रायपुर, 02 नवम्बर।छत्तीसगढ़ की राजधानी में आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव के दूसरे दिन भी आज मंच पर देश-विदेश के कलाकारों ने मनमोहक नृत्य की प्रस्तुति देकर समां बांध दिया।
इस महोत्सव के दूसरे दिन सांस्कृतिक मंच पर असम, महाराष्ट्र,मणिपुर के कलाकारों ने बेहद आकर्षक तरीके और शैली में अपनी कला का प्रदर्शन किया। इनें नृत्य को देखने आए लोगों ने तालियां बजाकर कलाकारों का उत्साहवर्धन किया।वहीं, लोग इन कलाकारों के नृत्य को मोबाइल में फोटो और वीडियो के रूप में कैद करते भी नजर आए।
नृत्य महोत्सव में शाम को भुंजिया जनजाति के नर्तक दलों ने वैवाहिक अवसर पर किए जाने वाले नृत्य की मनमोहक प्रस्तुति दी, जिसका दर्शकों ने आनंद लिया और ताली बजाकर नर्तक दल की प्रस्तुति को सराहा। भुंजिया के नृत्य में उनकी पूरी संस्कृति झलकती है। नृत्य के दौरान पुरूष हाथों में तीर-कमान थामें होते हैं, जबकि महिलाएं पारंपरिक वेशभूषा में होती है। भुंजिया एक ऐसी विशेष पिछड़ी जनजाति समुदाय है, जिसे छत्तीसगढ़ सरकार ने गोद लिया है। इस जाति के लोग छत्तीसगढ़ के गरियाबंद, महासमुंद और धमतरी जिला तथा ओड़िशा के कुछ में क्षेत्रों में रहते हैं। इनकी रहन-सहन, वेषभूषा या यूँ कहें कि पूरी संस्कृति ही औरों से बहुत अलग है।
महोत्सव में मेघालय राज्य की गारो जनजातियों का सुंदर वांगला नृत्य भी देखने को मिला। इस नृत्य में स्त्रियां रेफल वस्त्र पहनती हैं और पुरुष कांथा वस्त्र पहनते हैं। गारो जनजाति का यह नाटक परंपरागत प्रकृति पूजन पर आधारित है और अक्टूबर नवंबर माह में किया जाता है। वांगला नृत्य की विशेषता यह है कि यह डाना वाद्य यंत्र के साथ किया जाता है। डाना वाद्य यंत्र अपनी सुमधुर ध्वनियों में जैसे जैसे आगे बढ़ता है। वांगला नृत्य के कलाकारों की थिरकन भी बढ़ जाती है। गारो जनजाति का यह नृत्य ईश्वर को धन्यवाद ज्ञापित करने के लिए किया जाता है। लोककलाकार अपने नृत्य के माध्यम से प्रकृति और ईश्वर के प्रति अपने प्रेम को अभिव्यक्त करते हैं। यह नृत्य खास तौर पर गारो जनजाति की सजावट और वस्त्र विन्यास के उनके खास तरीके को जानने के लिए भी बढ़िया माध्यम है।
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