मुख्यमंत्री कमलनाथ को प्रदेश की कमान संभाले एक माह पूरा हो गया है। इस दौरान उन्होंने अपने कार्यालय में जो तीन संविदा नियुक्तियां की है उसको देखकर यह कहा जा सकता है कि अनुभव और समर्पण को उन्होंने सम्मानित किया है। अपने सलाहकार के रूप में राजेन्द्र कुमार मिगलानी और ओएसडी के रूप में कांग्रेस नेता भूपेन्द्र गुप्ता तथा शासकीय सेवा सेस्वयं इस्तीफा देकर कांग्रेस की राजनीति से जुड़ने वाले प्रवीण कक्कड़ शामिल है। इन नियुक्तियों में इस बात का विशेष ध्यान रखा गया है कि जिसे चुना जाए वह भरोसे का हो, अपने अपने क्षेत्र में काम करने का व्यापक अनुभव रखता हो तथा समर्पित भाव से काम करने में जिन्हें महारत हासिल हो। सौंपे गए दायित्व को हर हाल में पूरा करने की इनमें क्षमता है और शायद इनके चयन का यही आधार भी है।
मिगलानी करीब चालीस साल से कमलनाथ से जुड़े रहे है और कमलनाथ जिस भी भूमिका में हो उनके भरोसे पर हमेशा खरे उतरे है। उनकी यह विशेषता है कि सबके साथ समन्वय बनाकर चलते है। इसके अलावा वे महाकौशल की कांग्रेस राजनीति के चप्पे चप्पे से वाकिफ है। यहां तक कि वे कहां किसकी क्या कमजोरी है और किसमें कितनी क्षमता और ऊर्जा है। इसे वे भलीभांति जानते है। हमेशा ही मिगलानी कार्यकर्ताओं और कमलनाथ के बीच एक सेतू के रूप में काम करते रहे है। महाकौशल में नए सिरे से कांग्रेस ने अपने लिए उर्वरा जमीन तैयार की है। कमलनाथ के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही है कि इस अंचल में कांग्रेस को और अधिक कैसे मजबूत किया जाए। चुंकि भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह भी जबलपुर के ही है और उनके होते हुए भी महाकौशल में भाजपा को इस विधानसभा चुनाव में काफी कम सीटें मिली है जबकि कांग्रेस को यहां अच्छी सफलता मिली है। अब प्रदेश में कांग्रेस को और अधिक मजबूत बनाना लोकसभा चुनाव की दृष्टि से कमलनाथ के एजेंडे में सबसे ऊपर है। मिगलानी कार्यकर्ताओं और नेताओं की भावनाओं को ज्यादा अच्छे से कमलनाथ तक पहुंचा सकते है। मिगलानी की एक खासियत यह भी है कि एक तो वे बड़ी साफगोई से, विश्वसनीयता के साथ बिना किसी लंबी भूमिका को बनाए या बिना लाग लपेट के अपनी बात कहते है। उनके व्यक्तित्व में गंभीरता साफ नजर आती है। मिगलानी को सलाहकार के रूप में जो नई भूमिका मिली है वो इस बात का साफ संकेत है कि वे कमलनाथ के सबसे भरोसेमंद सहयोगी है। दिल्ली हो या छिंदवाड़ा वे सक्रिय भूमिका निभाते रहे है। अब कमलनाथ ने प्रदेश की कमान संभाली है इसलिए मिगलानी अब प्रदेश में सक्रिय रहेंगे और प्रशासनिक गलियारों में भी उनकी सक्रियता बढ़ेगी। राजनीतिक, प्रशासनिक या अन्य जो भी कमलनाथ की प्राथमिकता रही है उसमें मिगलानी पिछले चार दशकों से कमलनाथ के सफर में कितने उतार चढ़ाव आए हो लेकिन उनकी सेना के सबसे प्रमुख किरदार में वे रहे है। पिछले देढ़ दशक से सत्ता से दूर रही कांग्रेस ने जब फिर से अपनी सत्ता में वापसी के लिए गंभीर चिंतन मनन किया तो उस समय सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने इस भरोसे के साथ कमलनाथ को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी और कमलनाथ उस भरोसे पर खरे उतरे तथा उनके नेतृत्व में कांग्रेसी सरकार बनी।
वहीं भूपेन्द्र गुप्ता को मुख्यमंत्री ने ओएसडी बनाया है। गुप्ता की भी खासियत रही है कि वे मिलनसार मृदुभाषी होने के साथ ही साथ कांग्रेस पार्टी के प्रति हमेशा समर्पित रहे है। पार्टी ने जब भी उन्हें जो भी भूमिका सौंपी है उन्होंने उसका निष्ठा के साथ निर्वहन किया है। वे ऐसे व्यक्ति है जिन्होंने विधानसभा चुनावों के पहले भाजपा सरकार की घेराबंदी करने के लिए मुद्दे तलाशकर लाते थे। वे पहले कांग्रेस प्रवक्ता और बाद में प्रदेश कांग्रेस मीडिया विभाग के उपाध्यक्ष के रूप में काफी सक्रिय रहे। गुप्ता इस बात के लिए निरंतर प्रयास करते रहे कि कांग्रेस का पक्ष ना केवल पूरी मजबूती से रखा जाए बल्कि इसके साथ ही मीडिया में होने वाली चर्चाओं में गंभीरता के साथ भाजपा सरकार को जनता की नजरों के सामने कठघरे में खड़ा किया जाए। वे इस तार्किक ढ़ंग से अपनी बात रखते थे कि वह दर्शकों के गले उतर जाए। मूलरूप से वे इंजीनियर है और मैनिट से बीटेक प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण है। छात्र जीवन से ही वे कांग्रेस की विचारधारा से जुड़े रहे एनएसयूआई से कॉलेज यूनियन ज्वाइंट सेक्रेटरी बने। उद्योग विभाग में एक अधिकारी के रूप में उन्होंने अपना सफर चालू किया लेकिन उन्हें वह रास नहीं आया। उन्होंने सरकारी नौकरी और उसके चलते मिलने वाली सुविधाओं का मोह त्यागकर फिर से कांग्रेस से जुड़ गए। युवा कांग्रेस में विभिन्न पदों पर रहते हुए वे इसके महामंत्री भी बने। इसके बाद पीसीसी डेलीगेट हुए। पार्टी के प्रति उनके समर्थन को देखते हुए उन्हें प्रदेश सचिव भी नियुक्त किया गया। पत्रकारिता से भी भूपेन्द्र गुप्ता जुड़े रहे और वर्षों तक उन्होंने ‘जनप्रयोग’ नामक साप्ताहिक प्रकाशित किया। लगभग चार साल तक वे दैनिक भास्कर सतना के यूनिट हेड के साथ ही संपादन के कार्य से भी जुड़े रहे। बाद में वे कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता बने। कांग्रेस को चुनाव में जो सफलता मिली उसकी वैचारिक पृष्ठभूमि और माहौल बनाने के अभियान में गुप्ता की सक्रिय भूमिका रही। कमलनाथ ने प्रदेश अध्यक्ष बनते ही उन्हें कांग्रेस के विचार विभाग और पोल खोल समिति के अध्यक्ष और मीडिया विभाग के उपाध्यक्ष का दायित्व सौंपा। पोल खोल अभियान के दौरान आक्रामक प्रचार साहित्य के साथ ही उन्होंने विभिन्न संचार माध्यमों और समाचार पत्रों में कांग्रेस पार्टी का मजबूती से पक्ष रखा। उन्हें मुख्यमंत्री का ओएसडी बनाया गया है। राज्य सरकार ने माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल में नियुक्तियों तथा अन्य अनियमिताओं की जांच के लिए अपर मुख्य सचिव एम गोपाल रेड्डी की अध्यक्षता में जो तीन सदस्यीय कमेटी गठित की है उसमें गुप्ता भी शामिल है।
प्रवीण कक्कड़ ने पुलिस विभाग और प्रतिनियुक्ति पर परिवहन विभाग में अपने सेवाएं दी और बाद में स्वयं सेवानिवृत्ति ले ली। जब केन्द्र में कांतिलाल भूरिया मंत्री बने तब उनके विशेष सहायक के रूप में कक्कड़ दिल्ली चले गए। बाद में उन्होंने सरकारी नौकरी तो छोड़ दी लेकिन भूरिया से पूरी तरह जुड़े रहे। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जब भूरिया बने तब कक्कड़ उनके सबसे भरोसेमंद और विश्वसनीय सहायक की भूमिका में नजर आए। इस दौरान ही वे कांग्रेस की राजनीति से भी जुड़ गए। भूरिया पद पर रहे हो या ना रहे हो लेकिन कक्कड़ उनके साथ हमेशा जुड़े रहे। कमलनाथ के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद उन्हें चुनावी तैयारियों से संबंधित महत्वपूर्ण समिति में शामिल किया गया और उन्होंने अपना काम पूरे समर्पण और निष्ठाभाव से किया। कक्कड़ मृदुभाषी और मिलनसार होने के साथ ही परिणामोन्मुखी माने जाते है। जो काम सौंपा जाता है उसका सकारात्मक परिणाम जरूर लेकर आते है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि मुख्यमंत्री कार्यालय में अनुभव और समर्पण को सम्मान मिला है।
और यह भी
मुख्यमंत्री कमलनाथ अक्सर कहते रहे है कि उनकी चक्की धीरे-धीरे चलती है लेकिन बारीक महीन आटा पीसती है। एक माह के उनके मुख्यमंत्री काल के दौरान उन्होंने जो भी निर्णय लिए है वह इस कहावत को चरितार्थ भी करते है। किसी भी सरकार के काम के आकलन के लिए तीस दिन का समय पर्याप्त नहीं होता है लेकिन सरकार जिन वायदों और इरादों के साथ सत्ता में आयी उसके काम के आगाज की शैली और भविष्य की पदचाप को महसूसा जा सकता है। तीस दिन के अंदर ही 55 लाख किसानों की कर्जमाफी का महत्वपूर्ण फैसला हुआ और जिन जिन वायदों को मतदाताओं से कमलनाथ ने किया, उन वचनों को तेजी से अमल में लाया जा रहा है। अपने वचनों और दिखाएं गए इरादों पर पूरे पांच साल अटल रहने की एक बड़ी चुनौती कमलनाथ के सामने है। पहली राजनीतिक परीक्षा लोकसभा चुनाव में होने वाली है जिसमें उन्हें कांग्रेस के 20 प्लस के लक्ष्य को पूरा करना है। लक्ष्य तो हमेशा ही बड़ा चढ़ाकर रखा जाता है लेकिन यदि देड़ दर्जन लोकसभा सीटें भी कांग्रेस जीत जाती है तो यह कमलनाथ की सबसे बड़ी उपलब्धि होगी।
सम्प्रति-लेखक श्री अरूण पटेल अमृत संदेश रायपुर के कार्यकारी सम्पादक एवं भोपाल के दैनिक सुबह सबेरे के प्रबन्ध सम्पादक है।