
कांग्रेस ने अपने घोषणा-पत्र में पहली बार अलग से किसान-बजट बनाने की पहल करके यह राजनीतिक संकल्प व्यक्त किया है कि वो लोकसभा चुनाव के नेरेटिव को गरीबी-गुरबत से जुड़े बुनियादी मुद्दों पर ही केन्द्रित करना चाहती है। रोजगार और किसान पर केन्द्रित कांग्रेस के ‘मेनीफेस्टो’ की थीम ‘वेल्थ एंड वेलफेयर’ है। घोषणा-पत्र जारी होते ही राजनीतिक गलियारों में यह सवाल तैरने लगा है कि क्या मोदी-सरकार देश की बुनियादी समस्याओं से जुड़े इस नेरेटिव को चुनावी-विमर्श के केन्द्र में आने देगी? शायद नहीं, क्योंकि देश के विकास और जनता की बदहाली के मुद्दे और उनसे जुड़े सवालों के तर्कसंगत जवाब मोदी-सरकार की कमजोर और दुखती रग हैं।
अभी मोदी-सरकार अथवा भाजपा का घोषणा-पत्र अथवा विजन-डाक्युमेंट जारी नहीं हुआ है, लेकिन उसके समूचे चुनाव-अभियान की थीम ‘हिन्दुत्व बरास्ते पाकिस्तान’ पर केन्द्रित है। मोदी-सरकार की रणनीति विकास को हाशिए पर रख कर आतंकवाद, अलगाववाद, देश की सुरक्षा, आंतरिक सुरक्षा जैसे मुद्दों को चुनाव के केन्द्र में रख कर मतदाताओं का भावनात्मक भयादोहन करना है। शायद इसी वजह से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की चुनावी-सभाओं में गरीबी, रोजगार और किसान याने ‘सबका साथ, सबका विकास’ के बजाए आतंकवाद, अलगाववाद, साम्प्रदायिकता, हिन्दुत्व, जैसे ज्वलनशील मुद्दों की गरम हवाएं बह रही हैं। जाहिर है कि भाजपा के चुनावी घोषणा पत्र की थीम चाहे जो हो, लेकिन उसके चुनाव-अभियान की भाव-भूमि में आतंकवाद, राष्ट्रवाद और हिन्दुत्व से जुड़े मुद्दे सुलगते रहेंगे। इसकी बानगी प्रधानमंत्री मोदी के भाषणों में नजर भी आने लगी है।
कांग्रेस घोषणा-पत्र के मुद्दे हिन्दुत्व, आतंकवाद, सर्जिकल स्ट्राइक, एयर-स्ट्राइक जैसे अमूर्त मुद्दों को चुनौती देते रहे हैं। गरीबों को फोकस में रखकर रोजगार के ठोस अवसर पैदा करने वाला यह घोषणा-पत्र क्रियान्वयन के धरातल पर ठोस महसूस हो रहा है। घोषणा-पत्र पेश करते हुए राहुल गांधी का यह कटाक्ष देश के राजनीतिक-मर्म को भेदता प्रतीत होता है कि मोदी के पांच सालों के झूठे वादों से जनता आजिज आ चुकी है।
राहुल के अनुसार घोषणा-पत्र में पूरा हो सकने वाले मुद्दों को ही शामिल किया गया है। चुनाव में उनका यह नारा असरकारी सिध्द हो सकता है कि ‘गरीबी पर वार, बहत्तर हजार’ । राहुल ने यह खुलासा किया कि मोदी-सरकार की अमीर-पोषक अदूरदर्शी नीतियों के कारण पांच साल में 4 करोड़ 70 लाख लोगों को रोजगार से हाथ धोना पड़ा है। घोषणा-पत्र में शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार से जुड़े मुद्दे सामाजिक न्याय, समता, समरसता, सद्भाव की भाव-भूमि पर ताकत देने वाले हैं। शिक्षा पर जीडीपी का 6 प्रतिशत बजट समाजवाद की देहरी पर दस्तक देता नजर आ रहा है।
गरीबी और गुरबत पर केन्द्रित कांग्रेस के घोषणा-पत्र ने भाजपा की इस रणनीति पर आघात किया है कि चुनाव के नेरेटिव को सिर्फ राष्ट्रवाद, आतंकवाद, सुरक्षा, सर्जिकल-स्ट्राइक, एयर-स्ट्राइक जैसे अमूर्त भावनात्मक मुद्दों तक ही सीमित रखा जाए। इसीलिए घोषणा-पत्र जारी होने के घंटे-दो घंटे के भीतर ही कांग्रेस के मुद्दों को नकारने के लिए वित्तमंत्री अरुण जेटली जैसे सीनियर मिनिस्टर को प्रेस से मुखातिब होना पड़ा। बकौल जेटली रोजगार, किसान, मनरेगा, न्याय-योजना जैसे मुद्दे अव्यावहारिक और हवा-हवाई हैं। इनका पूरा होना संभव नहीं है।
भाजपा चिंतित है कि ये घोषणाएं कहीं लोकसभा चुनाव के राष्ट्रवादी-नेरेटिव को ही नहीं बदल दें। इसीलिए जेटली ने सबसे पहले धारा 370, आफ्सपा जैसे उन मुद्दों पर हमलावर मुद्रा अख्तियार की, जो कश्मीर और देश की सुरक्षा से जुड़े हैं। बकौल जेटली कांग्रेस का नेतृत्व माओवादी और जेहादियों के हाथों में चला गया है। घोषणा-पत्र देश के लिए खतरनाक है। कांग्रेस देशद्रोह की धारा 124 ए हटाने की घोषणा कर रही है, इसलिए एक भी वोट पाने की हकदार नहीं है। जबकि मोदी सरकार से सवाल पूछना देशद्रोह माना जाता हो, इस धारा को हटाने का विचार भाजपा को कैसे कबूल होगा? कांग्रेस के मुद्दों की भाजपाई व्याख्या करके जेटली चाह रहे थे कि वो चुनाव को हिन्दुत्व, सेना और राष्ट्रवाद के एजेण्डे से विचलित नहीं होने दें। दिलचस्प है कि कांग्रेसी घोषणापत्र की भाजपाई व्याख्या भ्रमात्मक ज्यादा प्रतीत हो रही है। आफ्सपा के बारे में कांग्रेस ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के मुताबिक मानवाधिकार, सुरक्षा की जरूरतों को देखते हुए सेनाधिकारियों के साथ कानून की समीक्षा की जाएगी। धारा 370 की संवैधानिक स्थिति को बरकरार रखा जाएगा। कश्मीर समस्या के निदान के लिए संवाद कायम करने के प्रयास किए जाएंगे।
सम्प्रति- लेखक श्री उमेश त्रिवेदी भोपाल एनं इन्दौर से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के प्रधान संपादक है। यह आलेख सुबह सवेरे के 03 अप्रैल के अंक में प्रकाशित हुआ है।वरिष्ठ पत्रकार श्री त्रिवेदी दैनिक नई दुनिया के समूह सम्पादक भी रह चुके है।
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