पिछले वर्ष करोड़ों रुपये के विज्ञापन चले थे, जिसमें किसी ऐसे रासायनिक घोल की चर्चा थी, जिसके डालते ही धान के अवशेष यानी पराली गायब हो जाती और उसे जलाना नहीं पड़ता, लेकिन जैसे ही मौसम का मिजाज ठंडा हुआ दिल्ली-एनसीआर को स्माग यानी धुंध ने ढक लिया। इस बार भी सितंबर विदा हुआ और अक्टूबर आया कि हरियाणा-पंजाब से पराली जलाने के समाचार आने लगे।
चूंकि इस बार बरसात देर तक रही, जिसने खेती-किसानी को भी खासा नुकसान पहुंचाया है, लिहाजा इससे हवा की गुणवत्ता के आंकड़े अभी ठीक दिख रहे हैं, लेकिन जान लें इस बार पराली जलाए जाने से धुएं का संकट अधिक गहरा होगा, क्योंकि एक तो मौसम की अनियमितता सामने आ रही है और ऊपर से बीते पंजाब विधानसभा चुनाव में किए वादे के अनुसार पराली जलाने वाले किसानों पर दर्ज आपराधिक मुकदमे को वापस लेने का बात कही जा रही है
पराली की समस्या
गत वर्ष दिल्ली एनसीआर में वायु गुणवत्ता सूचकांक साढ़े चार सौ से अधिक था तो मामला सुप्रीम कोर्ट में गया और फिर सारा ठीकरा पराली पर फोड़ दिया गया। हालांकि इस बार शीर्ष अदालत इससे असहमत है कि करोड़ों लोगों की सांस घोंटने वाले प्रदूषण का कारण महज पराली जलाना है। विदित हो कि केंद्र सरकार ने वर्ष 2018 से 2021 के दौरान पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली को पराली की समस्या से निपटने के लिए कुल 1,726.67 करोड़ रुपये जारी किए थे, जिसका सर्वाधिक हिस्सा 793.18 करोड़ रुपये पंजाब को दिया गया
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