जदयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में पार्टी के दिग्गजों की मौजूदगी में एक बात नसीहत पर भी हुई थी जो ललन सिंह के इस्तीफे और नीतीश कुमार के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बीच दब गयी थी। पर अब यह दबा हुआ मसला राजनीतिक गलियारे में चर्चा का विषय बना है।
आने वाले समय के लिए यह एक बड़े संकेत की बात भी कर रहा। जदयू की तरफ से इस बात को आगे किया गया कि आईएनडीआईए में जिम्मेदारी उस नेता को दी जाए जो अनुभव और कार्यक्षमता रखते हों। इस बिंदु पर कांग्रेस का नाम लिए बगैर यह कहा गया कि बड़े दल को उदार बनने की आवश्यकता है। अनायास ही यह नहीं है। इसके निहितार्थ साफ-साफ हैं।
आईएनडीआईए की दिल्ली बैठक में जब पश्चिम बंगाल की मु्ख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आईएनडीआईए में नेतृत्वकर्ता के रूप में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे का नाम लिया था तब जदयू को यह अच्छा नहीं लगा था। एतराज भी किया था जदयू ने। पर अब तो नीतीश कुमार की मौजूदगी में यह बात हो रही कि अनुभव और कार्यक्षमता के अनुरूप ही किसी नेता को आईएनडीआईए की जिम्मेदारी दी जाए।
जदयू की पसंद नीतीश कुमार
जदयू ने साफ-साफ कहा है कि नीतीश कुमार देश में वैकल्पिक राजनीति के प्रस्तोता हैं। प्राय: सभी बैठकों में उन्हें आईएनडीआईए का सूत्रधार कहा जाता है। जदयू बहुत ही स्पष्ट अंदाज में यह कह रहा कि अगर इस महागठबंधन को सफल और कामयाब देखना तो फिर बड़े दल का बड़ा दिल दिखाना होगा। जदयू सजगता, समझदारी, समन्वय और संकल्प की बात कर रहा।
सीट शेयरिंग को लेकर कब होगी बात
जदयू की इस संकेत वाली नसीहत के बीच सीट शेयरिंग को ले जनवरी के पहले हफ्ते में बात बढ़ेगी। बिहार में तो पुराने आंकड़े आधार पर सब कुछ तय सा माना जा रहा। जदयू के अंदरखाने में यह पहले से ही चर्चा में है कि उनके दल को कौन-कौन सी सीटें मिलनी हैं।
बगैर किसी चर्चा के सीतामढ़ी सीट के लिए जदयू ने अपने प्रत्याशी के नाम का भी ऐलान कर दिया है। कुछ अन्य सीटों पर नाम की चर्चा शुरू है जो तयशुदा अंदाज में है। पर इसके अतिरिक्त जदयू कुछ अन्य राज्यों में भी अपने प्रत्याशी उतारने की तैयारी में है।
उत्तर पूर्व के राज्यों के अतिरिक्त झारखंड, यूपी, हरियाणा और कर्नाटक में जदयू अपनी उपस्थिति दर्ज कराना चाहता है। इस संदर्भ में भी बड़े दल के उदार बनने का आशय सहजता से समझा जा सकता है। इन जगहों पर जदयू को अगर सीट मिलती है तो वह अीईएनडीआईए के स्तर पर ही तय होगा।