
मध्यप्रदेश में पुराने परम्परागत रुझानों को देखा जाए तो कांग्रेस को सत्ता में लाने का रास्ता विंध्य, बुंदेलखंड और महाकोशल से होकर गुजरता रहा है तो वहीं निमाड़, मालवा और मध्यभारत जिसमें चम्बल का इलाका भी शामिल है उसमें अपेक्षाकृत भाजपा की पकड़ काफी मजबूत रही है। कांग्रेस को यदि डेढ़ दशक बाद सत्ता में वापस आना है तो उसे अपने इस परम्परागत गढ़ को फिर से उर्वरा बनाना होगा और भाजपा के असर वाले क्षेत्रों में सेंध लगाना होगी। इसी प्रकार मध्यभारत, मालवा, निमाड़ में कांग्रेस जिस प्रकार की सेंधमारी करना चाहती है उसको कम करना और अपने परंपरागत गढ़ को अभेद्य किले के रूप में सुरक्षित बनाये रखना भाजपा के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है। यदि वह अपने परम्परागत गढ़ों को बचाने और जिन नये इलाकों में उसके पैर फैले हैं उन पर अपनी पकड़ मजबूत बनाये रखती है तो चौथी बार सत्ता में आने की उसकी राह कुछ अधिक आसान हो जाएगी।
लम्बे समय से भाजपा और कांग्रेस में संगठनात्मक स्तर पर महाकोशल की उपेक्षा होती रही है और संगठन मुखिया के पद पर इस अंचल का असर नहीं रहा है, बल्कि दोनों ही पार्टियों के अध्यक्ष एक-दो अपवादों को छोड़कर मध्यभारत, मालवा, निमाड़ या भोपाल इलाके के रहे हैं। महाकोशल का मुख्यालय जबलपुर इन अंचलों की राजनीति को गहरे तक प्रभावित करता रहा है, यही कारण है कि कांग्रेस ने अपने वरिष्ठतम नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री कमलनाथ को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है। भाजपा ने भी जबलपुर के सांसद राकेश सिंह को पार्टी की कमान सौंपी है। कमलनाथ न केवल महाकोशल बल्कि पूरे प्रदेश व देश में एक जाना-पहचाना नाम है जबकि राकेश सिंह प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद अपनी स्वीकार्यता सभी अंचलों में बढ़ाने के लिए सक्रिय हो गए हैं, लेकिन अभी भी महाकोशल में राजनीतिक दृष्टि से बड़ा एवं दबदबे वाला नाम कमलनाथ का है। बुंदेलखंड में उमा भारती से लेकर जयंत मलैया, गोपाल भार्गव, भूपेंद्र सिंह सहित कुछ नेता हैं जिनकी अपने-अपने असर वाले क्षेत्रों में पकड़ है। कांग्रेस के पास इस क्षेत्र में फिलहाल सत्यव्रत चतुर्वेदी, गोविंद राजपूत और सुरेंद्र चौधरी, राजा पटेरिया जैसे कुछ नाम हैं, इसलिए इस इलाके में न्याय यात्रा के माध्यम से अजय सिंह लम्बे समय से सक्रिय हैं तो कमलनाथ व ज्योतिरादित्य सिंधिया भी इस इलाके में अब अपनी सक्रियता और बढ़ाने वाले हैं। बुंदेलखंड में 29 विधानसभा सीटों में से कांग्रेस के पास केवल 7 सीटें ही हैं और कांग्रेस को यदि चुनाव में अपनी ताकत बढ़ाना है तो उसे यहां पूर्व की भांति अपने लिए अधिक अनुकूल जमीन तैयार करना होगी।
विंध्य अंचल जिसे रेवांचल कहा जाता है का सवाल है उसकी 30 सीटों में से कांग्रेस के पास 12 सीटें हैं। चौदहवीं विधानसभा में मध्यप्रदेश के किसी भी अंचल में कांग्रेस की स्थिति सबसे बेहतर थी तो वह यही इलाका था जहां से कि नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह हैं। 2008 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को इस अंचल में केवल 2 सीटें मिली थीं जबकि 2013 में यह आंकड़ा 12 तक ले जाने में अजय सिंह की महत्वपूर्ण भूमिका थी। लेकिन कांग्रेस विधायक नारायण त्रिपाठी के भाजपा में शामिल होने और उपचुनाव जीतने के बाद कांग्रेस के पास 11 विधायक रह गये। यही कारण है कि अजय सिंह इस समय अपनी पूरी ताकत से कांग्रेस के सभी गुटों में तालमेल बिठाते हुए सक्रिय हैं और उनकी न्याय यात्रा में कांग्रेस के सभी गुटों के नेता शामिल रहते हैं। सुंदरलाल तिवारी, इंद्रजीत पटेल, कमलेश्वर पटेल सहित विभिन्न जातियों के नेता भी उनके साथ कांग्रेस को मजबूत बनाने की यात्रा में शामिल होते हैं। कांग्रेस के पास नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह, विधानसभा उपाध्यक्ष राजेंद्र सिंह, के रूप में दो बड़े चेहरे हैं तो वहीं भाजपा के पास बड़े चेहरे के रूप में केवल उद्योग मंत्री राजेंद्र श्ाुक्ल हैं जिनका अच्छा असर अपने सौम्य व सरल व्यवहार के कारण है। इसके अलावा अजय प्रताप सिंह को संगठन में हमेशा महत्व मिलता रहा है और अब राज्यसभा सदस्य बनाकर उनका कद भी भाजपा ने बढ़ाने का प्रयास किया है।
जहां तक महाकोशल का सवाल है इस इलाके की 33 सीटों में से कांग्रेस के पास महज 10 सीटें हैं। वैसे यदि पुराने महाकोशल को लिया जाए तो इनकी संख्या अधिक होती है लेकिन महाकोशल का अंग रहा दमोह और सागर जिला अब बुंदेलखंड में गिने जाते हैं और खंडवा तथा बुरहानपुर की निमाड़ अंचल में गिनती होती है। कुल मिलाकर प्रदेश के दक्षिण-पूर्वी भाग में 91 विधानसभा सीटें हैं जिनमें से कांग्रेस के पास महज 27 सीटें हैं। इस आधार पर कांग्रेस महाकोशल और विंध्य में बुंदेलखंड की तुलना में कुछ अधिक मजबूत है। जबकि 2003 के पहले इन इलाकों में कांग्रेस की मजबूत पकड़ रहती थी। यहां कांग्रेस यदि कमलनाथ के सहारे है तो भाजपा राकेश सिंह पर भरोसा कर अपना-अपना आधार बढ़ाने की कोशिश कर रही हैं। कांग्रेस की ताकत 2014 के बाद देखी जाए तो कुछ इस मामले में कम हुई है कि उसके युवा नेता संजय पाठक जो काफी साधन सम्पन्न हैं वे कांग्रेस छोड़कर भाजपा में चले गये और अब भाजपा विधायक के साथ ही शिवराज सरकार में मंत्री भी हैं। पाठक का कांग्रेस छोड़कर भाजपा में जाना उस इलाके में कांग्रेस के लिए झटका है और उसकी भरपाई कांग्रेस किसे सामने लाकर करती है यह आने वाले कुछ समय बाद ही पता चल सकेगा, जब कांग्रेस अपने पत्ते खोलेगी। भाजपा में राकेश सिंह के साथ ही एक बड़ा चेहरा सांसद तथा पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल का है जिनका असर दमोह, जबलपुर, नरसिंहपुर, बालाघाट और सिवनी में भी रहा है और एक बार वे लोकसभा चुनाव में कमलनाथ का भी मुकाबला कर चुके हैं, हालांकि वह चुनाव कमलनाथ ने ही जीता था। भाजपा ने गुटीय संतुलन बनाये रखने के लिए कैलाश सोनी को भी राज्यसभा में भेज दिया है। कांग्रेस को अपना आधार बढ़ाने के लिए कमलनाथ का ही सहारा है तो वहीं दूसरी ओर भाजपा में यदि राकेश सिंह, प्रहलाद पटेल व कैलाश सोनी के बीच पूरी तरह से अच्छा विश्वासपूर्ण तालमेल हो जाता है तो फिर कांग्रेस को अपना आधार बढ़ाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाना होगा।
और यही भी
पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर कुछ बोलते हैं या ऐसी जगह अपनी उपस्थिति दर्ज करा देते हैं कि भले ही ऊपर से भाजपा सहज होने का उपक्रम करे लेकिन वह असहज हो जाती है। गौर के बयान कई मर्तबा ऐसे होते हैं जैसे कि कहीं पर निगाहें कहीं पर निशाना। यानी उनकी निगाहें कहीं और होती हैं और घुमा फिराकर निशाने पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान आ जाते हैं। कमलनाथ छिंदवाड़ा के विकास को एक रोल मॉडल मानते हुए अगला विधानसभा चुनाव इसी नारे के साथ लड़ना चाहते हैं कि उन्होंने छिंदवाड़ा में जितना विकास किया है उतना प्रदेश में किसी अन्य जिले में नहीं हुआ है। यदि कांग्रेस की सरकार बनती है तो छिंदवाड़ा के विकास मॉडल को पूरे प्रदेश में लागू करेंगे। ‘छिंदवाड़ा मॉडल’ सर्वांगीण विकास का व्यापक दृष्टिकोण का विमोचन समारोह राजधानी भोपाल में हुआ जिसमें सभागार में अधिकांश कांग्रेस नेता और कार्यकर्ता भी थे लेकिन इस समारोह के बतौर मुख्य अतिथि बाबूलाल गौर ने विमोचन किया। यह तो हो नहीं सकता कि छिंदवाड़ा पर केंद्रित पुस्तक का विमोचन हो और उसमें वहां कुछ हुआ भी नहीं हुआ ऐसा कहा जाए। यह स्वाभाविक था कि उसमें गौर तारीफ करते। जिस छिंदवाड़ा के विकास मॉडल को लेकर कांग्रेस चुनाव लड़ने जा रही है उसकी तारीफ यदि गौर ने की है तो इससे स्वाभाविक रूप से भाजपा असहज ही होगी। भले ही भाजपा नेता यह कह रहे हैं कि छिंदवाड़ा भी मध्यप्रदेश का एक जिला है और वह विकसित हुआ है तो इसका श्रेय केवल शिवराज को जाता है। जहां तक छिंदवाड़ा का सवाल है जबसे वे यहां से सांसद बने हैं तबसे अब तक वहां जो भी विकास की नई इबारत लिखी गयी है उसके न केवल शिल्पकार बल्कि पर्याय कमलनाथ ही माने जाते हैं। कांग्रेस प्रवक्ता नरेंद्र सलूजा का कहना है कि पुस्तक का विमोचन कर गौर ने एक बार फिर छिंदवाड़ा के विकास मॉडल पर मोहर लगा दी है।
सम्प्रति-लेखक श्री अरूण पटेल अमृत संदेश रायपुर के कार्यकारी सम्पादक एवं भोपाल के दैनिक सुबह सबेरे के प्रबन्ध सम्पादक है।
CG News | Chhattisgarh News Hindi News Updates from Chattisgarh for India