 रायपुर 28 फरवरी।छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ आरटीआई कार्यकर्ता एवं कांग्रेस नेता संजीव अग्रवाल ने राज्य सरकार से गांधीवादी नेता स्व.केयूर भूषण को सम्मानित करने तथा उनकी जीवनी को स्कूली पाठ्यक्रमों में शामिल करने की मांग की है।
रायपुर 28 फरवरी।छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ आरटीआई कार्यकर्ता एवं कांग्रेस नेता संजीव अग्रवाल ने राज्य सरकार से गांधीवादी नेता स्व.केयूर भूषण को सम्मानित करने तथा उनकी जीवनी को स्कूली पाठ्यक्रमों में शामिल करने की मांग की है।
श्री अग्रवाल ने आज यहां जारी बयान कहा कि स्व.केयूर भूषण एक ऐसे नेता थे जिन्होंने 1942के असहयोग आंदोलन में हिस्सा लेकर महात्मा गांधी के दिल में जगह बनाई थी। महात्मा गांधी उन्हें व्यक्तिगत रूप से जानते पहचानते और पसंद करते थे। अंग्रेज़ी हुक़ूमत के दौरान वर्ष 1942 में वे रायपुर के सेंट्रल जेल में सबसे कम उम्र के राजनीतिक बंदी थे। उन्होंने अपना पूरा जीवन गाँधीवादी तरीके से बिताया। जीवन के आखिरी वर्षों भी वे साइकिल चलाना ही पसंद करते थे। देश की आज़ादी की लड़ाई में महज़ 14 वर्ष की उम्र में शामिल वाले केयूर भूषण ने अपनी जिंदगी के नौ वर्ष जेल में बिताए।भारत छोड़ो आंदोलन समेत कई बार वे जेल भी गए।
श्री अग्रवाल के अनुसार देश आज़ाद होने के बाद स्व.केयूर भूषण ने गोवा की आज़ादी के लिए भी संघर्ष किया। इसके बाद 1960 से वे पृथक छत्तीसगढ़ राज्य के लिए संघर्ष कर रहे थे। वो दो बार वर्ष 1980 से 1984 और फिर 1984 से 1989 तक रायपुर संसदीय सीट से सांसद भी रहे। केयूर को छत्तीसगढ़ से ऐसा गहरा लगाव था कि कालांतर में वे खुद इस प्रदेश की संस्कृति और साहित्य की पहचान बन गए। केयूर भूषण समाजिक और राजनीतिक जीवन में सक्रिय रहने के साथ ही बड़े साहित्यकार भी रहे।उन्होंने छत्तीसगढ़ में कई कविता संग्रह और उपन्यास की रचना की इनमें ‘कुल के मरजाद’ और ‘कहां बिलागे मोर धान के कटोरा’ बेहद चर्चित उपन्यास रहे।
उन्होने बताया कि स्व.केयूर भूषण को तत्कालीन काँग्रेस सरकार में छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री स्वर्गीय अजीत जोगी ने पहले पंडित रविशंकर शुक्ल संप्रादायिक सद्भाव सम्मान से नवाज़ा था लेकिन उसके बाद भाजपा सरकार ने उनकी अनदेखी की। 2018 में छत्तीसगढ़ में काँग्रेस की सरकार आने के बाद शायद अब तक सरकार को ऐसे महान व्यक्तित्व की याद नहीं आई।उन्होने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से छत्तीसगढ़ के इस महान गाँधीवादी नेता को यथासंभव सम्मान देने और छत्तीसगढ़ के स्कूली पाठ्यक्रमों में उनके जीवनकाल को सम्मिलित करने की मांग की है।
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