
मध्यप्रदेश में भाजपा ने मिशन 2018 की सफलता के लिए जहां मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और केंद्रीय पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की जोड़ी बनाई है तो वहीं कांग्रेस ने भी इसके मुकाबले के लिए पूर्व केंद्रीय मंत्री द्वय कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया के चेहरे सामने कर दिए हैं। इन बदले हुए हालातों में अब भाजपा की राह उतनी आसान नहीं रही जितनी कांग्रेस के अनिर्णय की स्थिति में रहने से नजर आ रही थी। अब कांग्रेस भी जीत के जज्बे के साथ चुनावी समर में होगी, इसलिए जो कांग्रेस मैदान में नजर नहीं आ रही थी वह अब कम से कम मुकाबले में मुस्तैदी से खड़ी नजर आयेगी। कांग्रेस जो बिसात बिछाने जा रही है और जो परिवर्तन किए हैं उनमें अहम् सलाह दिग्विजय सिंह की मानी जा रही है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह 4 मई को भोपाल आ रहे हैं और उस दिन वे निचले स्तर से लेकर प्रदेश स्तर तक के नेताओं व कार्यकर्ताओं से सीधे संवाद कर चौथी बार राज्य में भाजपा की सरकार बनाने के लिए जीत का मंत्र देंगे। मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह कांग्रेसियों को एकजुट करने के लिए मई माह के मध्य से एकता यात्रा निकालने जा रहे हैं जो कि प्रदेश के सभी 230 विधानसभा क्षेत्रों में जायेगी और वहां वे कांग्रेस की मजबूती के लिए “संगत में पंगत’’ का आयोजन कर सबको एक साथ बिठाकर उनके साथ भोजन करेंगे। इस प्रकार कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि अमित शाह भाजपाई कार्यकर्ताओं को और दिग्विजय सिंह कांग्रेसियों को रिचार्ज कर चुनावी मोड में लायेंगे।
अमित शाह एक दिवसीय राजधानी प्रवास के दौरान मंडल स्तर से लेकर प्रदेश स्तर तक के लगभग पांच हजार कार्यकर्ताओं से सीधे रूबरू होंगे और उन्हें राज्य में चौथी बार भाजपा सरकार बनाने के लिए जी-जान से जुट जाने का मूल मंत्र देते हुए जीतने के गुर समझायेंगे। पहले प्रदेश कार्यसमिति की बैठक होगी और उसमें प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह के मनोनयन का अनुमोदन किया जाएगा। बतौर प्रदेश अध्यक्ष यह पहला अवसर होगा जब राकेश सिंह समूचे प्रदेश के कार्यकर्ताओं के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज करायेंगे। जहां तक राकेश सिंह का सवाल है भले ही भाजपा के लिए प्रदेश में कोई नया नाम न हो लेकिन वे सर्वमान्य नेता के रूप में जाने-पहचाने चेहरे नहीं हैं। उनके मनोनयन का पार्टी में अंदरूनी तौर पर विरोध भी हो रहा है और शायद यही कारण है कि भोपाल आकर एक प्रकार से समूची पार्टी को चुनावी मोड में लाने के लिए तथा राकेश सिंह को कार्यकर्ताओं के बीच नेता के रूप में स्थापित करने के लिए स्वयं अमित शाह आ रहे हैं। भाजपा तो वैसे भी राजधानी में अनेक बार मेगा-शो करती रही है लेकिन इस बार इसमें केवल उन लोगों को बुलाया गया है जिनके ऊपर अपने-अपने स्तर पर पार्टी को मजबूत करने की जिम्मेदारी है। अमित शाह जिन्हें जीत के सूत्रवाक्य समझायेंगे उनमें 756 मंडल अध्यक्ष, 56 जिला अध्यक्षों के साथ ही पूरी प्रदेश कार्यसमिति और विभिन्न मोर्चों के प्रदेश और जिला स्तर के अध्यक्ष और महामंत्री शामिल होंगे। इसके अलावा कार्यालय मंत्री, मीडिया प्रभारी, सांसद, विधायक, विधानसभा के हारे प्रत्याशी, निगम-मंडल के अध्यक्ष-उपाध्यक्ष, सहकारी संस्थाओं के पदाधिकारी एवं भाजपा समर्थित जिला एवं जनपद पंचायत अध्यक्ष, महापौर, नगरपालिका अध्यक्ष, मंडी अध्यक्ष, टीवी चैनलों की बहसों में भाग लेने वाले पैनलिस्ट आदि मौजूद होंगे।
अमित शाह के साथ राष्ट्रीय महामंत्री संगठन रामलाल भी होंगे। शाह के इस दौरे को लेकर प्रदेश संगठन में बेचैनी का भाव होना स्वाभाविक है क्योंकि न जाने कौन इस बार शाह के निशाने पर आ जाए। शाह ने पिछले साल तीन दिवसीय प्रवास के दौरान जो भी निर्देश दिए थे उन पर अमल के मामले में संगठन कुछ कदम भी आगे नहीं बढ़ पाया है। सह-महामंत्री संगठन सौदान सिंह की रिपोर्ट भी शाह के पास है, ऐसे में कौन-कौन निशाने पर आता है इसको लेकर चिंता की लकीरें उस समय तक बने रहने की संभावना है जब तक कि शाह का यह दौरा पूरा नहीं हो जाता। शाह के निशाने पर युवा मोर्चा भी रहेगा और उसके पंचायत अभियान की तैयारियों की व्यापक समीक्षा होगी। मोर्चे को 14 मई तक मध्यप्रदेश की 23 हजार पंचायतों में से प्रत्येक में 11-11 विशेष सदस्य बनाना था उसमें उसे कितनी सफलता मिली, इसकी पूछपरख शाह करेंगे। जब उनकी इस कसौटी पर ये तैयारियां खरी उतरेंगी तभी युवा मोर्चे के प्रदेश अध्यक्ष अभिलाष पांडे राहत की सांस ले पायेंगे। स्थिति यहां तक है कि अन्य बातों को तो छोड़ दें शाह ने जो मोटी-मोटी बातें कही थीं उन पर भी कोई तवज्जो नहीं दी गई। मसलन न तो बड़ी मोटर साइकल रैली हुई, न ही ग्राम पंचायतों में दीनदयाल उपवन बने। इस समय एक ओर तो शाह चुनावी शंखनाद करेंगे तो वहीं दूसरी ओर पार्टी के सामने कई चुनौतियां भी हैं उनसे पार पाने का क्या मंत्र शाह सुझाते हैं यह देखने की बात होगी। पार्टी और सरकार के सामने इस समय बड़ी चुनौती यही है कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का जो मतदाता नाराज चल रहा है, उसे फिर से भाजपा के पाले में लाने के लिए पार्टी क्या उपाय करती है। किसान आंदोलन के बाद से सरकार पर से किसानों का जो भरोसा डगमगाया है वह अभी तक लगभग वैसा ही है। ऐसे में उनमें फिर से पार्टी पर भरोसा करने लायक हालात पैदा करना शामिल है। कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया की जोड़ी अब पूरी ताकत इस बात पर लगायेगी कि जो भी वर्ग भाजपा से नाराज हैं उनमें नाराजी का भाव और अधिक बढ़ाया जाए। भाजपा में बूथ स्तर पर कार्यकर्ताओं में उत्साह का अभाव है। प्रादेशिक संगठन और कार्यकर्ताओं में आपसी संवाद व समन्वय की भी कमी है। लगभग डेढ़ दशक से पार्टी सत्ता में है और इस बीच आम कार्यकर्ता और पदासीन लोगों के बीच एक तरह से संवादहीनता की स्थिति है तथा उनके मन में यह बात गहरे तक समा गई है कि उनकी कोई पूछ-परख ही नहीं है। इस स्थिति से निपटने के लिए शाह क्या मंत्र देते हैं और उस पर पदासीन कितना अमल करते हैं यह देखने की बात होगी।
मध्यप्रदेश कांग्रेस के नये अध्यक्ष कमलनाथ एक मई को कार्यभार संभालने वाले हैं और कांग्रेस की कोशिश है कि उस दिन इस आयोजन को एक मेगा-शो का रूप दिया जाए। इस अवसर पर ज्योतिरादित्य सिंधिया सहित कांग्रेस के सभी बड़े नेता मौजूद रहें और यह भरोसा कार्यकर्ताओं को दिलाया जाए कि अब हम सब एक साथ एकजुट हैं और हमारा लक्ष्य डेढ़ दशक के सत्ता के वनवास को दूर करना है। इस दृष्टि से उस दिन मौजूद रहने वाले कांग्रेस नेताओं की बॉडी लैंग्वेज कैसी रहती है, इस पर यह निर्भर करेगा कि जो संदेश वे देना चाहते हैं उसमें वह किस सीमा तक सफल रहे। एक मई का एक अपना अलग ही महत्व है क्योंकि यह मजदूर दिवस भी है और कमलनाथ इस प्रकार से अपने को मेहनतकश लोगों के साथ खड़ा होने का संदेश भी देना चाहते हैं। कांग्रेस आजकल साफ्ट हिंदुत्व की नीति पर चल रही है इसलिए कमलनाथ अध्यक्ष का पदभार ग्रहण करने के बाद दूसरे दिन राजधानी के लालघाटी स्थित प्रसिद्ध हनुमान मंदिर जायेंगे और उसी दिन उज्जैन में बाबा महाकाल तथा दतिया की पीताम्बरा पीठ में भी पूजा-अर्चना करेंगे। दिग्विजय सिंह मई माह के मध्य से एकता यात्रा पर निकलेंगे, हालांकि वे पहले से ही धार्मिक व आध्यात्मिक शक्तियों से लेस होकर माँ नर्मदा का आशीर्वाद ले चुके हैं। दिग्विजय टीकमगढ़ जिले के ओरछा में राम राजा दरबार में हाजिरी लगाने के बाद अपनी उस एकता यात्रा पर निकलेंगे जिसका मकसद पिछले पन्द्रह सालों में घरों में बैठ गए या निष्क्रिय हुए कांग्रेसजनों को सक्रिय करना और विभिन्न गुटों व धड़ों में बंटे कांग्रेसजनों को एक साथ बिठाकर उनके मतभेद और मनभेद दूर करना है। इस यात्रा में उनके साथ उनके सहचर के रूप में वरिष्ठ कांग्रेस नेता द्वय महेश जोशी और रामेश्वर नीखरा भी रहेंगे। ये दोनों नेता उस हर कांग्रेसजन को जानते-पहचानते हैं जो वास्तव में कर्मठ कांग्रेसी रहा है, भले ही आज वह घर में बैठ गया हो। दिग्विजय का मकसद भी यही है कि कांग्रेसियों के बीच फेवीकॉल का मजबूत जोड़ लगाकर पार्टी को एकजुट किया जाए।
सम्प्रति-लेखक श्री अरूण पटेल अमृत संदेश रायपुर के कार्यकारी सम्पादक एवं भोपाल के दैनिक सुबह सबेरे के प्रबन्ध सम्पादक है।
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