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2030 तक आ सकता है इंसानों जैसा AI, गूगल डीपमाइंड ने मानवता के खात्मे की दी चेतावनी

भविष्य में इंसानों जैसी सोचने-समझने वाली आर्टिफिशियल जनरल इंटेलिजेंस (AGI) विकसित हो सकती है और यह इंसानियत के लिए स्थायी खतरा भी बन सकती है।

यह बात गूगल की एआई (AI) रिसर्च यूनिट डीपमाइंड (DeepMind) के नए रिसर्च पेपर में कही गई है। रिसर्च में दावा किया गया है कि एजीआई साल 2030 तक विकसित हो सकती है, और यदि इसे सही तरीके से नियंत्रित नहीं किया गया तो यह मानव जाति को हमेशा के लिए समाप्त कर सकती है।

क्या है रिपोर्ट में?
डीपमाइंड की रिपोर्ट में बताया गया है कि एजीआई का समाज पर भारी असर हो सकता है और इसके कारण गंभीर नुकसान या अस्तित्व का संकट खड़ा हो सकता है। हालांकि, यह रिपोर्ट यह नहीं बताती कि एजीआई कैसे मानवता का अंत करेगी, बल्कि यह एहतियाती उपायों और सुरक्षा रणनीतियों पर ध्यान देती है।

चार बड़े खतरे जिन्हें एजीआई से जोड़ा गया है
दुरुपयोग- गलत लोगों द्वारा AI का गलत उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल।
विचारों में अंतर- एआई के उद्देश्यों का इंसानों से मेल न खाना।
गलतियां- सिस्टम की तकनीकी या नैतिक चूक।
संरचनात्मक खतरे- समाज के ढांचे पर प्रभाव।

डीपमाइंड का मानना है कि एजीआई के खतरे को नियंत्रित करने के लिए अभी से तैयारी जरूरी है, ताकि यह मानवता के लिए फायदेमंद साबित हो।

डीपमाइंड सीईओ की चेतावनी
डीपमाइंड के सीईओ डेमिस हासाबिस ने फरवरी में कहा था कि एजीआई अगले 5 से 10 सालों में अस्तित्व में आ सकती है। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि एजीआई के विकास और नियंत्रण के लिए एक संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठन की जरूरत है।

सीईओ के सुझाव
सर्न(CERN) जैसी वैश्विक रिसर्च संस्था, जो एजीआई के विकास को सुरक्षित बनाए।
एक यूएन(UN) जैसी सुपरवाइजरी बॉडी, जो एजीआई के प्रयोग और नियंत्रण पर नीति बनाए।

क्या होता है एजीआई?
आम एआई सिर्फ एक खास टास्क को करने में माहिर होती है (जैसे चैटबॉट, सर्च इंजन आदि)।
एजीआई यानी आर्टिफिशियल जनरल इंटेलिजेंस वह तकनीक होगी जो मनुष्यों की तरह सोच, समझ, सीख और निर्णय ले सकेगी।
यह किसी एक काम तक सीमित नहीं होगी, बल्कि हर क्षेत्र में इंसानों जैसी क्षमता रखेगी।