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अविश्वास प्रस्ताव : संसद में ‘पारसी-थियेटर’ की राजनीतिक-प्रस्तुति – उमेश त्रिवेदी

उमेश त्रिवेदी

लोकसभा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ प्रस्तुत पहले अविश्‍वास-प्रस्ताव में मोदी-सरकार की तकनीकी जीत से ज्यादा महत्वपूर्ण वो नैतिक और राजनैतिक पहलू हैं, जो अनुत्तरित रह गए हैं और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आसपास घेरा बनाकर खड़े हैं। आज नहीं, तो कल फिर अविश्‍वास प्रस्ताव के आरोपों की शक्ल में ही, अथवा नए रूप में ये राजनीति को उद्वेलित करेंगे, जनता के मर्म में खराश पैदा करेंगे और सत्ता पर काबिज लोगों के लिए परेशानियों का सबब बनेंगे। प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी सरकार के खिलाफ प्रस्तुत अविश्‍वास-प्रस्ताव के दरम्यान कोई नब्बे मिनट तक अपने धाराप्रवाह उत्तर के माध्यम से राजनीति की लहरों में जो कौतुक पैदा किया था, वह पूरक-सवालों के रूप में अब भाजपा के तटबंधों से ही टकराने लगा है।

अविश्‍वास प्रस्ताव पर हार-जीत की भूमिका पहले से ही तय थी। यह कोई चौंकाने वाली बात नहीं है कि मोदी सरकार ने भारी बहुमत से विश्‍वास का मत हासिल कर लिया और विपक्ष हार गया। जिन लोगों के मन में इस सुनिश्‍चित हार-जीत को लेकर गुदगुदी पैदा हो रही है, वो या तो नासमझी का नाटक कर रहे हैं अथवा प्रायोजित मीडिया-रणनीति को आगे बढ़ा रहे हैं। 20 जुलाई को तेलुगु देशम पार्टी द्वारा पेश अविश्‍वास प्रस्ताव पर मोदी-सरकार की जीत से भाजपा को सिर्फ संसद में राहत मिली है। विपक्ष के तर्कों और तकरीरों का यह सिलसिला अभी खत्म नहीं हुआ है। ये सभी मुद्दे दूने जोर से जनता की अदालत में भी पेश होने वाले हैं। जहां उसे हर उस सवाल का जवाब देना होगा, जिसे लोकसभा में टाला गया है। केन्द्र-सरकार यदि यह सोच रही है कि लोगों ने रफाल-डील में सरकार के बयान को सच मान लिया है, तो यह उसकी भूल है। लोगों का विवेक अभी इतना कुंद भी नहीं हुआ है कि वो मॉब-लिंचिंग, समाज में गहराते धार्मिक और जातीय विभाजन, आर्थिक संकट, बेरोजगारी, किसान-आंदोलन जैसे मुद्दे पर प्रधानमंत्री मोदी की खामोशी अथवा अनदेखी के कारणों को समझ नहीं सकें। यह जनता है, जो सब जानती है।

अविश्‍वास प्रस्ताव पर मोदी के भाषण पर भाजपा और कांग्रेस की ट्रोलिंग-सेना की किलकारियों के बीच तेलुगू देशम पार्टी के श्रीनिवास केसिनेनी की लगभग अनसुनी रह गई यह प्रतिक्रिया गौरतलब है कि ’’मुझे लगा कि मैं बीते डेढ़ घंटे से कोई ब्लॉकबस्टर फिल्म देख रहा था, इसमें कोई शक नहीं कि वो संसद में मौजूद मेरे साथ दुनिया के सबसे बेहतरीन एक्टर हैं’। यह प्रतिक्रिया हिन्दुस्तान में पारसी-थियेटर के साठ-सत्तर साल पुराने उस जमाने की याद को ताजा करती है, जब डॉयलॉग-डिलीवरी में चीखने के अंदाज का काफी महत्व था। पारसी-थियेटर को लोकप्रिय बनाने वाली कई विशेषताओं में नाटकों के दौरान बोले जाने वाले लंबे संवादों को सबसे ज्यादा महत्व दिया जाता था। पारसी नाटकों में संवाद ऊंची आवाज में बोले जाते हैं, इसीलिए उनमें अतिनाटकीयता भी होती है। पृथ्वीराज कपूर और सोहराब मोदी पारसी थियेटर के दिग्गज कलाकारों में गिने जाते थे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देश के लोकप्रिय वक्ताओं में सर्वश्रेष्ठ माने जाते हैं। भाषण-कला की कसौटियों पर राहुल गांधी उनके सामने कहीं नहीं टिकते हैं। पारसी थियेटर की परम्पराओं के अनुसार भावातिरेक के साथ उंची आवाज में बोलना मोदी की विशेषता है।

अविश्‍वास के मत पर उस दिन सदन में जो नाटकीय दृश्य प्रस्तुत हुए, वो पारसी थियेटर की नाट्य-कथाओं की याद दिलाते हैं। वैसे तथ्यों के लिहाज से मोदी के डेढ़ घंटे के भाषण में आसानी से पुनरावृत्ति दोष ढूंढा जा सकता है। वो उन आरोपों से नजर चुरा रहे थे, जो राहुल गांधी ने लगाए थे। बहरहाल, मोदी अभी तक देश की राजनीति का एजेण्डा सेट करते रहे हैं। इस अविश्‍वास-प्रस्ताव के बाद पहली बार लगा है कि 2019 के लोकसभा-चुनाव के पहले राहुल गांधी ने देश की राजनीति का एजेण्डा सेट करने की कोशिश की है। उन्होंने मोदी के गले मिलकर यह संदेश देने की कोशिश की कि वो मोदी की नफरत की राजनीति का मुकाबला प्रेम की राजनीति से करेंगे। देश में सांप्रदायिकता, जातीय-विभाजन और मॉब-लिंचिंग की कहानियों के बीच राहुल गांधी की यह राजनीतिक स्क्रिप्ट क्या गुल खिलाने वाली है, यह देखना दिलचस्प होगा? यह देखना भी दिलचस्प होगा कि राहुल गांधी की इस गांधीगिरी के बाद देश में घृणा-विद्वेष और नफरत के पारसी-थियेटरनुमा राजनीतिक-संवादों से मुक्ति मिल पाएगी या नहीं…? या गुजरात और उप्र के समान हर चुनाव के अंतिम दौर में नेताओं के भाषणों में श्मशान-कब्रिस्तान और कफन जैसे नफरत बढ़ाने वाले मुहावरे गुर्राने लगेंगे?

 

सम्प्रति- लेखक श्री उमेश त्रिवेदी भोपाल एनं इन्दौर से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के प्रधान संपादक है। यह आलेख सुबह सवेरे के 23 जुलाई के अंक में प्रकाशित हुआ है।वरिष्ठ पत्रकार श्री त्रिवेदी दैनिक नई दुनिया के समूह सम्पादक भी रह चुके है।