कोरबा वनमंडल के वन परिक्षेत्र पसरखेत का है। दरअसल विवाद की शुरूआत साल 2024 में ही हो गई थी। वन विभाग द्वारा 21 नवंबर को सलेक्शन कम इम्पु्रवमेंट (एसीआई) कूप कटिंग प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। इसके लिए पसरखेत रेंज के तराईमार जंगल के कक्ष क्रमांक 1128 को चुना गया था। प्रशिक्षण कार्यक्रम में शामिल होने तत्कालिन मुख्य वन संरक्षक (सीसीएफ) प्रभात मिश्रा कोरबा पहुंचे थे। उनकी मौजूदगी में वन कर्मियों को कूप कटिंग के संबंध में जानकारी दी जा रही थी।
इसी दौरान कोलगा के ग्रामीण भारी संख्या में जा पहुंचे। उन्होंने जंगल को अपने गांव का बताते हुए प्रशिक्षण की सूचना नही देने पर विरोध जताना शुरू कर दिया। इसके अलावा कई अन्य आरोप भी लगाया। नौबत यहां तक आ गई कि वन अफसरों को पुलिस की मदद लेनी पड़ी। पुलिस व अफसरों ने त्रिपक्षीय वार्ता कर मामले का निराकरण करने आश्वासन दिया, तब कहीं जाकर ग्रामीण शांत हुए थे, लेकिन ग्रामीणों के लगातार विरोध के कारण कूप कटिंग पर रोक लगा दी गई थी। करीब एक साल बाद वन विभाग ने पुन: कूप कटिंग शुरू किया है। बुधवार सुबह भी करीब 40 मजदूर गुफा एरिया, बांधा पतरा, ढोंड़टिकरा व मोहनपुर के जंगल में कूप कटिंग के लिए लगाए गए थे।
कोलगा के ग्रामीण भारी संख्या में जंगल के भीतर पहुंचे, जिनमें अधिकांश महिलाएं थी। उन्होंने कूप कटिंग का विरोध शुरू कर दिया। ग्रामीणों के आक्रोश देख मौके पर मौजूद वन अमला और मजदूर दहशत में आ गए। उन्होंने मौके से जाना ही मुनासिब समझा। ग्रामीणों ने पेंड़ कटाई में प्रयुक्त करीब 40 कुल्हाड़ी के अलावा अन्य औजार को कब्जे में ले लिया। ग्रामीणों ने विरोध जताते हुए कूप कटिंग का कार्य बंद कर दिया है। डीएफओ कोरबा वनमंडल प्रेमलता यादव ने बताया कि ग्रामीणों का काम बंद कराना उचित नही है। ग्रामीणों से मौखिक या लिखित रूप में किसी तरह की मांग पत्र प्राप्त नही हुआ है। मामले में जानकारी लेते हुए चर्चा उपरांत निराकरण का प्रयास किया जाएगा।
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