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प्रकृति प्रेम आदिवासी समाज में कूट-कूटकर है भरा – उईके

बिलासपुर 20 अक्टूबर।छत्तीसगढ़ की राज्यपाल सुश्री अनुसुईया उईके ने कहा कि आदिवासी समाज प्रकृति की पूजा करते हैं। पेड़-पौधे उनके देवता हैं। उनकी हर गतिविधि में प्रकृति की छाप दिखती है। उनके कारण ही जंगल बचा है।

सुश्री उईके ने आज गोंड़वाना समाज के नवाखाई कार्यक्रम एवं सामाजिक सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि प्रकृति के साथ संतुलन बनाने के लिये आदिवासी विभिन्न पर्व मनाते हैं। यह किसी समाज में नहीं होता।प्रकृति प्रेम आदिवासी समाज में कूट-कूटकर भरा है।उन्होने कहा कि आदिवासी समाज की प्रकृति सरलता, स्वाभिमान और भोलापन है। इसी प्रकृति के कारण उन्हें शोषण का शिकार बनाया जाता है। वे अपने अधिकारों से वंचित है। आदिवासियों के दर्द और तकलीफ को देखकर ही उन्होंने नौकरी छोड़ी और राजनीति में आकर उनकी सेवा के लिये तत्पर है, जो विश्वास और उम्मीद उनसे की गई हैं वे उन्हें पूरा करने की कोशिश करेंगी।

उन्होने कहा कि संवैधानिक पद पर होने के नाते जनता की परेशानी को दूर करने उन्होंने शासन को दिशा-निर्देश दिया है कि ऐसी नीति बनाई जाये, जिससे हर व्यक्ति सुख-शांति से रह सके। आदिवासियों के हित के लिये कानून का पालन हो।संविधान में उन्हें जो अधिकार मिले हैं उसके अनुसार ही उन्हें न्याय मिले।सरकार ने भी इस दिशा में गंभीरता से कदम बढ़ाये हैं।

उन्होंने कहा कि आदिवासियों को जो अधिकार मिले हैं उसे प्राप्त करने के लिये उन्हें आगे आना होगा। आपस में एकजुट होकर ही वे अपनी समस्या का समाधान कर सकते हैं। सुश्री उईके ने समाज के लोगों से कहा कि केन्द्र और राज्य सरकार की योजनाओं के बारे में लोगों को जागरूक करने का प्रयास किया जाये। रोजगार के लिये युवा भटक रहे हैं। उन्हें योजनाओं का लाभ दिलाने का प्रयास करना चाहिये।

कार्यक्रम की अध्यक्षता राज्यसभा सांसद रामविचार नेताम ने की। उन्होंने कहा कि यह पहली बार हो रहा है कि आदिवासी समाज के नवाखाई कार्यक्रम में राज्यपाल सम्मिलित हो रही हैं। समाज के अंतिम छोर के व्यक्ति बस्तर से सरगुजा तक सुदूर अंचल में रहने वाले गरीब आदिवासियों की पीड़ा को राज्यपाल ने महसूस किया है और उनके लिये चिंता करते हुए उन्हें न्याय दिलाने के लिये कदम उठा रही है।