
पांच राज्यों में कांग्रेस की वापसी की कोशिशों में जुटे राहुल गांधी की अपनी अमेठी में भाजपा की घेराबंदी तेज है। 2014 में हार के बाद भी स्मृति ईरानी अमेठी की ओर से उन्हें आश्वस्त नही होने दे रहीं। उनकी पार्टी और राज्य-केंद्र की सरकारें उनके साथ हैं। लोकसभा में अमेठी का तीसरी बार प्रतिनिधित्व कर रहे राहुल का 2014 में अमेठी से जीत का अंतर एक लाख वोटों का रह गया था। अमेठी से सिर्फ तीन हफ्ते पुरानी अपनी मुलाकात में स्मृति ने तीन लाख से ज्यादा वोट जुटाए थे। परिवार से अमेठी के चालीस साल के गहरे भावनात्मक जुड़ाव के बाद भी राहुल को इस चुनाव में मतदान के दिन एक से दूसरे मतदान के बीच भारी मेहनत करनी पड़ी थी।
स्मृति ईरानी ने इस चुनाव में हार-जीत हर हाल में अमेठी से जुड़े रहने का वायदा किया था। वह उस पर कायम हैं।राहुल अपने परिवार के अमेठी की नुमाइंदगी करने वाले चौथे सदस्य हैं। इस परिवार का असफल मुकाबला करने वालोँ ने अमेठी की ओर पलट कर नही देखा। स्मृति अपवाद हैं और इसकी वजहें भी हैं। वह चुनाव हारी लेकिन केंद्र में उनकी पार्टी की सरकार बनी और उसमें उन्हें मंत्रिपद मिला। पार्टी नेतृत्व ने अमेठी को अपनी प्राथमिकताओं में शामिल किया और 2014 की हार के फौरन बाद 2019 की तैयारी में जुटा दिया। 2017 में उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार आने के बाद स्मृति ईरानी को और ताकत मिली। अब वह केंद्र और प्रान्त सरकार की मदद से वहां के निर्वाचित सांसद की तुलना में ज्यादा प्रभावी हैं।अमेठी के हर दौरे में वह वहां के लिए कुछ देने और करने की स्थिति में रहती हैं।
2014 की लोकसभा में उत्तर प्रदेश की सिर्फ अमेठी और रायबरेली सीटें गांधी परिवार के जरिये कांग्रेस के हिस्से में आयीं। 2017 के विधानसभा चुनाव में सपा के गठबंधन में पार्टी जिन 117 सीटों पर मैदान में उतरी उसमे सिर्फ सात में उसे सफलता मिली। इनमें सोनिया गांधी के निर्वाचन क्षेत्र रायबरेली की दो सीटें हैं। अमेठी में उसकी स्लेट साफ रही। वहां चार भाजपा और एक सपा के खाते में गई। समझौते के बाद भी अमेठी की दो सीटों पर कांग्रेस और सपा आपस मे टकराये थे। इनमें गौरीगंज सीट सपा जीत गई थी, जबकि अमेठी विधानसभा सीट पर कांग्रेस चौथे स्थान पर थी। विधानसभा चुनाव नतीजों ने स्मृति ईरानी और भाजपा का हौसला और बढ़ाया। हालांकि लोकसभा चुनाव में गांधी परिवार को सिर-माथे बिठाती अमेठी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को पहले भी झटके देती रही है लेकिन 1977 की जनता लहर के बाद 2017 का यह पहला मौका था जब कांग्रेस के हाथ से पांचों सीटें हाथ से निकल गईं। गांधी परिवार के कारण सुर्खियों में रहने की अभ्यस्त हो चुकी अमेठी की खास परवाह करते दिखने की भाजपा और उसकी सरकारें पूरी कोशिश करती हैं। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अमेठी में कार्यक्रम हो चुके हैं। स्मृति के साथ और अलग से भी केंद्रीय और प्रदेश के मंत्रियों के वहां के नियमित दौरे होते रहे हैं। केंद्र के साथ ही प्रदेश में भी स्मृति अमेठी से जुड़े मसलों को उठाती है और सरकारें उनके सुझावों को पूरी गंभीरता से लेती हैं। राज्य में तो मंत्रियों के एक समूह पर इन पर ध्यान देने की जिम्मेदारी डाली गई है। इस बार के अमेठी दौरे के पहले भी स्मृति ईरानी की लखनऊ में मुख्यमंत्री के साथ बैठक हुई थी। स्मृति का अमेठी के हर दौरा पूरी तैयारी के बीच होता है। राज्य और केंद्र से कुछ वादे लेकर वह यहां पहुंचती हैं। घोषणाओं के साथ कुछ लोकार्पण के कार्यक्रम होते हैं। उनके प्रतिनिधि विजय गुप्ता पहले से पहुंच पार्टी के लोगों को सक्रिय करते हैं। स्मृति ईरानी के पास पारिवारिक विरासत भले न हो लेकिन पिछले साढ़े चार साल में उन्होंने अपने व्यवहार और वाक कौशल से स्थानीय लोगों के बीच पैठ बनाई है। फिलहाल बार-बार आने वाली यह दीदी सिर्फ चुनाव में आने वाली प्रियंका दीदी से उन्नीस नही है। वह भारी भीड़ खींचती हैं और सीधे जुड़ती हैं।
वैसे कांग्रेस ने स्मृति के लिए खुला और खाली मैदान नही छोड़ा है। राहुल अपने अमेठी के हर दौरे में भाजपा राज में अमेठी की उपेक्षा का मुद्दा जोर-शोर से उठाते हैं। उनके वक्त की मंजूर योजनाओं की वापसी या उनके ठप होने के आरोप भी सुर्खियों में रहते हैं। 2014 में वह रक्षात्मक मुद्रा में थे। विपक्षी के रूप में अमेठी के निर्वाचित सांसद अपने पराजित लेकिन सत्तासीन प्रतिद्वन्दी और सरकारों को घेरने का कोई मौका नही छोड़ते। अपनी सक्रियता और सरकारों के जरिये स्मृति अमेठी में बहुत कुछ करने में सफल रही है लेकिन शिकायतें, जरूरतें और समस्याएं अंतहीन हैं। 2014 में वह हिसाब मांग रही थीं।2019 में उन्हें भी हिसाब देना है। अपने विधायकों और सरकारों की नाकामियों का बोझ संभालते उन्हें ताकतवर प्रतिद्वन्दी का मुकाबला करना है। अपनी उपलब्धियां गिनाती और प्रतिद्वन्दी परिवार ने चालीस साल में अमेठी को क्या दिया का आरोप लगाते अब उनसे भी पलट सवाल होंगे। पलटवार वह तेज करती हैं। इसलिए तय है कि इस बार की अमेठी की लड़ाई कुछ और तीखी- कुछ और दिलचस्प होगी। यह लड़ाई व्यस्त राहुल को अमेठी को अधिक समय देने के लिए विवश कर सकती है।”’ और भाजपा यही तो चाहती है!
सम्प्रति- लेखक श्री राज खन्ना वरिष्ठ पत्रकार है।श्री खन्ना के आलेख विभिन्न प्रमुख समाचार पत्रों में प्रकाशित होते रहते है।
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