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मोदी की ‘एडवायजरी’ में वोट पकाने वाले बयानों पर लगाम नहीं – उमेश त्रिवेदी

उमेश त्रिवेदी

पता नही, गूगल के सर्च-इंजिन से महामुनि नारद की तुलना करने वाले गुजरात के मुख्यमंत्री विजय कुमार रूपाणी से कुछ कहा जाएगा अथवा नहीं, लेकिन युवकों को पान की दुकान खोलने का सुझाव देने वाले त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिप्लव देव को प्रधानमंत्री और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष की डांट पड़ना तय है। बिप्लव देव के बयानों से तंग भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने डांट को अंजाम देने के लिए उन्‍हें 2 मई को दिल्ली तलब किया है। पता नहीं है कि दोनों नेता मिलकर बिप्लव देव की खबर लेंगे या डांट के कार्यक्रम को अलग-अलग अंजाम दिया जाएगा, लेकिन राजनीतिक गलियारों में इस बात को लेकर बड़ा कौतूहल है कि युवकों को रोजगार का गंभीर (?) सुझाव देने वाले मुख्यमंत्री पर नाराजी की यह गाज क्यों गिर रही है?

जिस देश में चाय बेचना या पकोड़े की दुकान खोलना करोड़ो बेरोजगारों के लिए उद्यमशीलता के राष्ट्रीय धर्म के रूप में गौरवान्वित होते हों, उस देश में पान का खोमचा लगाने पर राजनीतिक-ऐतराज क्यों जताया जा रहा है? पिछले सप्ताह ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने सांसदों और विधायकों को ताकीद किया था कि माइक या ‘मीडिया-पर्सन्स’ को देख कर वो बहकने से बचें। लेकिन मोदी की ‘मीडिया-एडवायजरी’ को खारिज करते हुए बिप्लव देव ने ‘आगे पाठ, पीछे सपाट’ की तर्ज पर टी-20 के अंदाज में बयानों की चक्रवर्ती-पारी खेल डाली। पता नहीं मोदी की ‘एडवायजरी’ को खारिज करने का साहस बिप्लव देव कैसे और क्यों कर बैठे?

बिप्लव देव ने साइंस की ऩई रिसर्च के अंदाज में खुलासा किया कि ‘महाभारत-काल में भी भारत में इंटरनेट था…’ या अपने सौन्दर्यबोध के कसैलेपन को अभिव्यक्त करते हुए उन्होंने ‘1997 में सांवली दिखने वाली डायना हेडेन के विश्व-सुन्दरी बनने पर कई सवाल खड़े कर दिए…’ या मुख्यमंत्री ने कॉमनसेंस की ऩई कसौटियां कायम करते हुए लोगों को परामर्श दिया कि ‘मेकेनिकल इंजीनियरों को सिविल परीक्षा में भागीदारी नहीं करना चाहिए। यह काम सिर्फ सिविल इंजीनियरों को ही करना चाहिए, क्योंकि उन्हें प्रशासन का अनुभव होता है।’

समझना मुश्किल है कि समाज, संस्कृति, विज्ञान और राजनीति में पगे मुख्यमंत्री के इन उद्गारों में कौन सा उद्गार प्रधानमंत्री को सबसे नागवार गुजरा है अथवा राजनीतिक रूप से नुकसानदेह लगा है? फिर भी यदि प्रधानमंत्री बिप्लव देव को नाराजी व्यक्त करने के लिए बुला रहे हैं, तो समझना होगा कि ‘पानी’ सिर पर से गुजर चुका है। प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रीय अध्य़क्ष अमित शाह की त्वरित-प्रतिक्रियाओं के कई आयाम हैं। अपने बयानों से ‘विप्लव’ पैदा करने वाले ‘बिप्लव देव’ भाजपा के पहले ऐसे नेता नहीं हैं। उनके पहले भी भाजपा के कई बयानवीरों ने अनर्गल बयान देकर समाज को फजीहत में डाला है।बिप्लव देव के बयान तो हास्य पैदा करते हैं, राजनीतिक मूर्खताओं को उजागर करते हैं, लेकिन भाजपा का नेतृत्व अपने उन नेताओं के बयानों पर खामोश क्यों रहा, जिनके कारण समाज में आग लगी, कत्लेआम हुआ और कानून-व्यवस्था के हालात खराब हुए। सवाल यह है कि बिप्लव देव की बयानबाजी पर एक्शन लेने वाले भाजपा के दोनों वरिष्ठ नेता उस वक्त खामोश क्यों थे, जबकि पश्चिमी दिल्ली के श्यामनगर में भाजपा के चुनाव अभियान के दौरान केन्द्रीय राज्यमंत्री साध्वी निरंजना ज्योति ने वोटरों से कहा था कि आपको तय करना है कि देश में रामजादों की सरकार बनेगी या हरामजादों की सरकार बनेगी…। उप्र के वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि फिल्म स्टार शाहरुख खान आतंकवादियों की भाषा बोलते हैं। उन्नाव जिले के सांसद साक्षी महाराज ने मदरसों का विरोध करते हुए हिंदू महिलाओं से अपील की थी कि वो चार-चार बच्चे पैदा करें, ताकि हिंदू धर्म को बचाया जा सके। हाल ही में बलिया के भाजपा विधायक सुरेन्द्र सिंह ने बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी को शूर्पणखा कह दिया था। उन्नाव जिले के रेप-काण्ड के बारे में इन्हीं विधायक ने यह कहकर सबको हतप्रभ कर दिया था कि तीन बच्चों की मां से क्या कोई रेप करेगा? पिछले चार वर्षो में कई संवेदनशील मुद्दों पर समाज में तनाव पनपा है, जबकि देश को यह अपेक्षा थी कि प्रधानमंत्री अपनी खामोशी तोड़ कर देश की फिजां में शांति कायम करें,लेकिन मोदी खामोश बने रहे।

    मोदी उसी वक्त अपने ब़यानवीरों से डांट-फटकार करते हैं, जबकि उनके बोलों से पार्टी की चुनावी-राजनीति को नुकसान होता है। योगी आदित्यनाथ अथवा साक्षी महाराज जैसे नेताओं के बयान उन्हें इसलिए कबूल हैं कि उनसे भाजपा के वोटों की फसल को खाद-पानी मिलता है। बिप्लव देव को डांट पड़ना इसलिए अपरिहार्य है कि वो भाजपा के वोटों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि भाजपा अब पूरी तरह इलेक्शन-मोड में है।

 

सम्प्रति- लेखक श्री उमेश त्रिवेदी भोपाल एनं इन्दौर से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के प्रधान संपादक है। यह आलेख सुबह सवेरे के 01 मई के अंक में प्रकाशित हुआ है।वरिष्ठ पत्रकार श्री त्रिवेदी दैनिक नई दुनिया के समूह सम्पादक भी रह चुके है।