विंध्य क्षेत्र जिसे रेवांचल भी कहा जाता है समाजवादियों, वामपंथियों और कांग्रेस की विचारधारा से ओतप्रोत रहा है, लेकिन गुटों-धड़ों में बंटे समाजवादियों, वामपंथियों और कांग्रेसियों को अपने धड़े में लाकर भारतीय जनता पार्टी ने इस क्षेत्र में अपनी मजबूत पकड़ बना ली है। हाल ही के विधानसभा चुनाव में तो एक प्रकार से विंध्य क्षेत्र भगवाई रंग में पूरी तरह रंग चुका है और कहीं-कहीं से ही कांग्रेस चुनाव जीत पाई है। इस अंचल में भाजपा से चुने गए अधिकांश जनप्रतिनिधि गैर-संघी और गैर-भाजपाई पृष्ठभ्ाूमि के रहे हैं और कभी न कभी किसी न किसी दौर में उनका सम्बंध कांग्रेस, वामपंथियों और समाजवादियों से रहा है। इनकी नर्सरी से ही कुछ पौधे अपने अंगने में रोप कर भाजपा ने यहां अपनी मजबूत पकड़ बनाई है।
सतना लोकसभा क्षेत्र वैसे तो पिछले कुछ चुनावों से भाजपा के खाते में रहा है लेकिन 2014 की मोदी लहर में 10 हजार से भी कम मतों से यह सीट भाजपा सांसद गणेश सिंह ने जीती थी। इस क्षेत्र में जीत-हार पर निर्णायक असर बहुजन समाज पार्टी डालती रही है। एक चुनाव तो ऐसा हुआ था जिसमें मध्यप्रदेश के दो पूर्व मुख्यमंत्री तिवारी कांग्रेस के अर्जुन सिंह और भाजपा के वीरेंद्र कुमार सखलेचा को बसपा के सुखलाल कुशवाहा ने पराजित कर दिया था। पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा के गणेश सिंह ने कांग्रेस उम्मीदवार अजय सिंह को 8 हजार 688 मतों के अन्तर से पराजित कर दिया था और वह भी इस सूरत में जबकि कांग्रेस के एक विधायक नारायण त्रिपाठी ने मतदान के कुछ दिन पूर्व ही कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया था। इस चुनाव में गणेश सिंह को 41.08 प्रतिशत यानी 3 लाख 75 हजार 288 मत मिले वहीं कांग्रेस के अजय सिंह को 40.13 प्रतिशत यानी 3 लाख 66 हजार 600 मत मिले। अर्जुन सिंह के पुत्र कांग्रेस विधायक अजय सिंह बहुत कम मतों के अन्तर से यह चुनाव हार गए। चूंकि इस क्षेत्र में अर्जुन सिंह की मजबूत पकड़ रही थी इस कारण अजय सिंह ने कड़ी टक्कर दी। 2019 के लोकसभा चुनाव में अजय सिंह सीधी से चुनाव लड़ रहे हैं। गणेश सिंह को यह सीट बचाए रखने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाना होगा, उनकी जीत इस बात पर अधिक निर्भर करेगी कि बहुजन समाज पार्टी का प्रत्याशी कितने वोट काटता है एवं कांग्रेस के असंतुष्ट उन्हें कितनी मदद पहुंचाते हैं। कांग्रेस को इस सीट पर असंतुष्टों द्वारा पग-पग पर बिछाए गए कांटों को छांटने में जितनी अधिक सफलता मिलेगी उतना ही वह जीत के नजदीक पहुंचेगी। पिछले लोकसभा चुनाव में इस क्षेत्र की तीन विधानसभा सीटों पर कांग्रेस और पांच सीटों पर भाजपा को बढ़त मिली थी। जबकि हाल के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के दो विधायक ही चुनाव जीत पाए हैं शेष सभी सीटों पर भाजपा काबिज है।
रीवा लोकसभा क्षेत्र में भाजपा की पकड़ 2014 में भी काफी मजबूत थी भाजपा उम्मीदवार जर्नादन मिश्रा ने कांग्रेसी उम्मीदवार सुंदरलाल तिवारी को 1 लाख 68 हजार 726 मतों के अन्तर से पराजित किया था। मिश्रा को 46.18 प्रतिशत यानी 3 लाख 83 हजार 320 मत मिले थे जबकि तिवारी को 25.85 प्रतिशत यानी 2 लाख 14 हजार 594 मत मिले थे। आठों विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा को कांग्रेस पर अच्छी-खासी बढ़त मिली थी। हाल के विधानसभा चुनाव में भी इस लोकसभा क्षेत्र में आने वाले विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा की ही मजबूत पकड़ बनी हुई है और सभी सीटों पर भाजपा प्रत्याशियों ने जीत दर्ज कराई है। कांग्रेस की राह इस क्षेत्र में आसान नहीं है। उत्तरप्रदेश की सीमा से लगे इस क्षेत्र में जात-पांत और ऊंच-नीच का भाव कदम-कदम पर नजर आता है। विंध्य की राजनीति का रीवा स्पंदन केन्द्र है। पूर्व में रीवा समाजवादियों और कांग्रेसियों का गढ़ रहा और बाद में बसपा ने भी कुछ पैर फैलाए, लेकिन अब भाजपा ने अपनी जड़ें यहां मजबूत कर ली हैं, इसके लिए उसने दूसरे दलों की पृष्ठभ्ाूमि वाले नेताओं को अंगीकार करने में कोई परहेज नहीं किया। किसी जमाने में समाजवादियों की इस क्षेत्र में इतनी मजबूत पकड़ थी कि 1977 की जनता लहर में यमुनाप्रसाद शास्त्री ने कांग्रेस उम्मीदवार रीवा महाराज मार्तण्डसिंह को भी पराजित कर दिया था। धीरे-धीरे बसपा का असर भी कमजोर होता जा रहा है और देखने वाली बात यही होगी कि क्या कांग्रेस यहां बड़े अन्तर को पाट पाएगी एवं बहुजन समाज पार्टी क्या कुछ गुल खिला पाएगी।
सम्प्रति-लेखक श्री अरूण पटेल अमृत संदेश रायपुर के कार्यकारी सम्पादक एवं भोपाल के दैनिक सुबह सबेरे के प्रबन्ध सम्पादक है।