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स्मृति ईरानी का घटता रुतवा,अमेठी में हुई चुनौती कमजोर – राज खन्ना

 मोदी कैबिनेट में स्मृति ईरानी का रुतवा घटने का असर अमेठी में भी नजर आ रहा है।इलाके की पांच विधानसभा सीटों के भाजपा के दावेदारों को अब स्मृति के अलावा और भी मजबूत सहारों की तलाश है।खुद स्मृति भी अमेठी के मामलों में पहले जैसी मुखर नही हैं।

केन्द्र में मोदी सरकार के आने के बाद से कांग्रेस लगातार गांधी परिवार के निर्वाचन क्षेत्रों अमेठी, रायबरेली के साथ सौतेले व्यवहार की शिकायत करती रही है।स्मृति जो 2014 का लोकसभा चुनाव अमेठी से हारने के बाद भी,वहां काफी सक्रिय हैं,जबाब में पार्टी और सरकार की ओर से अब तक मोर्चा सम्भालती थी।जगदीशपुर के फूड पार्क की योजना के रद्द होने के बाद कांग्रेस के भारी विरोध के बीच उन्होंने इस उपक्रम को अमली जामा न पहन सकने के लिए यूपीए सरकार की शिथिलता का ब्यौरा पेश कर उसे घेर दिया था।बन्द पड़े सम्राट साइकिल कारखाने की जमीन  राजीव गांधी ट्रस्ट को सौंपने का मामला उठाकर पलटवार में गांधी परिवार को बैकफुट पर लाने की  कोशिश की थी। लेकिन पिछले दिनों अमेठी के सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान बन्द किये जाने के बाद कांग्रेसी नेताओं के हमले पर  उन्होंने ख़ामोशी अख्तियार की।बेशक अब यह मंत्रालय जावेडकर के पास है और उन्होंने जबाब भी दिया लेकिन मोदी सरकार बनने के बाद से अमेठी से जुड़े हर राजनीतिक हमले के मौके पर मोर्चा सम्भालने वाली स्मृति की चुप्पी ने लोगों को चौंकाया। वह अमेठी की बदहाली का मुद्दा जोर शोर से उठा कर सवाल करती रही हैं कि गांधी परिवार ने  अपने चालीस साल के जुड़ाव में आखिर अमेठी को क्या दिया है?क्या मानव संसाधन मंत्रालय जैसे महत्वपूर्ण विभाग के मुकाबले महत्वहीन समझे जाने वाले कपड़ा मंत्रालय में भेजे जाने के बाद  वे अमेठी की ओर से भी उदासीन हुई हैं? असलियत में इस फेरबदल ने उनकी सरकार और पार्टी में घटती हैसियत का सन्देश दिया।इसी के साथ 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में उन्हें पार्टी की ओर से चेहरे की तौर पर पेश करने की चर्चाएं भी थम गईं।

लोकसभा चुनाव में स्मृति ने राहुल गांधी को कड़ी टक्कर दी थी।हार के बाद भी मोदी सरकार में महत्वपूर्ण मंत्रालय की जिम्मेदारी के बीच उन्होंने अमेठी में जबरदस्त सक्रियता के जरिये राहुल गांधी के लिए अपने ही गढ़ में परेशानियां काफी बढ़ा रखी हैं।इससे अमेठी में बेहद कमजोर समझी जाने वाली भाजपा को भी खासी ताकत मिली।विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी के टिकट के दावेदारों की कतार लंबी हुई।उन्होंने स्मृति के अमेठी के दौरों की कामयाबी के लिए अब तक पूरी ताकत झोंकी।वे मानकर चल रहे थे कि संसदीय क्षेत्र की पांचो सीटों के टिकटों के बंटवारे में स्मृति की ही चलेगी और इसके लिए उनका भरोसा जीतना जरूरी है।लेकिन बदली स्थिति में टिकट के दावेदार स्मृति की ओर जाने से ठिठके हैं।कई को लगने लगा है कि स्मृति की पैरवी शायद लाभ की जगह नुकसान ही कर दे!अमेठी में सक्रियता की बदौलत स्मृति को यूपी में काफी चर्चा और शोहरत मिली।प्रदेश और यहाँ की राजनीति से उनका वास्ता 2014 के लोकसभा चुनाव में अमेठी की असफल लड़ाई तक सीमित है।लेकिन पराजय बाद अमेठी में उनकी दौड़ धूप ने उन्हें प्रदेश में पार्टी के सम्भावित चेहरे लायक राजनीतिक हैसियत दे दी।ये माना जा रहा था कि नेतृत्व  की योजना के अधीन वे अमेठी के जरिये 2017 के विधानसभा चुनाव में प्रदेश में पार्टी को ताकत देने के अभियान में हैं।लम्बे अरसे से गांधी परिवार के जरिये सुर्ख़ियों की आदी हो चुकी अमेठी  भी 2019 के विकल्प को लेकर गंभीर दिखने लगी थी।इस बीच स्मृति अमेठी के लिए ऐसी योजनाओं पर काम करती रही हैं, जिसमे ज्यादा लोगों को लाभ और उनसे सीधे जुड़ाव हो सके।दिल्ली पहुँचने वाले अमेठी के लोगों की  स्मृति के यहाँ सुनवाई और जनहित से जुड़े मामलों में अन्य विभागों में खुद उनकी पैरवी से भी क्षेत्र में उनकी पकड़ मजबूत हुई है। लेकिन पहले पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी से छुट्टी।फिर कैबिनेट में एक महत्वहीन मंत्रालय में भेजने के बाद सभी कैबिनेट कमेटियों से बाहर किये जाने और इसी के साथ यूपी में उन्हें चेहरे के रूप में पेश करने की चर्चाएं थमने के बीच अब अमेठी में उनकी दिलचस्पी पर सवाल उठने लगे हैं।ये सवाल खुद उनकी दिलचस्पी को लेकर तो हो ही रहे हैं।साथ में इसको   लेकर भी हैं कि अपनी पार्टी से उपेक्षित होने के बाद अमेठी के लोग प्रतिद्वन्दी पार्टी के उत्तराधिकारी राहुल गांधी के मुकाबले उन्हें कितनी तरजीह  देना चाहेंगे?राजनीतिक घटनाक्रम दिलचस्प है।2017 के चुनाव की रणभेरी बजाने के लिए गांधी परिवार ने मोदी के निर्वाचन क्षेत्र वाराणसी को चुना।सोनिया गांधी ने वहां जोरदार रोड शो किया। उधर गांधी परिवार के निर्वाचन क्षेत्र अमेठी में सन्नाटा है।शायद इसलिए क्योंकि लोकसभा चुनाव के वक्त से ही  अमेठी में तगड़ी चुनौती दे रही स्मृति ईरानी फ़िलहाल अपनी ही पार्टी के नेतृत्व के अविश्वास से जूझ रही हैं!
सम्प्रति-लेखक श्री राज खन्ना वरिष्ठ पत्रकार है।उनके विभिन्न राष्ट्रीय,राजनीतिक एवं सामाजिक मुद्दों पर आलेख राष्ट्रीय समाचार पत्रों में निरन्तर प्रकाशित होते रहते है।