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पिछले ढ़ाई वर्षों में 29 नई तहसीलों और चार नए अनुविभागों का गठन – भूपेश

रायपुर, 08 अगस्त।छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आदिवासी अंचलों की अपेक्षाएं और विकास की अपनी सरकार की प्रतिबद्दता दोहराते हुए कहा कि इस दृष्टि से ही पिछले ढ़ाई वर्षों में 29 नई तहसीलों और चार  नए अनुविभागों का गठन किया गया है।

श्री बघेल ने आकाशवाणी के छत्तीसगढ़ स्थित केन्द्रों से आज प्रसारित लोकवाणी कार्यक्रम में कहा कि  बरसों पुरानी मांग को ध्यान में रखते हुए गौरेला – पेण्ड्रा – मरवाही को जिला ही नहीं बनाया गया बल्कि आदिवासी बहुल आबादी वाले इस क्षेत्र को उनका हक भी दिया गया। उनका मानना है कि नई प्रशासनिक इकाईयों के गठन से लोगों को अपनी भूमि, खेती-किसानी से संबंधित काम, बच्चों की पढ़ाई, नौकरी या रोजगार से संबंधित कामों के लिए आसानी होगी। सरकारी योजनाओं का बेहतर क्रियान्वयन होगा। इसे ही हमने प्रशासनिक संवेदनशीलता का मूलमंत्र बनाया है।

उन्होने कहा कि सत्ता में आने के बाद हमने सबसे पहले आदिवासियों का विश्वास जीतने की बात की। इसके लिए निरस्त वन अधिकार पट्टों के दावों की समीक्षा, जेल में बंद आदिवासियों के प्रकरणों की समीक्षा कर अपराध मुक्ति, बड़े उद्योग समूह के कब्जे से आदिवासियों की जमीन वापस लौटाने का निर्णय, तेंदूपत्ता संग्रहण दर 2500 रुपए से बढ़ाकर 4 हजार रुपए प्रति मानक बोरा करने का निर्णय लिया गया। इससे आदिवासी अंचलों में सरकार और व्यवस्था के प्रति विश्वास का नया दौर शुरू हुआ है। हमने 7 से बढ़ाकर 52 वनोपज को समर्थन मूल्य पर खरीदने की व्यवस्था की, पुरानी दरों को भी बदला जिसके कारण वनोपज संग्रह से ही 500 करोड़ रुपए से अधिक अतिरिक्त सालाना आमदनी का रास्ता बन गया।

उन्होने कहा कि प्रदेश में 16 हजार करोड़ रुपए की लागत से सड़कों का निर्माण किया जा रहा है, जिससे हमारे आदिवासी अंचलों को सैकड़ों ऐसी सड़कें मिलेंगी, जिनका इंतजार वे दशकों से कर रहे थे। नक्सलवाद प्रभावित क्षेत्रों में संपर्क बहाल करने के लिए हम 1 हजार 637 करोड़ रुपए की लागत से सड़कें बना रहे हैं। आदिवासी अंचलों में बिजली की सुविधा देने के लिए अति उच्च दाब के चार वृहद उपकेन्द्र का निर्माण पूरा कर लिया गया है। नारायणपुर, जगदलपुर, बीजापुर और सूरजपुर जिले के उदयपुर में ये उपकेन्द्र प्रारंभ हो जाने से बिजली आपूर्ति सुचारू हो गई है।

श्री बघेल ने ‘मुख्यमंत्री वृक्षारोपण प्रोत्साहन योजना’ का उल्लेख करते हुए कहा कि इस योजना को वे भविष्य में स्थानीय लोगों, आदिवासी और वन आश्रित परिवारों की आय के बहुत बड़े साधन के रूप में देखते हैं। खुद लगाए वृक्षों से इमारती लकड़ी की कटाई और फलों को बेचकर लोगों की आय बड़े पैमाने पर बढ़ेगी।  निजी लोगों को ही नहीं, बल्कि पंचायतों और वन प्रबंधन समितियों को भी पेड़ लगाने और काटने के अधिकार दिए गए हैं।

उन्होने बताया कि ‘मलेरिया मुक्त बस्तर’ अभियान शुरू होने से एक साल में बस्तर संभाग में मलेरिया के प्रकरण 45 प्रतिशत और सरगुजा संभाग में 60 प्रतिशत कम हो जाना सुखद है। यूएनडीपी और नीति आयोग ने मलेरियामुक्त बस्तर अभियान की तारीफ करते हुए बीजापुर जिले में मलेरिया में 71 प्रतिशत तथा दंतेवाड़ा में 54 प्रतिशत तक कमी करने की सफलता को बेस्ट प्रेक्टिस के रूप में सराहा है और अन्य आकांक्षी जिलों को भी इस अभियान को अपनाने की सलाह दी है।

श्री बघेल ने बताया कि शिक्षा के लिए हमने संकटग्रस्त क्षेत्रों पर ज्यादा फोकस किया। जिसके कारण सुकमा जिले के जगरगुंडा में 13 वर्षों से बंद स्कूल बीते साल खुल चुका है। कुन्ना में स्कूल भवन का पुनर्निर्माण तथा दंतेवाड़ा जिले के मासापारा-भांसी में भी 6 सालों से बंद स्कूल अब खुल गया है। कोरोना काल में पढ़ाई तुंहर पारा अभियान के तहत लाखों बच्चों को उनके गांव-घर-मोहल्लों में खुले स्थानों पर भी पढ़ाया गया। प्रारंभिक कक्षाओं में बच्चों को मातृभाषा में समझाना अधिक आसान होता है इसलिए हमने 20 स्थानीय बोली-भाषाओं में पुस्तकें छपवाईं, जिसका लाभ आदिवासी अंचलों में मिला। बीस साल बाद प्रदेश में 14 हजार 580 शिक्षक-शिक्षिकाओं की नियुक्ति आदेश दे दिए गए हैं। इससे आदिवासी अंचलों में भी शिक्षकों की कमी स्थायी रूप से दूर हो जाएगी।