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रमन ने किया जल संकट से निपटने बूंद-बूंद पानी बचाने का आव्हान

रायपुर 08 अप्रैल।मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने राज्य में जल संकट की स्थिति से निपटने के लिए जल संसाधनों के विकास और जल संरक्षण के लिए अपनी सरकार द्वारा उठाए जा रहे कदमों का उल्लेख करने के साथ-साथ सभी नागरिकों से बूंद-बूंद पानी बचाने का भी आव्हान किया है।

डा.सिंह ने आज सवेरे आकाशवाणी के रायपुर केन्द्र से प्रसारित अपनी मासिक रेडियो वार्ता ’रमन के गोठ’ की 32वीं कड़ी में कहा-छत्तीसगढ़ को प्रकृति ने जो सौगातें दी हैं, उनमें यहां के सघन वनों के साथ पर्याप्त बारिश का भी प्रमुख स्थान है। उन्होने कहा कि दुनिया जिस तरह से बदल रही है, उन परिस्थितियों में पर्यावरण का भारी नुकसान हुआ है।इसके फलस्वरूप ’ग्लोबल वार्मिंग’ और ’जलवायु परिवर्तन’ पूरी दुनिया के लिए चिंता के मुख्य विषय बन गए हैं।

उन्होने जल संसाधनों के विकास को अपनी सबसे बड़ी प्राथमिकता बताते हुए कहा कि इसके लिए अल्पकालीन और दीर्घकालीन, दोनों तरह के उपाय किए गए हैं। उन्होंने श्रोताओं से कहा-आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि राज्य गठन के समय छत्तीसगढ़ में निर्मित सिंचाई क्षमता सिर्फ 13 लाख 28 हजार हेक्टेयर थी, जो आज बढ़कर 20 लाख 61 हजार हेक्टेयर हो गई है। उन्होंने यह भी कहा कि इसी अवधि में प्रदेश की सिंचाई क्षमता 20 प्रतिशत से बढ़कर 36 प्रतिशत हो गई है।

डा.सिंह ने कहा कि प्रदेश की सिंचाई क्षमता बढ़ाने के लिए अभियान लक्ष्य भागीरथी शुरू करने के फलस्वरूप हमारे यहां सिंचाई परियोजनाओं को पूर्ण करने की रफ्तार दोगुनी हो गई है। राज्य शासन द्वारा उपलब्ध सतही जल से वर्ष 2028 तक 32 लाख हेक्टेयर में सिंचाई क्षमता प्राप्त करने और शत-प्रतिशत सिंचाई क्षमता निर्मित करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।

उन्होने कहा कि प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के तहत भारत सरकार द्वारा देश में चयनित 99 प्रमुख योजनाओं में छत्तीसगढ़ की तीन योजनाएं-रायगढ़ जिले की केलो सिंचाई परियोजना, बिलासपुर जिले की खारंग सिंचाई परियोजना और मुंगेली जिले की मनियारी सिंचाई परियोजना को अगले दो वर्ष में पूर्ण करने का लक्ष्य है। इससे 42 हजार 625 हेक्टेयर में सिंचाई क्षमता निर्मित होगी।मुख्यमंत्री ने इस सहयोग के लिए छत्तीसगढ़ की जनता की ओर से प्रधानमंत्री को साधुवाद दिया।

मुख्यमंत्री ने कहा कि हमने दूरगामी योजना के तहत नदियों को जोड़ने की परियोजनाओं पर भी विचार किया है। उन्होंने छह ऐसी लिंक परियोजनाओं के बारे में बताया। डॉ. सिंह ने कहा-इसके अंतर्गत महानदी-तांदुला, पैरी-महानदी, रेहर-अटेंग, अहिरन-खारंग, हसदेव-केवई और कोड़ार-नैनी नाला लिंक परियोजनाएं शामिल हैं। नदियों में हमेशा जल भराव रहे, उनके किनारे वृक्षारोपण हो और जल संरक्षण तथा संवर्धन का अभियान चलाया जाए। इसके लिए तकनीकी मार्गदर्शन हेतु ’ईशा फाउंडेशन’ के साथ एमओयू किया गया है।