
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के दो दिवसीय भोपाल प्रवास ने महागठबंधन की सियासत के पारे को काफी परवान चढ़ा दिया है। उन्होंने बिना लाग-लपेट के जो कुछ कहा उसका उद्देश्य यही था कि सपा मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन करने की इच्छुक है और जिस स्तर पर बात होना चाहिए, उस स्तर पर हो रही है। पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव से जहां उन्होंने पारिवारिक रिश्तों का हवाला दिया तो वहीं दूसरी ओर यह भी कहा कि कांग्रेस से उनके संबंध अच्छे हैं और कमलनाथ उनके अच्छे मित्र हैं। बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती चुनाव वाले तीनों राज्यों मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस से चुनावी तालमेल करने पर सैद्धांतिक सहमति दे चुकी हैं। सीटों के बंटवारे के मामले में कांग्रेस महासचिव अशोक गहलोत और बसपा के सतीशचन्द्र मिश्रा आगे की औपचारिकताओं को पूरा करेंगे। मध्यप्रदेश में मायावती और समाजवादी पार्टी का कांग्रेस से गठबंधन हो जाता है तो अन्य दलों को कांग्रेस से जोड़ने की मुहिम में शरद यादव लगे हुए हैं। इस प्रकार महागठबंधन के सहारे कांग्रेस ने भाजपा के चौथी बार सत्ता में आने की राह में कांटे बिछाने का काम कर दिया है और वह मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की पूरी तरह घेराबंदी करने में कोई कोर-कसर बाकी नहीं रख रही है।
एक तरफ तो शिवराज की छवि पर आरोपों की झड़ी लगाकर कांग्रेस उसे धूमिल करने की कोशिश कर रही है तो वहीं दूसरी ओर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने यह भी पहचान लिया है कि शिवराज के साथ ही साथ उनका मुकाबला भाजपा की संगठन शक्ति से है, इसलिए वे यह मानते हैं कि मुकाबला चेहरे या उम्मीदवार से नहीं बल्कि भाजपा की संगठन शक्ति से होगा। हम अपने संगठन को मजबूत करने को सर्वोच्च प्राथमिकता दे रहे हैं। कमलनाथ यह भी कह चुके हैं कि कांग्रेस समान विचारधारा वाले दलों से प्रदेश में तालमेल करेगी। वह भाजपा की इस चाल को भी भलीभांति भांप गए हैं कि वह कांग्रेस में मुख्यमंत्री पद के चेहरे को लेकर आपसी खींचतान बढ़ाने की हरसंभव कोशिश करेगी, इसलिए उन्होंने यह भी साफ कर दिया है कि मुझे अपने राजनीतिक जीवन में इतना मिल चुका है कि अब मुख्यमंत्री पद हासिल करने की भूख नहीं है। पहली प्राथमिकता कांग्रेस सरकार बनाने की है। चूंकि जमीनी हकीकत को कमलनाथ भांप चुके हैं इसलिए उनकी प्राथमिकता बूथ स्तर तक कांग्रेस को मजबूत करने के साथ ही एक मजबूत सायबर टीम खड़ी करना है, जो कि भाजपा के हर प्रचार का तत्काल जवाब देते हुए कांग्रेस के पक्ष में माहौल बना सके।
बसपा से चुनावी तालमेल होने पर कांग्रेस तीनों राज्यों में अधिक मजबूत आधार पर खड़ी हो सकेगी और मध्यप्रदेश में उसे समाजवादी पार्टी सहित अन्य दलों का सहयोग मिल जाता है तो यहां पर राजनीतिक समीकरण बदलने में देर नहीं लगेगी। भाजपा के सामने चौथी बार सरकार बनाने के लिए एक बड़ी चुनौती पैदा हो जाएगी। भाजपा विरोधी मत सीधे-सीधे महागठबंधन के पक्ष में न जायें इसमें भाजपा की मदद केवल बिहार के मुख्यमंत्री और जेडीयू के अध्यक्ष नीतीश कुमार करने के लिए आगे आयेंगे और इसकी उन्होंने काफी पहले आधारभ्ाूमि भी तैयार कर ली है। बिहार के बाहर जदयू का चुनाव लड़ना सीधे-सीधे भाजपा को फायदा पहुंचाने वाला होगा और नीतीश यही करने वाले हैं। लेकिन जहां तक मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ का सवाल है यहां पुराने समाजवादियों के रुप में समाजवादी पार्टी के अलावा दो चेहरे हैं एक शरद यादव का और दूसरे रघु ठाकुर का। इन दोनों से परे जाकर नीतीश शायद यहां भाजपा की वैसी मदद न कर पायें जैसी कि उम्मीद भाजपा को होगी।
जहां तक सपा का कांग्रेस के साथ तालमेल का सवाल है फुटबाल की भाषा में अखिलेश ने कहा कि फ्रांस की टीम की तर्ज पर कांग्रेस को यहां चुनाव लड़ना चाहिए जिसने फ्रांस में रहने वाले दूसरे देश के अच्छे खिलाड़ियों को अपनी टीम में शामिल कर फीफा कप जीत लिया। इशारों-इशारों में उन्होंने यह भी कहा कि यदि फारर्वड व अन्य पोजीशन पर कांग्रेस खेलेगी तो लेफ्ट इन और लेफ्ट आउट तथा मजबूत रक्षापंक्ति की पोजीशन में बसपा और सपा रहेगी और इससे नतीजे काफी अच्छे निकलेंगे। अखिलेश की कोशिश यह रही कि जो समाजवादी साथी साथ छोड़कर चले गये उन्हें वापस पार्टी में लाया जाए और कुछ मजबूत उम्मीदवार खोजे जायें। उसके बाद सीटों पर बातचीत की जाये। सपा विधायक रहे के.के. सिंह फिर सक्रिय हो गए हैं तो डॉ. सुनीलम से हुई उनकी बातचीत काफी मायने रखती है। इंदौर के बन्ते यादव पर भी उनकी नजर है जो अरुण यादव के नजदीकी माने जाते हैं। अखिलेश को कांग्रेस से तालमेल करने में कोई परेशानी नहीं होने वाली क्योंकि एक तो उनके सीधे राहुल गांधी से संबंध हैं, दूसरे कमलनाथ को वे अपना अच्छा मित्र बता चुके हैं और कांग्रेस के अरुण यादव से वे अपने दो पीढ़ियों के संबंध बता रहे हैं। ऐसे में कांग्रेस से बात करने के लिए कई रास्ते उनके लिए खुले हुए हैं और बातचीत चल भी रही है यह उन्होंने माना है। लेकिन उन्होंने इससे अधिक अपने पत्ते नहीं खोले, इतना जरुर कहा कि सपा मध्यप्रदेश में चुनाव लड़ने जा रही है और वे महागठबंधन के पक्ष में हैं।
मध्यप्रदेश के चम्बल, बुंदेलखंड और बघेलखंड जिसे रेवांचल भी कहा जाता है में सपा और बसपा का असर है और भाजपा व कांग्रेस के बीच दो दलीय ध्रुवीकरण वाले इस राज्य में यदि हाथ, हाथी और सायकल मिल जायें तो राजनीतिक समीकरण एकदम बदल सकते हैं। प्रदेश की 80 सीटों पर बहुजन समाज पार्टी का कमोवेश कहीं अधिक तो कहीं न्यूनतम प्रभाव है परन्तु 36 सीटें ऐसी हैं जहां वह हार-जीत के समीकरण को तय करती है। इसी प्रकार बुंदेलखंड और बघेलखंड में समाजवादी पार्टी का भी दो दर्जन सीटों पर असर है। सपा, बसपा और कांग्रेस का बघेलखंड और बुंदेलखंड के कुछ हिस्से में प्रभाव का आंकलन इसी बात से लगाया जा सकता है कि भारतीय जनता पार्टी के जो भी इस इलाके के सांसद और विधायक हैं उनमें से अधिकांश पूर्व समाजवादी, कम्युनिस्ट या कांग्रेस के नेता रहे हैं। खासकर बघेलखंड में तो भाजपा ने इन्हीं विचारधारा के लोगों को अपने साथ मिलाकर अपनी जीत का परचम लहराया है। यहां से पूर्व घटक जनसंघ या संघ की पृष्ठभ्ाूमि वाले विधायकों की संख्या उंगलियों पर गिनी जा सकती है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि कांग्रेस की कोशिश महागठबंधन के सहारे अपने तीन दशक के सत्ता के वनवास को समाप्त करने की है और वह इसमें कितनी सफल रहती है यह चुनाव नतीजों से ही पता चल सकेगा।
और यह भी…
यह माना जाता रहा है कि साहित्यकार, व्यंग्यकार और कवि त्रिकालदर्शी होते हैं और वे अपने दौर में जो कुछ कहते हैं वह कई साल बाद साकार होता नजर आता है। आज देश में भीड़ के द्वारा लोगों की पिटाई उनकी जान लेने तक की घटनाएं बढ़ रही हैं। इस संदर्भ में कुछ दशक पूर्व मशहूर व्यंग्यकार हरिशंकर परसाईं ने जो लिखा था या स्व. गोपालदास नीरज की कविता की कुछ पंक्तियां यह कह रही हैं कि हमारे सामने किस प्रकार के खतरे हैं और उनसे कैसे निपटा जा सकता है। परसाईं ने लिखा था कि दिशाहीन, बेकार, हताश, नकारवादी, विध्वंसकारी युवकों की भीड़ खतरनाक होती है, इस भीड़ का उपयोग नेपोलियन, हिटलर और मुसोलिनी ने किया था। यह भीड़ किसी भी ऐसे संगठन के साथ खड़ी हो सकती है जो उनमें उन्माद और तनाव पैदा कर दे। यह भीड़ फासिस्टों का हथियार बन सकती है। हमारे देश में यह भीड़ बढ़ रही है। स्व. नीरज की ये पंक्तियां इस ओर इशारा करते हुए एक राह भी सुझाती हैं- “अब तो मजहब कोई ऐसा भी चलाया जाये, जिसमें इंसान को इंसान बनाया जाये। जिसकी खुशबू से महक जाये पड़ोसी का भी घर, फूल इस किस्म का हर सिम्त खिलाया जाये। आग बहती है यहां गंगा में झेलम में भी, कोई बताए कहां जाकर नहाया जाये।“
सम्प्रति-लेखक श्री अरूण पटेल अमृत संदेश रायपुर के कार्यकारी सम्पादक एवं भोपाल के दैनिक सुबह सबेरे के प्रबन्ध सम्पादक है।
CG News | Chhattisgarh News Hindi News Updates from Chattisgarh for India