रहे हैं वह भूल रहे हैं वह अपने ही कल के भविष्य को दागदार और समस्या ग्रस्त बना रहे हैं।
जिस प्रकार धर्म संसद के नाम पर राष्ट्रपिता के खिलाफ अभियान चलाया गया, उसी प्रकार कुछ दिनों पूर्व हरिद्वार में भी महात्मा गाँधी को गंदे शब्दों में गालीयाँ दी गई। इस भाषा का प्रयोग करने वाले कभी भी साधु तो नहीं हो सकते। साधुओं के बारे में कहा गया है कि ‘‘साधु ऐसा चाहिये जैसा ‘‘सूप सुभाय – सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय’’। अगर यह सच्चे साधु होते तो वह गाँधी की अच्छाईयों को ग्रहण करते और जहाँ असहमति होती उसे छोड़ देते। परन्तु कट्टरपंथ और साम्प्रदायिकता सत्ता के संरक्षण में तेजी से पनप रही है और हिंसा तथा घृणा की अतिरेक पर पहुंच रही है। इस्लामिक देशों में ईश निंदा के नाम पर किसी भी निर्दोष को मार दिया जाता है और भारत में भी गौ हत्या के शक में किसी भी निर्दोष को मारा जा सकता है। हरिद्वार में जिन लोगों ने बापू के नाम को लेकर अपशब्दों व गालियों का प्रयोग किया वह भी अपने आपको संत कहते है। हरिद्वार की इस तथाकथित धर्म संसद के आयोजक यति-नरसिंहानंद जो गाजियाबाद के मंदिर के मुख्य पुजारी हैं, उन्होंने अपने भाषण में ना केवल बापू को अपशब्द कहे बल्कि यह भी कहा कि ‘‘मुसलमानों के आर्थिक बहिष्कार से कुछ नहीं होगा कोई भी समाज हथियारों के बगैर जीवित नहीं रह सकता। उन्होंने अपील की अच्छे से अच्छे हथियार लें, वह ही आपकी रक्षा करेंगे’’। उन्होंने नारा भी दिया कि ‘‘शस्त्र मेव जयते’’। एक और वीडियों में श्री नरसिंहानंद को यह कहते हुये बताया गया कि जो हिन्दू युवक लिट्टे लीडर प्रभाकरण या भिंडरावाने के समान बनने को तैयार हो उसे वह एक करोड़ रूपया देने को तैयार हैं। सुश्री पूनम सकुन पाण्डे जो अब अन्नपूर्णा मां के नाम से जानी जाती हैं, और हिन्दू महासभा की महासचिव हैं, उन्होंने कहा कि हमें ऐसे 100 सैनिक तैयार करना है जो 20 लाख मुसलमानों को मार दें। मातृ शक्ति के पंजे शेर के समान हैं, जो विरोधियों को फाड़ कर रख देंगे। यह वही पूनम पाण्डे है जिन्होंने कुछ वर्ष पहले गाँधी जी की प्रतिमा पर गोली चलाई थी और मिठाई बाँटी थी।
इस धर्म संसद में हिन्दू यूथ वाहिनी की अहम भूमिका रही है, जिसके संस्थापक उ.प्र. के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी जी हैं। धर्म संसद के बाद 19 दिसम्बर को हिन्दू वाहिनी के युवकों को शपथ दिलाई गई ‘‘हम शपथ लेते हैं और प्रस्ताव करते हैं कि अपनी आखिरी सांस तक देश को हिन्दू राष्ट्र बनाने के लिये लड़ते रहेंगे और मरते रहेंगे’’ऐसी घटनायें पूर्व में भी हुई हैं, जो इन कट्टरपंथियों व हिंसक सोच वाले लोगों और भा.ज.पा. तथा उनके मातृ संगठन के बीच के रिश्तों को इंगित करती हैं। सूरजपाल अमू के घृणात्मक बयान के बाद उन्हें भा.ज.पा. की राज्य शाखा का प्रवक्ता बनाया गया था। लिचिंग के मामले में न्यायालय के आदेश से गिरफ्तार एक व्यक्ति की मृत्यु के बाद एक केन्द्रीय मंत्री श्री महेश शर्मा उसकी अंत्येष्टि में गये थे और उसके शरीर पर तिरंगा डाला था। लिचिंग के 8 अपराधियों को जमानत मिलने के बाद केन्द्रीय मंत्री जयंत सिन्हा उन्हें माला पहनाने गये थे।
यह सब घटनायें यही संकेत देती है कि महात्मा गाँधी के खिलाफ यह अभियान समूचे देश में एक योजना के तहत चलाया जा रहा है। केन्द्र की सत्ता पाने के बाद अब महात्मा गाँधी को झूठे आरोपों से बदनाम करके उनकी विशाल प्रतिमा को खंडित करने का षड़यंत्र चल रहा है। और जिस प्रकार गाँधी की हत्या का अपराधी और उसका चेहरा एक व्यक्ति के रूप में सामने था, परन्तु पीछे वह संगठित षड़यंत्रकारी जमातें सक्रिय थी जो गोडसे के बयानों को ‘‘मैने गाँधी को क्यों मारा’’ प्रचारित कर रही थी गोडसे को महिमा मंडित कर रही थी और अपने लक्ष्य को गोडसे के कंधे पर बंदूक रखकर पूरा करना चाह रही थी। अब वही ताकतें पुनः सत्ता हथिया कर गाँधी की विशाल प्रतिमा को खण्डित करने के प्रयास कर रही है। ताकि वैश्विक पूँजीवाद-कारपोरेट, निरंकुश सत्ता और हिंसा को तर्क मिल जाये।
यह दुखद है कि अपने आपको गाँधीवादी कहने वाले लोग इस गंभीर षड़यंत्र पर लगभग मौन धारण किये हैं या फिर औपचारिक प्रस्ताव कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर रहे है। अब आवश्यकता इस बात की है कि मुहल्ले, गाँव गाँव जा कर, छोटे-छोटे समूहों में बैठकर गाँधी के विचारों को बताया जाए और इन नकली धर्म गुरूओं इनके पीछे की जमातों के चेहरों को नग्न किया जाए तथा राष्ट्रीय एकता को भी बचाया जाए।
सम्प्रति- लेखक श्री रघु ठाकुर देश के जाने माने समाजवादी चिन्तक है।प्रख्यात समाजवादी नेता स्वं राम मनोहर लोहिया के अनुयायी श्री ठाकुर लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के संस्थापक भी है।