
गांधी जी बैठक में नही थे। पर कार्यवाही में छाए हुए थे। देश की किस्मत का फैसला लिया जा चुका था। अब फिक्र इस फैसले पर गांधी जी की प्रतिक्रिया की थी। वायसराय माउंटबेटन चिंतित थे। गांधी जी खिलाफ़ गए, तो हालात काबू के बाहर चले जायेंगे। 3 जून 1947 । देश के विभाजन को भारतीय नेताओं की औपचारिक मंजूरी का दिन। बैठक में माउंटबेटन के साथ सरदार पटेल, पंडित नेहरु, आचार्य कृपलानी, मोहम्मद अली जिन्ना, लियाकत अली खान और सरदार बलदेव सिंह मौजूद थे। विभाजन, उसकी प्रक्रिया और अंग्रेजों की वापसी की सार्वजनिक घोषणा इस बैठक के जरिये होनी थी। बैठक में फिर से बहस-मुबाहसा शुरु न हो जाये, इसका माउंटबेटन ने पहले ही पुख़्ता इंतजाम किया था। एक दिन पहले वह इन नेताओं से बैठक कर चुके थे। अगले दिन की जाने वाली घोषणा की मंजूरी वह ले चुके थे। जिन्ना फिर भी टाल-मटोल कर रहे थे। उन्होंने आखिरी मंजूरी के लिए फैसले को मुस्लिम लीग की नेशनल काउंसिल के सामने रखने का पेंच फंसाया।जिन्ना को ‘कटा-बंटा दीमक लगा’ पाकिस्तान कुबूल करने में हिचक थी। माउंटबेटन ने तकरीबन धमकाने वाले अंदाज़ में उन्हें सिर्फ रात भर का वक्त दिया। ताकीद दी। बैठक में मेरी घोषणा पर आप सिर्फ स्वीकृत में सिर हिलाएंगे।
3 जून की बैठक की कार्यवाही के आगे कुछ अंश हैं ….
माउंटबेटन ; यदि अतीत भुलाया जा सके तो बेहतर भविष्य के निर्माण की शुरुआत मुमकिन है। इसके लिए नीचे के नेताओं को आरोप-प्रत्यारोप से रोका जाए, क्योंकि उससे हिंसा हो सकती है।
लियाकत अली खान ; निचले नेताओं को रोका जा सकता है लेकिन जो सबसे बड़े हैं, जैसे गांधी जी, वह बात तो अहिंसा की करते हैं लेकिन उनकी प्रार्थना सभाओं के कई भाषण हिंसा को उकसाने वाले हैं।
माउंटबेटन : कल उनसे भेंट के दौरान मैंने उन्हें उनके जिन सुझावों को माना जा सकता था और जिन्हें नही तो क्यों, इसकी जानकारी दी। वह व्यक्ति जो भारत की एकता के लिए जिया, काम किया और कामना की, उसके मनोभावों को मैं समझ सकता हूँ। उनकी प्रार्थना सभाओं के भाषणों की मैंने बात की। उनका मौन दिवस था। उन्होंने लिखकर एक मैत्रीपूर्ण नोट दिया। उम्मीद की जाती है, वह परिस्थितियों को समझते हुए सहयोग करेंगे। वह हमेशा साफ करते रहे हैं कि वह कांग्रेस के चवन्नी के भी सदस्य नही हैं।
कृपलानी ; मैं लियाकत अली की शिकायत पर चकित हूँ। गांधी जी ने जो भी और जब भी कहा अहिंसा के पक्ष में कहा। कांग्रेस के सभी सदस्यों ने हमेशा सयुंक्त भारत के विचार को माना। गांधी जी की गतिविधियां हमेशा अहिंसक रहीं।
माउंटबेटन ; मैं सहमत हूँ लेकिन यह तब, जब उनके भाषणों का सावधानी से विश्लेषण किया जाए। लेकिन निश्चय ही खासतौर से कम समझ वालों की भावनाओं को तब उकसावा मिलता है, जब वह कहते हैं, विभाजन गलत है। हमे इसे रोकना चाहिए। हमे हार नही माननी है।
सरदार पटेल ; उन्हें भरोसा है कि एक बार जब निर्णय ले लिया जाएगा तो गांधी जी उसे स्वीकार करेंगे।
माउंटबेटन ; वह आश्वस्त हैं। निर्णय जो भी हो,महात्मा गांधी अहिंसा पर बल देंगे।
लियाकत अली खान ; हाल में गांधी ने जिन शब्दों का प्रयोग किया, उसका अर्थ निकलता है कि वे (जनता) वायसराय और नेताओं के निर्णय की ओर ध्यान न दें। इसके स्थान पर वे जो उचित समझें, उसे करें। ऐसे बयानों का मतलब यही निकलता है कि जनता अगर चाहती है कि विभाजन न हो तो वह अपने मुताबिक आगे बढ़े।
सरदार पटेल ; मैं नही समझता कि ऐसा कोई निष्कर्ष निकलता है।
जिन्ना ; अगर गांधी इस लाइन पर आगे बढ़े तो यह संदेश जाएगा कि जनता वह निर्णय न माने जो इस बैठक में लिया जाए। वह यह नही मानते कि गांधी के इरादे खराब हैं।लेकिन इन दिनों उनकी भाषा ऐसी भावनाओं को बढ़ा रही है कि मुस्लिम लीग ताकत के जोर पर पाकिस्तान हासिल करने जा रही है, जबकि खुद उन्होंने (जिन्ना ने) उनकी (गांधी की) सार्वजनिक रुप में आलोचना से परहेज किया है।
माउंटबेटन ; इस विषय पर पर्याप्त विचार कर लिया गया। वह गांधी का विशेष स्थान स्वीकार करते हैं। लेकिन निश्चिंत हैं कि कांग्रेस के नेता इस विषय को देखेंगे और अपने सर्वोत्तम प्रयास करेंगे।
उन दिनोंअपनी प्रार्थना सभाओं में गांधी जी प्रायः दोहराते थे,” भले सारे देश में आग भड़क उठे, हम एक इंच भूमि पर भी पाकिस्तान नही बनने देंगे।” कांग्रेस कार्यसमिति द्वारा विभाजन की मंजूरी देने के बाद गांधी जी गहरी वेदना में थे। उन्हें लगातार महसूस हो रहा था कि कांग्रेस के नेता उनसे दूर होते जा रहे हैं। ऐसी ही एक सुबह एक कार्यकर्ता ने उनसे कहा,”फैसले की इस घड़ी में आपका कहीं जिक्र ही नही है।” उनका जबाब था,”मेरे चित्र को हार पहनाने के लिए हर कोई उत्सुक रहता है। लेकिन सलाह मानने को कोई तैयार नही है।” दिल्ली की हरिजन बस्ती में निवास कर रहे गांधी को बगल की चटाई पर लेटी मनु ने एक रात अपने में ही उन्हें बुदबुदाते सुना, ” आज मेरे साथ कोई नही है। पटेल और नेहरु तक समझते हैं कि जो मैं कह रहा हूँ, वह गलत है और अगर बंटवारे की बात पर समझौता हो जाए तो शांति रहेगी। ये लोग सोचते हैं कि उम्र के साथ मेरी समझ-बूझ भी कम होती जा रही है। हाँ।शायद सब लोग ठीक ही कहते हों और में ही अंधेरे में भटक रहा हूँ।
बेशक गांधी खुद को अकेला महसूस कर रहे हों। पर माउंटबेटन को आम आदमी पर उनकी पकड़ का अहसास था। माउंटबेटन को लगा,”जिन्ना ने भारत की एकता की आशाओं पर पानी फेर दिया।कहीं गांधी विभाजन की योजना पर पानी न फेर दें।” कांग्रेस का कोई पदाधिकारी न होने के कारण गांधी ने माउंटबेटन की अन्य नेताओं के साथ बैठक में हिस्सा लेने से इनकार कर दिया था। माउंटबेटन ने उन्हें अलग से मिलने को राजी किया। 2 जून 1947। यह सोमवार का दिन था। गांधी जी के मौन का दिन। माउन्टबेटन ने उन्हें विभाजन और सत्ता हस्तांतरण की पूरी योजना की जानकारी दी। गांधी जी ने जेब से पुराने लिफाफे निकाले और उनके सादे हिस्से पर लिखना शुरु किया,”मुझे खेद है, मैं बोल नही सकता। सोमवार का व्रत दो हालत में भंग करने की मैंने गुंजाइश रखी थी। किसी उच्च पदाधिकारी से किसी समस्या के बारे में बात करनी हो या किसी बीमार की देखभाल करनी हो। लेकिन मैं जानता हूँ कि आप नही चाहते कि मैं अपना मौन भंग करुं। मुझे दो-एक बातों के बारे में कुछ कहना है लेकिन आज नही। हम दोनों की फिर भेंट हुई तो कहूंगा।”
3 जून 1947 की बैठक के फैसलों की जानकारी माउन्टबेटन के रेडियो पर भाषण के जरिये सार्वजनिक हुई। उस दिन रेडियो पर पंडित नेहरु, मोहम्मद अली जिन्ना और सरदार बलदेव सिंह भी बोले। नेहरु ने भाषण की शुरुआत,” मुझे कोई प्रसन्नता नही है,” से की। उन लाखों लोगों के लिए जो बेघर हो गए। हजारों जो जानें गईं और तमाम महिलाओं की मौत से भी बदतर यातनाओं के प्रति अपनी गहरी संवेदना व्यक्त करते नेहरु उदास थे। वादा किया उनके कष्टों में मदद का। भरोसा दिलाया ऐसी त्रासदी फिर न दोहराए जाने का।उनका बुझा लहजा उनके चेहरे और दिल का हाल बयान कर रहा था,’ मुझे कतई प्रसन्नता नही है कि इन प्रस्तावों की सराहना करूँ। लेकिन मुझे संदेह नही है कि यही सही रास्ता है। पीढ़ियों से हम आजाद सयुंक्त भारत के लिए संघर्ष कर रहे थे। उसके कुछ हिस्से यदि अलग होंगे तो यह निर्णय स्वीकार करना हम किसी के लिए भी दुःखद होगा। लेकिन फिर भी मैं संतुष्ट हूँ कि व्यापक दृष्टि से यह निर्णय सही है।”
उधर जिन्ना उत्साह से लबरेज़ थे। उन्होंने खुशी जाहिर की कि रेडियो के शक्तिशाली माध्यम से वह सीधे अपने लोगों से पहली बार मुख़ातिब हैं। हालांकि इस मौके पर भी उस उर्दू भाषा में नही बोल पाए, जो आगे पाकिस्तान की राष्ट्रभाषा बनी। उनका संबोधन अंग्रेजी में था। जीत की खुशी के बीच वह कहना नही भूले कि निर्णय से हम पूरी तरह संतुष्ट नही हैं। अब हमे इस पर विचार करना है कि अंग्रेज सरकार के इस प्रस्ताव को हम समझौते या फिर मामले के निपटारे के रुप में स्वीकार करें। उन्होंने इस मुकाम तक पहुंचने के लिए मुसलमानों के हर तबके की मदद, तकलीफों और कुर्बानियों को याद किया।
गांधी जी की निराश प्रतिक्रिया थी,” ईश्वर उनकी रक्षा करे। उन्हें सद्बुद्धि दे।
लेकिन माउन्टबेटन का ध्यान अभी भी गांधी जी की ओर था। उन्हें ख़बर मिली कि गांधी कांग्रेस नेताओं से खुद को अलग करके अपनी प्रार्थना सभा में विभाजन की योजना की निन्दा करने वाले हैं। फौरन ही माउन्टबेटन के दूत गांधी जी के पास पहुंचे। 4 जून को माउन्टबेटन और गांधी जी फिर आमने- सामने थे। माउन्टबेटन ने अपनी पूरी क्षमता के साथ गांधी जी की भावनाओं को थपकियाँ दी। कहा,”इसे माउन्टबेटन योजना गलत कहा जा रहा है। इसे तो गांधी योजना कहा जाना चाहिए।” गांधी जी की सवालिया निगाहों की ओर देखते माउन्टबेटन ने कहा,” आप ही ने तो कहा था कि फैसला हिंदुस्तानियों पर छोड़ दीजिए। हर प्रांत की जनता वोट देकर तय करेगी कि किसके साथ रहना है ? यह आपकी कही बात तो है।” पर मैं विभाजन कब चाहता था, गांधी जी ने पूछा।
माउन्टबेटन ने कहा,” अगर कोई ऐसा चमत्कार हो जाये कि विधानसभाएं एकता के पक्ष में वोट दे दें तो विभाजन रुक जाएगा।” और फिर माउन्टबेटन के अगले वाक्य ने गांधी जी के लिए कुछ कहने को नही बाकी रखा,” अगर इसके लिए वे सहमत नही हैं तो आप यह तो नही चाहेंगें कि हथियार के जोर पर हम उनके निर्णय का विरोध करें।”
गांधी जी की प्रार्थना सभा का वक्त हो गया था। वह उठे। हरिजन बस्ती के लिए। जहां लोग उनकी ललकार सुनने की आस लगाए थे। कितनी ही बार उन्होंने कहा था,”देश के दो टुकड़े होने के पहले उनके दो टुकड़े होंगे।” ””””उस शाम स्तब्ध करने वाली खामोशी के बीच लोगों ने गांधी जी को सुना,” वायसराय को दोष देने से कोई फायदा नही। अपने आपको देखिए। मन को टटोलिये। तब पता लगेगा। जो हुआ है, उसका कारण क्या है ?”
माउन्टबेटन के मुताबिक हिन्दुस्तान आने के बाद से उन्होंने कांग्रेस के नेताओं को लगातार अपने नजदीक लाने की कोशिश की। ताकि अगर टकराव की नौबत आये तो उनकी मदद से गांधी को बेअसर कर दूं। वर्षों बाद माउन्टबेटन ने कहा,” मुझे बहुत अजीब लगा कि एक तरह वे सभी गांधी के खिलाफ़ और मेरे साथ थे। एक तरह से वे मुझे बढ़ावा दे रहे थे कि मैं उनकी ओर से गांधी का सामना करूँ।”
सम्प्रति- लेखक श्री राजखन्ना वरिष्ठ पत्रकार है।श्री खन्ना के आलेख देश के प्रतिष्ठित समाचार पत्रों,पत्रिकाओं में निरन्तर छपते रहते है।
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