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मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में पहली बार सत्ताधारी दल भाजपा और सत्ता के लिए पूरी ताकत से दावेदारी कर रही कांग्रेस के बीच चुनावी मुकाबला इस कदर कांटेदार रहा कि अंतिम समय तक टी-20 क्रिकेट की तरह रोमांच बना रहा। कभी कांग्रेस का वनवास समाप्त होता नजर आया तो कभी भाजपा फिर से चौथी बार सरकार बनाने के नजदीक आती दिखी। फैसला क्रिकेट मैच की तरह आखिरी ओवर में ही हो सका। पूरे समय दोनों ही दलों के नेताओं की सांसें ऊपर-नीचे होती रहीं, लेकिन मध्यप्रदेश के मतदाताओं ने तीसरी शक्ति का सपना देखने वाले दलों को फिर एक बार निराश किया और कांग्रेस एवं भाजपा के ध्रुवीकरण को मजबूती प्रदान की। इस चुनाव में न तो पूरी तरह ब्रांड शिवराज को मतदाताओं ने खारिज किया और न ही कांग्रेस के वायदों पर अविश्वारस किया। दोनों ही दल अपने-अपने दावों से काफी पीछे नजर आये। जिस तरह से छत्तीसगढ़ में वहां के मतदाताओं ने मुख्यमंत्री रमनसिंह के नेतृत्व में भाजपा को पूरी तरह से खारिज कर दिया और कांग्रेस की धमाकेदार जीत हुई, इस तरह मध्यप्रदेश में मतदाताओं ने किसी को भी हाथों-हाथ नहीं लिया। पसीने से लथपथ सत्ताशीर्ष पर जो पहुंचा वह पांच साल तक चैन से नहीं बैठ पाएगा, क्योंकि जनादेश ऐसा ही है जिसमें न तो सत्ताधारी दल मजबूत है और न ही विपक्ष इतना कमजोर रहा जितना पिछले डेढ़ दशक से था।
कांग्रेस और भाजपा दोनों के ही कुछ बड़े नेता चुनाव हार गए। कांग्रेस को सबसे बड़ा झटका इस रुप में लगा कि नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह जो पूरे विंध्य व बुंदेलखंड में कांग्रेस के लिए इर्वरा भूमि बनाने में इतनी तन्मयता से जुट गए कि इन्हें पता ही नहीं चला कि कब इनके पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई। यह एक संयोग ही है कि 1993 में जब कांग्रेस की जीत की राह आसान करने के लिए चुरहट के स्थान पर भोजपुर से अजय सिंह चुनावी मैदान में उतरे तो वे चुनाव हार गए लेकिन प्रदेश में दिग्विजय सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बन गई। इसी प्रकार कांग्रेस का डेढ़ दशक के बाद का सत्ता का वनवास खत्म हो। इस धुन में अजय सिंह इतने व्यस्त हो गए कि वे स्वयं सत्ता की दौड़ से बाहर हो गए। लगभग चार दशक बाद कांग्रेस ने विदिशा के भाजपा के गढ़ को इस बार भेद दिया और शशांक भार्गव ने मुकेश टंडन को पराजित करते हुए इस सीट पर कब्जा कर लिया।
मध्यप्रदेश में कांग्रेस को फिर से मजबूती दिलाने के लिए यदि दो चेहरे कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया आगे थे तो परिदृश्य में पटकथा लिखने के असली सूत्रधार पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह माने जाएंगे जिन्होंने कांग्रेस को एक सूत्र में पिरोने के लिए अपने व्यक्तिगत प्रभाव, सम्बंधों और कांग्रेस की रग-रग से वाकिफ होने का फायदा इठाया। कांग्रेस की जो राजनीतिक ताकत आज प्रदेश में बढ़ी इसकी आधारभूमि या नींव दिग्विजय सिंह ने ही रखी। दिग्विजय सिंह ने स्वयं के लिए जो भूमिका चुनी इसमें वे खरे उतरे। चाहे जो भी कहा जाता रहा हो लेकिन एक बात साफ है कि दिग्विजय सिंह को मध्यप्रदेश की राजनीति में कांग्रेस दरकिनार नहीं कर सकती। वहीं कमलनाथ ने प्रदेशाध्यक्ष बनने के बाद अपना अधिकांश समय संगठन को मजबूत बनाने में दिया और मतदान केंद्र तक ऐसी पुख्ता व्यवस्था बनाने की कोशिश की जो सीमित संसाधनों में भाजपा और आरएसएस के समर्पित कार्यकर्ताओं का मुकाबला कर सके। कांग्रेस के पक्ष में मैदान में माहौल बनाने में कमलनाथ के साथ ज्योतिरादित्य सिंधिया का उल्लेखनीय योगदान रहा।
जहां तक मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का सवाल है इन्हें तीन प्रकार की विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ा लेकिन इसके बाद भी इनकी अगुवाई में भाजपा की जमीन वैसी नहीं खिसक पाई जैसी कि छत्तीसगढ़ में खिसक गई। पन्द्रह साल की एंटी इंकम्बेंसी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा लिए गए कुछ फैसलों और अनेक मंत्रियों व विधायकों के प्रति स्थानीय स्तर पर जो विरोध था इसके बावजूद भी कुशल नेतृत्व क्षमता का शिवराज ने परिचय दिया। भाजपा नेतृत्व कांग्रेस को गंभीरता से नहीं ले रहा था और वह अंतिम समय तक यही सोचता रहा कि कांग्रेस के बड़े नेता कभी एक नहीं हो सकते। यही कारण रहा कि कांग्रेस ने अंदर ही अंदर भाजपा के गढ़ों में सेंध लगा दी। दूसरी ओर भाजपा इस बात का भी सही आंकलन नहीं कर पाई कि स्थानीय स्तर पर इस कदर एन्टी इन्कम्बेंसी है और कार्यकर्ताओं व नेताओं के बीच जो फासला बढ़ता जा रहा था इसकी अनदेखी करती रही। यदि कार्यकर्ताओं से संपर्क सेतु बना रहता या इनकी पीठ पर कोई हाथ फेरकर इनके आक्रोश का बीच-बीच में शमन करता रहता तो आज जो नतीजे आये हैं इससे बेहतर परिणाम आ सकते थे। सत्ता के नजदीक पहुंच कर भी सत्ता से दूरी विपक्ष की भी इतनी रही जितनी कि होठों व काफी के प्याले के बीच होती है।
सम्प्रति-लेखक श्री अरूण पटेल अमृत संदेश रायपुर के कार्यकारी सम्पादक एवं भोपाल के दैनिक सुबह सबेरे के प्रबन्ध सम्पादक है।