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उप राज्यपाल को नही,चुनी हुई सरकार को ही फैसले लेने का हक- संविधान पीठ

नई दिल्ली 04 जुलाई।उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ ने दिल्ली में अधिकारों को लेकर चल रही जंग पर विराम लगाते हुए कहा कि चुनी हुई सरकार लोकतंत्र में अहम है,और मंत्री-परिषद को ही फैसले लेने का अधिकार है।उप राज्यपाल के पास कोई स्वतंत्र अधिकार नहीं है।

मुख्य न्यायधीश दीपक मिश्रा ती अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से आज दिए अपने निर्णय में कहा कि कोई फैसला लेने से पहले उप राज्यपाल(एलजी) की अनुमति लेने की जरूरत नहीं, सिर्फ सूचना देने की जरूरत है। पीठ ने कहा कि छोटे-छोटे मामलों में में मतभेद नही होना चाहिए और राय में अंतर होने पर मामला राष्ट्रपति को भेजा जाना चाहिए। मामले में उप राज्यपाल की सहमति जरूरी नहीं, लेकिन कैबिनेट को फैसलों की जानकारी देनी होगी।

पिछले वर्ष 06 दिसम्बर को इस मामले को लेकर दाखिल 11याचिकाओ की सुनवाई पूरी कर चुकी पीठ ने कहा कि सरकार और उप राज्यपाल के बीच राय में अंतर वित्तीय, पॉलिसी और केंद्र को प्रभावित करने वाले मामलों में होनी चाहिए।खंडपीठ के सदस्य न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि उप राज्यपाल को ये ध्यान में रखना चाहिए कि फैसले लेने के लिए कैबिनेट है, वह नहीं।उन्होने यह भी कहा कि लोकतंत्र में वास्तविक पावर चुने हुए प्रतिनिधियों में होनी चाहिए।विधायिका के प्रति वो जवाबदेह हैं. लेकिन दिल्ली के विशेष दर्जे को देखते हुए समन्वय बनाना जरूरी है।

मुख्य न्यायधीश श्री मिश्रा एवं दो अन्य न्यायमूर्तियों ने कहा कि उप राज्यपाल सीमित अधिकारों के साथ प्रशासक हैं, वह राज्यपाल नहीं हैं. वह भूमि, पुलिस और लॉ एंड आर्डर को छोडकर बाकी मामलों में दिल्ली सरकार की ‘एड एंड एडवाइस’ मानने के लिए बाध्य हैं। उन्होने अपने फैसले में यह भी कहा कि दिल्ली को राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता।