
यह एक बड़ी ही प्रचलित कहावत है कि “सांड़ों की लड़ाई में बागड़ की झुरकन’’ जिसके अलग-अलग इलाकों में बोलियों के हिसाब से कुछ शब्द बदल जाते हैं। कहीं कहा जाता है सांड़ों की लड़ाई में बागड़ की झुरकन या बागड़ का मटियामेट हो जाना, या बागड़ का कुचल जाना या दब जाना। जिस ढंग से टीआरपी के चक्कर में उतावलापन मीडिया दिखा रहा है और इस प्रतिस्पर्धा में तथ्यों की गंभीरता या कहे गये शब्दों के हाव-भाव और बॉडी लैंग्वेज को ठीक से न समझ पाने की होड़ में बात का बतंगड़ बन जाता है वह अंतत: मीडिया की विश्वसनीयता के सामने सवालिया निशान बनकर उभरता है। ताजा किस्सा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के उस कथन को लेकर है जिसमें उन्होंने का “मैं तो जा रहा हूं मेरी कुर्सी पर कोई भी बैठ सकता है’’। चूंकि यह बात मुख्यमंत्री ने दिल्ली से आते ही कही थी इसलिए कुछ खबरिया चैनलों ने इसे एक गंभीर संकेत समझ लिया और इस कथन को लेकर कुछ चैनलों पर चर्चा भी श्ाुरू हो गयी। चर्चा में भाग लेने वालों ने अपने-अपने ढंग से जो उन्हें अपने हिसाब से अनुकूल लगा मुख्यमंत्री के उपरोक्त कथन पर प्रतिक्रियायें देना आरंभ कर दिया। दिन भर सोशल मीडिया पर अफवाहों का दौर चला, यहां तक कि लोगों ने भावी मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री के नामों का अंदाजा भी लगाना श्ाुरू कर दिया। यहां तक कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ और नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने भी मुख्यमंत्री के इस हल्के-फुल्के कथन में गंभीर संकेत समझ कर प्रतिक्रिया देने में देर नहीं की।
उपरोक्त स्थिति में कुछ ऐसा माहौल बना जैसे मानों मुख्यमंत्री ने इशारा कर दिया है और अब कुछ ही घंटों या दिनों में प्रदेश में नये मुख्यमंत्री की ताजपोशी होने वाली है। न तो इस बात की किसी ने चिंता की कि यह समय न तो मुख्यमंत्री के बदलाव का है और न ही पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जब पार्टी को मजबूती देने आ रहे हों उस दौरान वे ऐसा संकेत दे जाएं जिससे कि अस्थिरता की अटकलों को हवा मिल सके। मीडिया उतावलेपन में और एक-दूसरे को पीछे छोड़ने के फेर में जैसी खबरें परोसने की कोशिश कर रहा है उससे अंतत: मीडिया की साख के लिए संकट पैदा होगा। चिंता का विषय यही होना चाहिए कि पिछले कुछ सालों से मीडिया की साख जिस तरह धीरे-धीरे कम होती जा रही है और इन सबसे कहीं वह इतनी कम न हो जाये कि जब मीडिया सही बात कहने लगे या कहने की कोशिश करे तो लोगों को उस पर भी विश्वास न हो। यह नहीं भूलना चाहिए कि राजनीतिक दलों और राजनेताओं को वह स्थिति अपने सबसे अनुकूल होेगी जब मीडिया जनता की नजर में अविश्वसनीय हो जाये। ऐसा माहौल बनाने में जाने-अनजाने मीडिया का एक वर्ग उलझता जा रहा है और वह चक्रव्यूह में बुरी तरह न उलझे इसकी भी फिक्र उसे करना चाहिए।
प्रशासन अकादमी में आनंद विभाग के एक कार्यक्रम में मुख्यमंत्री के लिए आरक्षित एक कुर्सी जिस पर माननीय मुख्यमंत्रीजी लिखा हुआ था वह खाली थी और उस खाली कुर्सी की ओर ही इशारा करते हुए मजाकिया अंदाज में शिवराज ने जो कहा और जिस ढंग से वह मीडिया में आया उससे एकदम से राजनीतिक सरगर्मियां बढ़ गयीं। मुख्यमंत्री ने कहा कि पहले मैंने सोचा था कि मैं कुछ बैठकर सुनूंगा लेकिन मुझे झाबुआ और अलीराजपुर के कार्यक्रमों जाना है इसलिए बीच में उठकर जाने से कार्यक्रम में व्यवधान होगा, यह सोचकर मैं जल्दी जा रहा हूं और यह कुर्सी जिस पर लिखा है माननीय मुख्यमंत्रीजी उस पर कोई भी बैठ सकता है। चूंकि मुख्यमंत्री सुबह ही दिल्ली से लौटे थे और सीधे ही आनंद विभाग के कार्यक्रम में पहुंच गये थे, इसलिए कुछ चैनलों ने इस अंदाज में समाचार दिया जैसे मानों मुख्यमंत्री ने स्वयं कुर्सी खाली होने का संकेत दे दिया, जिसके कारण अचानक सरगर्मी बढ़ गयी। कांग्रेस नेताओं के ट्वीट आने लगे और भाजपा नेताओं को इस पर सफाई देना पड़ी। सोशल मीडिया के कई ग्रुपों में नेतृत्व परिवर्तन की अफवाह भी उड़ने लगी, यहां तक चल पड़ा कि भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री कैलाश विजयवर्गीय को मुख्यमंत्री और जल संसाधन व जनसंपर्क मंत्री नरोत्तम मिश्रा को उपमुख्यमंत्री बनाने पर विचार चल रहा है और उन्हें दिल्ली तलब कर लिया गया है।
कमलनाथ और अजय सिंह ने अपने ढंग से वार करने की कोशिश की तो कैलाश विजयवर्गीय ने पलटवार किया। विजयवर्गीय ने कहा कि मध्यप्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन को लेकर चल रही खबरें पूर्णतया असत्य और अफवाह मात्र हैं। आमागी चुनाव शिवराज के ही नेतृत्व में होंगे। वहीं कमलनाथ ने कहा कि शिवराज सिंह को भी अब हकीकत समझ आने लगी है इसलिए वे अब ऐसा बोलने लगे हैं, चुनाव में वक्त है लेकिन शिवराज अभी से हताश होने लगे हैं। नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने कुछ सधे हुए अंदाज में कहा कि क्या मुख्यमंत्री को हटाया जा रहा है या वे यह सच स्वीकार कर चुके हैं कि “अबकी बार कांग्रेस सरकार।’’ पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव ने भी कहा कि यह सच्चाई स्वीकार करने में मुख्यमंत्रीजी को इतना समय क्यों लगा। भाजपा नेता रजनीश अग्रवाल की प्रतिक्रिया सधी हुई और उन सबको आईना दिखाने वाली है जिन्होंने हल्के-फुल्के ढंग से कही बात को गंभीर मान लिया। अग्रवाल ने कहा कि कांग्रेस की यही समस्या है कि वह हल्की-फुल्की बातों को गंभीरता से लेती है और गंभीर बातों को हल्के-फुल्के में लेती है। इस स्थिति का पूरा आनंद लेने के बाद शिवराज ने दो ट्वीट किए और कांग्रेस नेताओं के हमले का उत्तर देने में देर नहीं की। उन्होंने कहा कि कार्यक्रम में मेरे लिए आरक्षित रखी गयी कुर्सी को लेकर थोड़ा सा मजाक क्या कर लिया कुछ मित्र अत्यन्त आनंदित हो गये, चलो मेरा आनंद व्याख्यान में जाना सफल हो गया। इतना ही नहीं बल्कि उन्होंने कांग्रेस नेताओं पर तंज कसने का मौका नहीं छोड़ा और कहा कि कुछ नेता प्रदेश में सिर्फ चुनाव के समय ही दिखते हैं बाकी समय अपने तुगलकी महलों में बिताते हैं, उनको लगता है कि कॉमनमैन को इसका क्या पता चलेगा। एक फिल्म में मैंने सुना था कि “नेवर अंडर एस्टीमेट द पॉवर ऑफ कॉमनमैन’’ जनता को पता है कि कौन उनके साथ हमेशा रहा है और रहेगा। बिना नाम लिए ही उन्होंने कमलनाथ को निशाने पर ले लिया क्योंकि यह सब जानते हैं कि उनका निवास नईदिल्ली में तुगलक रोड पर ही है।
ऐसा ही कुछ किस्सा प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के मामले में हुआ, सोशल मीडिया और इक्का-दुक्का खबरिया चैनलों पर यह खबर आई कि प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के रूप में डॉ. नरोत्तम मिश्रा का नाम अमित शाह ने फायनल कर दिया है और शाम तक उसकी अधिकृत घोषणा कर दी जायेगी। जब घोषणा होते नहीं दिखी तब यह बात चल निकली कि शिवराज सिंह अचानक नागपुर गये हैं और संंघ के नेताओं से मिलकर इस पर रोक लगवायेंगे। न तो किसी ने यह सोचने की जहमत उठाई कि आज कोई भी भाजपा का मुख्यमंत्री अपनी बात मनवाने के लिए अमित शाह के निर्णय के खिलाफ संघ का वीटो लगवाने की सोच ही नहीं सकता है और न ही ऐसा साहस कर सकता है। यदि किसी मुख्यमंत्री को लगता है कि उसके अनुकूल वाले व्यक्ति को अध्यक्ष बनना चाहिए तो वह अपनी बात अपने अध्यक्ष के सामने ही रखेगा न कि इसके लिए नागपुर की दौड़ लगायेगा।
इन दिनों राजनीतिक अखाड़े में बिना मान-मर्यादा, बिना नीति सिद्धान्त के दबंग पहलवान लड़ रहे हैं और इसमें ही देश का मीडिया अपना समय, ऊर्जा, स्पेस और संसाधन बर्बाद कर रहा है। यह पत्रकारिता का हिस्सा नहीं है। राजनीति में इन दिनों अनर्गल, अवांछनीय, अनावश्यक बातों को जिस तरह बेवजह तूल दिया जा रहा है उसका असली उद्देश्य बुनियादी मुद्दों और लोगों के दैनंदिनी जीवन से जुड़े सवालों से ध्यान हटाने की चेष्टा और जवाबदेही से बचने का दुष्चक्र है। यह भी एक प्रसिद्ध कहावत है कि “कौवा कान ले गयो तो कान टटोलने की जगह उसके पीछे दौड़ गयो।’’ आजकल जो कुछ मीडिया में चल रहा है वह इन हालातों पर सटीक बैठता है। यह याद रखना चाहिये कि यदि कान टटोलने की जगह ऊपर की ओर देखकर कौवे के पीछे दौड़ गये तो फिर मुंह के बल गिर जाने का खतरा भी बना रहेगा। पत्रकारिता व मीडिया को अविश्वसनीय बनाने का जो खेल इन दिनों चल रहा है उससे कैसे बचें इस पर गंभीरता से चिंतन की आवश्यकता है। अन्यथा एक दिन ऐसा आयेगा जब मीडिया सच बोलने की कोशिश या साहस करेगा या बोलना चाहेगा तब लोग उस पर भरोसा नहीं करेंगे। ऐसी स्थिति न आने पाये इसकी जिम्मेदारी सभी मीडिया से जुड़े लोगों पर है खासकर उन लोगों पर जो टीआरपी के फेर में उतावलापन दिखाते हैं। मीडिया की विश्वसनीयता जनमानस में बने रहना मजबूत लोकतंत्र के लिए नितांत जरूरी है खासकर उस माहौल में जबकि सभी संवैधानिक संस्थाओं की विश्वसनीता पर यदा कदा सवाल उठने लगे हों।
सम्प्रति-लेखक श्री अरूण पटेल अमृत संदेश रायपुर के कार्यकारी सम्पादक एवं भोपाल के दैनिक सुबह सबेरे के प्रबन्ध सम्पादक है।
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