तो त्योहारों का मौसम है।नवरात्रि बस बीती ही है और दशहरा भी।दीवाली की तैयारियां हैं।साफ-सफाई।सफेदी-रंग रोगन। रोशनी है।पकवानों की खुशबू है।मिठास भी।मुस्कुराते चेहरे।बधाइयों का आदान-प्रदान। पर इन सबके बीच माहौल कुछ तीखा। कुछ कसैला। कडुवाहट घुल रही है।क्यों? क्योंकि चुनाव नजदीक है।”’और यह पहला चुनाव नही। हर चुनाव का एजेंडा होता है। इस चुनाव का भी। नतीजों को लेकर मगजमारी की क्या जल्दी? अभी तो तैयारियों का दौर हैं। जुबानी अस्त्रों की धार-मार तेज हो रही है। रफ़्ता-रफ़्ता। नोटबन्दी है। जीएसटी है। खाते में न पहुंचे 15 लाख हैं। राफेल भी है। जुमलेबाजी भी। पर उन सब पर भारी। जनेऊ। कैलाश- मानसरोवर। मंदिर। चौखट। उसपे झुका-लगा मत्था। सजा टीका- चन्दन । माहौल भक्तिमय। पर यह कैसी भक्ति(!) मन-माथे को ठंडक नही। उलटे आग दे रही है। तो आग इसलिए क्योंकि उसी की चाहत -जरूरत। जुबान कुछ और तीखी। और तेजाबी। हिन्दू दिखने की होड़ है। इसके लिए मंदिर-पूजा। मौसम का संधिकाल है। सुबह-शाम की बयार तन को राहत दे रही है। ठंड नजदीक है।मौसम रोके नही रुकेगा। पर माहौल अपने हाथ।उसे ठंडा नही होने देना !
2014 की नरेन्द्र मोदी और भाजपा की जीत का निचोड़ था कि बिना मुस्लिम समर्थन के केंद्र में पूर्ण बहुमत की सरकार बन सकती है। गो कि जीत की वजहें और भी कई थीं।कांग्रेस की हार के कारणों की भी फ़ेहरिस्त थी। पर ए के एंटोनी समिति ने जो कारण गिनाए , उनमे कांग्रेस के मतदाताओं बीच हिन्दू विरोधी होने का आभास शामिल था। सत्ता में आने के बाद भाजपा देश के उन नायकों के नज़दीक दिखने की कोशिश में है, जिन्हें कांग्रेस “अपना” मानती रही है। सबका साथ-सबका विकास की बात करते बाकी हिन्दू की अपनी मूल पहचान तो है ही। उधर सेक्युलर कांग्रेस, हिंदुओं से दूरी पाटने में लगी है। नजदीक दिखने की कोशिश में राहुल की कमोवेश हर यात्रा में मंदिर दर्शन शामिल हो चुका है। गुजरात, कर्नाटक की आंशिक सफलता ने हौसला बढ़ाया है।
मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ़, राजस्थान में भी इन्ही नुस्खों को आजमाया जा रहा है।लखनऊ के कांग्रेस दफ्तर में राज बब्बर कन्या पूज रहे हैं। 2019 आते-आते देखिये क्या होता है ! पानी पी पीकर मनुवाद को कोसने वाली मायावती के सुर सयंमित हैं।मुस्लिम वोट बैंक को अपना मानने वाली सपा के मुखिया अखिलेश यादव विष्णु मंदिर की बात कर रहे हैं।पश्चिम बंगाल में मुस्लिम वोट बैंक पर काबिज ममता बनर्जी दुर्गा पूजा समितियों को आर्थिक सहायता का एलान करके संतुलन साधने का दावँ चल चुकी हैं। ऐसी ही कोशिशें अलग-अलग ठिकानों पर चल रही हैं। मंदिर के नाम पर कितने वोट बचे हैं? पर राख में चिंगारियों की तलाश जारी है। किसी का अनशन तो किसी का कूच। अब संतों, विहिप के साथ संघ भी बोल पड़ा है। भले स्वयं सेवक मोदी के कार्यकाल के आखिरी साल में कि मंदिर के लिए कानून बनाइये।
चुनाव में मुद्दे क्या होंगे? हमेशा की तरह बेरोजगारी।आर्थिक मोर्चे पर बदहाली। किसानों-मजदूरों की तंगहाली। कानून-व्यवस्था की बिगड़ती हालत।कश्मीर पर विफलता।सीमा पर लगातार सैनिकों की शहादत।मोदी की जुमलेबाजी। कट्टरता-कडुवाहट। बढ़ती दूरियां।
मोदी को रोकने के लिए गठबंधन बन पाएगा कि नही? बनेगा तो कितना सफल होगा? 2014 जैसा मोदी-मोदी का शोर नही।हर-हर।घर-घर मोदी भी नही। पर इन तमाम सवालों और उनके जबाबों के अगर-मगर बीच,इस पर लोग एक राय हैं कि मोदी पूरे चुनाव के केंद्र में हैं। चुनाव उन्हें फिर से लाने और रोकने के बीच। अपने कैडर और सामूहिक नेतृत्व के लिए पहचानी जाने वाली भाजपा पीछे और चेहरा “मोदी” उस पर भारी है।2014 में मोदी के पास गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में अपने विकास कार्यों से ज्यादा उग्र हिंदुत्व की छवि थी। एक दशक से ज्यादा समय तक मीडिया-अदालतों में चले खिलाफ अभियान और ,” मौत के सौदागर” तक के कुख्यात विशेषणों को ठेंगा दिखा वह पूर्ण बहुमत की सरकार के मुखिया बने।पांच साल में हालात बहुत बदले हैं। मोदी के लिए भी। उनकी मुख़ालफ़त करने वालों के लिए भी और उस मुख़ालफ़त के अंदाज में भी।”’ तो मुमकिन है कि देश के हर चुनाव में उदारता से कहा-सुना जाने वाला,”सेकुलिरिज्म” का जुमला कम सुनने को मिले या फिर धीरे-धीरे बच-बचके इस्तेमाल हो। प्रधानमंत्री के रूप में मोदी बार-बार देश के सवा सौ करोड़ भारतवासियों से अपनी नजदीकी दिखाने की कोशिश करते रहे हैं।उन्होंने मुस्लिमों की अपने प्रति नाराजगी कम करने और तीन तलाक जैसे सवालों के बहाने मुस्लिम महिलाओं से सहानुभूति पाने के प्रयास भी किये। पर विपक्षी एक राय हैं कि मोदी की असली ताकत उनकी,”हिन्दू छवि” है।”’ उनसे लड़ने वाले अब तक इसका डर दिखा उनसे गुजरात से दिल्ली तक हारते रहे। इस बार रणनीति बदली है। उन्ही के बाने को पहन उनसे लड़ने की तैयारी है। नाम उसका ,”सॉफ्ट हिंदुत्व” है।
सम्प्रति- लेखक श्री राज खन्ना वरिष्ठ पत्रकार है।श्री खन्ना के आलेख विभिन्न प्रमुख समाचार पत्रों में प्रकाशित होते रहते है।