नई दिल्ली 26सितम्बर।उच्चतम न्यायालय ने केन्द्र सरकार की योजना आधार को संवैधानिक रूप से वैध घोषित किया है।
आधार योजना की संवैधानिक वैधता और इस लागू करने संबंधी 2016 के कानून को चुनौती देने संबंधी याचिकाओं पर न्यायालय ने यह फैसला दिया।
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने व्यवस्था दी कि आधार योजना का उद्देश्य समाज के बेहद पिछड़े वर्गों तक लाभ पहुंचाना है क्योंकि विशिष्ट पहचान प्रमाण इन वर्गों को सशक्त बनाता है और इन्हें पहचान देता है। न्यायालय ने कहा कि यह योजना अनूठी है तथा सर्वश्रेष्ठ होने से अनूठा होना कहीं अच्छा है। न्यायालय ने हालांकि आधार अधिनियम की धारा-57 समाप्त कर दी, जिसके तहत निजी कम्पनियां आधार डाटा मांग सकती थी।
न्यायालय ने कहा कि सरकारी योजनाओं और सबसिडी का लाभ लेने के लिए विशिष्ट पहचान संख्या जरूरी होगी। इस मुद्दे पर फैसले पर तीन सेट सुनाये गये जिनमें से पहला न्यायमूर्ति ए0 के0 सीकरी ने पढ़ा। न्यायमूर्ति सीकरी ने कहा कि जितनी जल्दी हो सके डाटा सुरक्षा की सशक्त व्यवस्था बनाई जानी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि आधार योजना के तहत नाम दर्ज कराने के लिए यू आई डी ए आई ने बहुत कम डेमोग्राफिक और बायोमीट्रिक डाटा एकत्र किया है।
न्यायालय ने कहा कि डुप्लीकेट आधार प्राप्त करने की कोई संभावना नहीं है क्योंकि आधार योजना के तहत प्रमाणीकरण के लिए समुचित सुरक्षा तंत्र है।न्यायालय ने कहा कि आधार कार्ड में ऐसा कुछ नहीं है जिससे व्यक्ति के निजता के अधिकार का उल्लंघन होता हो।
न्यायालय ने व्यवस्था दी कि किसी बच्चे के आधार कार्ड न लाने की स्थिति में उसे किसी योजना के लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता। न्यायालय ने यह भी कहा कि स्कूलों में दाखिले के लिए आधार आवश्यक नहीं है और सी बी एस ई, नीट अथवा विश्वविद्यालय अनुदान आयोग आधार को अनिवार्य नहीं बना सकते।
सर्वोच्च न्यायालय ने यह व्यवस्था भी दी कि आधार को बैंक खातों से जोड़ना अनिवार्य नहीं है और दूरसंचार सेवा प्रदाता आधार से जोड़ने के लिए नहीं कह सकते। लेकिन आयकर रिटर्न भरने और स्थायी खाता संख्या – पैन का आवेदन करने के लिए यह अनिवार्य होगा। न्यायमूर्ति सीकरी ने लोकसभा में आधार विधेयक को धन विधेयक के रूप में पारित करने को भी सही ठहराया।
आधार कार्यक्रम विश्व का सबसे बड़ा बायोमीट्रिक और पहचान डेटा बेस है। इसके तहत भारतीय नागरिकों या 180 दिन से ज्यादा समय तक भारत में रहने वाले 120 करोड़ से ज्यादा लोगों को आधार संख्या जारी की जा चुकी है।