रघु ठाकुर
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ संचालक जनसंख्या वृद्धि दर की बहस में शामिल हो गए हैं। उन्होंने जनसंख्या वृद्धि दर 2.1 प्रतिशत से कम होने पर चिंता व्यक्त की है और अपील भी की है कि जनसंख्या की वृद्धि दर कम से कम 3 प्रतिशत होनी चाहिए। इसमें उन्होंने यह भी कहा कि हर दंपत्ति को दो से ज्यादा यानी तीन बच्चे पैदा करने चाहिए।
श्री मोहन भागवत जी ने कहा है कि कुटुंब समाज का हिस्सा है यानी अगर जनसंख्या वृद्धि दर 2 प्रतिशत से कम हो जाती है तो समाज अपने आप नष्ट हो जाता है, उसे बाहरी शक्ति के द्वारा नष्ट करने की जरूरत नहीं होती। उन्होंने यह भी दिव्यज्ञान दिया है कि कई समाज व भाषाएं इसी कारण से नष्ट हो गए। उन्होंने जनसंख्या वृद्धि दर के बारे में कहते हुए कहा कि जनसंख्या नीति वर्ष 2000 के आसपास तय हुई है और उसमें भी यही तय हुआ था। आगे चलकर उन्होंने हिन्दुओं की संख्या 7.8 प्रतिशत से कम होने की भी बात कही तथा बताया कि प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के मुताबिक 1950 से 2015 तक भारत में हिन्दू बहुसंख्यक थे। उनके अनुसार इस आर्थिक सलाहकार परिषद ने दुनिया के 167 देश में 1950 से 2015 तक हो रहे बदलाव का अध्ययन किया है जिसके अनुसार भारत में 1950 में हिंदुओं की जनसंख्या का हिस्सा 84 प्रतिशत था जो 2015 में 78 प्रतिशत तक रह गया और मुसलमानों का 1950 में हिस्सा 9. 84 थी जो 2015 तक बढ़कर 14.90 प्रतिशत हो गया।
यह बहस कोई पहली बहस नहीं है जो श्री मोहन भागवत जी ने शुरू की है बल्कि उनके अग्रज स्वर्गीय रज्जू भैया और बाद में स्वर्गीय सुदर्शन जी ने भी जो दोनों सर संघ संचालक रहे हैं ऐसी अपेक्षाएं हिंदू समाज से की थी। स्वर्गीय सुदर्शन जी ने तो मध्यप्रदेश में लागू पंचायती चुनाव में दो बच्चों से अधिक लड़ने वाले प्रत्याशियों के ऊपर प्रतिबंध भी हटवा दिया था। हालांकि उनके इस प्रतिबंध हटवाने एवं इस अपील के बाद की हिन्दू कम से कम 5 बच्चे पैदा करें फिर भी हिन्दू आबादी क्यों घटी इस पर संघ ने कभी गंभीर विचार विमर्श नहीं किया। यह बहस कुछ दिनों पूर्व आंध्र के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू जी ने शुरू की और इसका समर्थन तमिलनाड़ के मुख्यमंत्री श्री स्टालिन जी ने भी किया है। हालांकि श्री नायडू और श्री स्टालिन का आबादी वृद्धि का तर्क और नजरिया कुछ अलग प्रकार का है। यह आम चर्चा है कि लोकसभा के क्षेत्र का पुनः निर्धारण आबादी के अनुसार होना है और इस आधार पर दक्षिण राज्यों की हिस्सेदारी उत्तर भारत की हिस्सेदारी की तुलना में घटने की संभावना है इसलिए वह अपने राज्यों की सांसद प्रतिनिधि संख्या को कायम रखने के लिए आबादी को बढ़ाने के लिए चिंतित हैं। जाहिर तौर पर उन्होंने हिन्दू मुसलमान को तो आधार नहीं बनाया परंतु कतिपय वैश्विक रपटों को अपना आधार बनाया है जोकि बहुत तार्किक नहीं है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख भागवत जी के इस मुद्दे पर कूदने के बाद यह निर्विवाद है कि एक बड़ी बहस देश में चलेगी इसलिए भी कि वे देश के बड़े संगठन के संचालक हैं और कहा जाता है कि भाजपा के केंद्र और राज्य सरकारों के नियंत्रक भी हैं। इसलिए यह भी संभव है कि केंद्र व राज्यों की भाजपा की सरकारें इस दिशा में सक्रिय हो।
मैं श्री मोहन भागवत की सलाह से-प्रधानमंत्री सलाहकार परिषद से-व उन संगठनों से बिल्कुल भी सहमत नहीं हूँ। अगर हम देखें तो दुनिया में कम आबादी वाले देश आमतौर पर ठंडे मुल्क रहे हैं। क्योंकि उनकी प्राकृतिक परिस्थितियों में संतति का कम होना स्वाभाविक था। क्षेत्रफल के दृष्टिकोण से रूस, अमेरिका, आस्टे्लिया, कनाडा आदि देश काफी विस्तृत हैं परंतु आबादी की दृष्टि से बहुत कम हैं। आज अमेरिका आबादी के हिसाब से भारत से लगभग एक चौथाई के आसपास है या उससे भी कम,ऐसी ही स्थिति रूस, आस्ट्रेलिया, कनाडा आदि की भी है। परंतु क्या यह देश मिट गए बल्कि देखा जाए तो यह देश आज भी ताकत में भारत से बहुत आगे हैं, यहां तक कि चीन से भी आगे हैं तथा दुनिया को उनसे खतरा है। भारत ने तो सन 2000 से पहले हम दो हमारे दो की नीति बनाई थी परंतु चीन ने तो हम दो हमारे एक की ही नीति बनाई तथा 140 करोड़ की सीमा तक पहुंच गया। 18वीं सदी में ब्रिटेन, 17 वीं सदी में जर्मनी या फ्रांस छोटे-छोटे मुल्क थे जिनकी आबादी भारत की तुलना में कम थी परंतु यह यूरोप के बड़े देशों से टकराते रहे और ब्रिटेन ने तो भारत जैसे विशाल देश पर जो उस समय अफगानिस्तान से लेकर वर्मा तक फैला था, पर कब्जा किया और 150 साल गुलाम बनाकर रखा तो फिर आबादी कहां थी? अच्छा होता कि डॉक्टर मोहन भागवत श्री एडमंड शैली की किताब श्हाऊ वी कान्कवार्ड इंडिया्य श्हमने भारत को कैसे जीता्य को पढ़ लेते जिसमें उन्होंने उस कालखंड के तथ्यों का वर्णन किया है और बताया है कि मात्र सवा लाख अंग्रेज सेना 1857 से लेकर 1947 तक यानी लगभग 90 वर्ष भारत पर राज करती रही। क्या इसका कारण आबादी की कमी है? पर दरअसल ऐसा प्रतीत होता है कि श्री मोहन भागवत जातिवाद के उन असली कारणों को छुपाना चाहते हैं जो भारत की ब्रिटिश गुलामी के लिए जिम्मेदार थे अगर उससे पहले के इतिहास पर जाएं तो मुगल आक्रमण के समय भी भारत कोई छोटा देश नहीं था तथा मुगलों की सेनाओं के कितने सैनिकों ने भारत पर आकर कब्जा जमाया था? क्या बाबर, गजनी या गोरी उस समय की हिन्दुस्तान की कुल आबादी से अधिक सैनिक अरब तुर्क आदि से लेकर आए थे? सच्चाई तो यह है कि भारत ने जातिवाद और सामंतवाद के कारण से अपनी एकजुटता को सदैव स्वतः कमजोर किया है और देश को गुलाम बनाने के रास्ते प्रस्तुत किये। श्री मोहन भागवत चतुराई से उस जातिवादी उत्पीड़न, अस्पर्शयता,छुआछूत, ऊँच-नीच और आबादी के बड़े भाग को राजतंत्र से दूर रखने के उस अपराध को छिपाने का प्रयास कर रहे हैं। यह भी इतिहास को बदलने का और तथ्यों को छुपाकर सच्चाई को मिटाने का प्रयास है।
मुझे आश्चर्य है कि डॉ. भागवत भाषा और बोली का फर्क नहीं समझ रहे हैं। भाषा का मूल आधार लिपि होता है और बोली आमजन के बोलचाल से पनपती है। दुनिया में जो बोलियां समाप्त हुई हैं वह आबादी की कमी के कारण नहीं हुई हैं बल्कि उन बोलियों के बोलने वालों के लिए भौतिक संसाधनों का अभाव, कुपोषण, महामारियों की रोकथाम, सत्ता तंत्र या व्यवस्था नहीं कर सका, उसके कारण हुई है। भाषाओं के विवाद में तो देश टूटे हैं। क्या श्री भागवत बांग्लादेश के निर्माण को भूल गए। जिसका मूल आधार ही भाषा था और जो जिन्ना जोकि पाकिस्तान के संस्थापक कहे जाते हैं, ने अपने पहली पूर्वी बंगाल यात्रा में (पूर्वी पाकिस्तान) उन्होंने पूरी बंगाल की भाषा उर्दू को बताकर पाकिस्तान के बंटवारे की नींव डाल दी थी। क्या अभी भी पाकिस्तान, पख्तून बलूची भाषा या बोलियों की समस्या से नहीं जूझ रहा है?
आबादी की वृद्धि एक गंभीर समस्या है क्योंकि देश के प्राकृतिक स्रोत जन, जंगल, जमीन, खनिज इन सभी की एक सीमा है। पिछले लगभग 35-40 वर्षों में शहरीकरण के नाम पर देश की करोड़ों एकड़ कृषि भूमि पर कंक्रीट के जंगल खड़े हो गए हैं जो तापमान बढ़ा रहे हैं, जल अभाव पैदा कर रहे हैं, प्रदूषण व अपराध बढ़ा रहे हैं और सभ्यता व संस्कृति को नष्ट करने के कारण बन रहे हैं। आबादी वृद्धि के लिए खाद्यान्न, जल, जंगल, जमीन आदि की जो जरूरतें बढ़ी हैं, उन्हें आबादी वृद्धि से कैसे पूरा कर पाएंगे? जो भारत देश खाद्य तेल में आत्मनिर्भर था वह भारत देश आज हजारों करोड़ का तेल विदेश से आयात कर रहा है। आबादी की वृद्धि एक अराजकता सी पैदा कर रही है जो निरंतर वृद्धि पर है। आज बांग्लादेश, पाकिस्तान एवं ऐसे कई दक्षिण अफ्रीकी इस्लामिक देश स्वतः ही अपने अंर्तकलह से, क्या अपनी आबादी को नहीं मार रहे हैं? क्या कलिंग युद्ध में हिंदू ने हिंदू को, ईरान इराक में मुस्लिम ने मुस्लिम को, जर्मन-ब्रिटेन में ईसाई ने ईसाई को लाखों की संख्या में नहीं मारा? क्या जब तैमूर लंग ने दिल्ली पर कब्जा किया था तब दिल्ली में 3 लाख पठानों को नहीं मारा था? राम रावण के युद्ध में जो लोग मारे गऐ थे, महाभारत के कौरव और पांडव युद्ध में क्या हिंदू ने हिंदू को नहीं मारा था? देश के राजा महाराजाओं के अपनी सत्ता के युद्ध में हिंदू ने हिंदू को नहीं मारा था? भागवत जी और संघ से मैं कुछ बेहतर और सार्थक बहस की उम्मीद करता था। मुझे लगता था कि शायद 1947 से 2024 के बीच इन 77 सालों में उनके मानसिक व वैचारिक सोच में कुछ विकास हुआ होगा। परंतु शायद यह मेरी गलती थी। जिस सनातन की चर्चा आजकल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, भारतीय जनता पार्टी और सरकारी तंत्र जोर शोर से चला रहे हैं, उस सनातन काल में देश की आबादी कुल कितनी थी? परंतु सभ्यता थी, संस्कार थे, चिंतन मनन था और इंसान, प्रकृति, पशु, पक्षी सभी में एक व्यापक समझ व एकता थी। सनातन का मतलब जातिवाद की पुनर्स्थापना नहीं है। सनातन का मतलब पुरोहित पंडावाद, मुफ्तखोरी, राजतंत्र की, ऊँच-नीच की पुनर्स्थापना नहीं है। बल्कि सनातन का अगर कोई अर्थ है तो समूची विश्व की मानवता और पत्थर से लेकर पशु तक, पौधों से लेकर वनों तक, नदियों से लेकर जमीन तक सबको एक ही मानने की भावना है। परंतु भागवत जी तो देश को भयभीत कर असनातन को सनातन पर थोप रहे हैं। शायद यही उनके तथाकथित हिंदू राष्ट्र की अंतर भावना है। दुनिया में कोई देश एक धर्म के रास्ते पर नहीं चलाया जा सकता है और जहां एक ही धर्म के राष्ट्र बने हैं वे संघों में बिखरकर गृह युद्ध में फंसे हैं। शिया, सुन्नी, कैथोलिक-प्रोस्टेटटेंट, अरबी-तुर्की, हिंदू, सिख, तमिल, सिंहली और ऐसे कई उदाहरण में दे सकता हूँ।
मैं डॉ. मोहन भागवत जी से अनुरोध करूंगा कि अगर वे कर सकते हैं तो अपनी शक्ति और प्रभाव का प्रयोग आबादी के नियंत्रण के लिये करें तथा
1. समूचे देश में आबादी नियंत्रण की एक व समान नीति बनवाएं और लागू करें।
2. सरकारी नौकरी, सरकारी सुविधा, बैंकों की सुविधा इन सभी प्रकार की राष्ट्रीय सरकारी सुविधाओं का लाभ केवल उन्हें दिलायें जो आबादी को नियंत्रित करें, अन्यथा उनको वंचित करें। हम किसी को डराकर या जेल भेज कर बाध्य नहीं करना चाहते हैं। शासन नीति सबको समान और मान्य हो। मुझे लगता है कि इस प्रयोग से भागवत जी देश का ज्यादा हित कर सकते हैं। बजाए हिंदू और मुस्लिम की जनगणना कर तनाव पैदा कर मानसिक विकृति के प्रयास से। अगर उनकी ही बात माने की हिंदू आबादी 7.8 प्रतिशत कम हो गई है और मुस्लिम आबादी 5 प्रतिशत बढ़कर 14.9 हो गई है तब भी 85 परसेंट तो हिंदू उनके अनुसार आज भी हैं और अगर हिंदू या मुसलमान आबादी नियंत्रण के दो परसेंट वृद्धि के सिद्धांत को मानेगा तो स्वाभाविक है कि 85 परसेंट हिंदुओं की आबादी कुछ ही वर्षों में ज्यादा बढ़ेगी बजाए 15 प्रतिशत के। भागवत जी के यह देश के लिए कोई खतरा नहीं है। परंतु जब वे 85 प्रतिशत हिंदू या गैर मुस्लिम आबादी को भयभीत करते हैं तो लगता है कि वह छिपे हुए पुराने 10 प्रतिशत उच्च जाति सत्ता की पुनर्स्थापना के लिए आदिवासियों, दलितों, पिछड़ों और गरीब हिंदुओं का इस्तेमाल कर फिर से राजकुल, राजतिलक, राजपुरोहित तंत्र की स्थापना करना चाहते हैं।
अच्छा हो कि डॉ.भागवत हाल के महाराष्ट्र चुनाव, झारखंड चुनाव और उत्तरप्रदेश के उपचुनाव के परिणामों का विश्लेषण करायें, ताकि वह ठीक तथ्य पर पहुंच सकें।
सम्प्रति- लेखक श्री रघु ठाकुर जाने माने समाजवादी चिन्तक और स्वं राम मनोहर लोहिया के अनुयायी हैं।श्री ठाकुर लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के भी संस्थापक अध्यक्ष हैं।