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उज्जैन में भाजपा और मंदसौर में कांग्रेस को करना होगा संघर्ष – अरुण पटेल

अरूण पटेल

उज्जैन और मंदसौर लोकसभा क्षेत्रों में सामान्यत: रुझान भाजपा के पक्ष में रहता आया है लेकिन कभी-कभी कांग्रेस ने भी जीत दर्ज कराई है। 2009 के लोकसभा चुनाव में उज्जैन से कांग्रेस के प्रेमचंद गुड्डू और मंदसौर से कांग्रेस की युवा चेहरा व युवा कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष रही मीनाक्षी नटराजन ने जीत दर्ज कराई थी, हालांकि 2014 आते-आते दोनों को अपनी सीटें गंवाना पड़ी। मंदसौर में किसान गोलीकांड हुआ और ऐसा लगा कि इस अंचल में कांग्रेस मजबूत हो रही है और भाजपा पिछड़ रही है लेकिन विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की उम्मीदों पर पानी फिर गया और भाजपा का सात क्षेत्रों में परचम लहराया जबकि कांग्रेस के हरदीप सिंह डंग ही चुनाव जीतने में सफल रहे। भले ही प्रदेश में कांग्रेस की सरकार कमलनाथ के नेतृत्व में बन गयी हो लेकिन राजनीतिक परिदृश्य में मंदसौर में कोई बदलाव नहीं आया उल्टे सीतामऊ सुवासरा के मजबूत गढ़ में लगातार दो विधानसभा चुनाव जीतने वाले कांग्रेस के इकलौते विधायक हरदीप सिंह डंग को मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली इससे वे तो निराश हुए ही इस क्षेत्र के मतदाताओं को भी निराशा हाथ लगी। मंदसौर लोकसभा सीट भाजपा के लिए आसान सीट रही है लेकिन उज्जैन लोकसभा सीट पर चुनावी परिदृश्य में बदलाव आया है और यहां भाजपा से कांग्रेस विधायकों की संख्या इस समय ज्यादा हो गयी है। यह अन्तर अवश्य आया है कि 2014 के पराजित कांग्रेस उम्मीदवार प्रेमचंद गड्डू भाजपा में चले गये हैं लेकिन वे अपने बेटे को भाजपा टिकट पर विधायक बनवाने में सफल नहीं हो पाये।

अनूसूचित जाति के लिए आरक्षित उज्जैन सीट पर 2014 के चुनाव में प्रो. चिंतामणि मालवीय ने एकतरफा जीत दर्ज कराते हुए कांग्रेस के प्रेमचंद गुड्डू को 3 लाख 9 हजार 663 मतों के अन्तर से पराजित करते हुए उनसे यह सीट छीन ली थी। मौजूदा सांसद चिंतामणि मालवीय अपनी विवादास्पद टिप्पणियों व अटपटी कार्यशैली को लेकर चर्चाओं में बने रहते है। 2014 में उन्हें 63.8 प्रतिशत यानी 6 लाख 41 हजार 101 मत मिले जबकि कांग्रेस के प्रेमचन्द को 32.61 प्रतिशत यानी 3 लाख 31 हजार 468 मत मिले और हर क्षेत्र में वे बुरी तरह भाजपा उम्मीदवार से पिछड़े। 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद यहां का माहौल बदला और कांग्रेस के पांच जबकि भाजपा के तीन विधायक ही जीत पाये। भले ही कांग्रेस के पांच विधायक जीते हों लेकिन अभी भी वह भाजपा से 69 हजार 922 मतों से पीछे है। अपनी इस बढ़त को बनाये रखने के लिए भाजपा को काफी जोर लगाना होगा।

मंदसौर लोकसभा सीट पर भाजपा की मजबूत पकड़ रही है और 2009 के अपवाद को छोड़ दिया जाए तो इस सीट पर कांग्रेस ने कम भाजपा ने ज्यादा बार चुनाव जीता है। मीनाक्षी नटराजन ने 2009 का चुनाव 30. हजार मतों के अन्तर से जीता था लेकिन इसका एक कारण यह था कि यहां के लोग डा. लक्ष्मीनारायण पांडेय को हराना चाहते थे और भाजपा के कार्यकर्ता भी नहीं चाहते थे कि पांडेय चुनाव जीतें। इसमें संदेह कम ही है कि 12वीं बार भाजपा इस संसदीय सीट पर आसानी से जीत दर्ज कर लेगी क्योंकि यहां के मतदाताओं का कुछ अपवादों को छोड़कर झुकाव जनसंघ व भाजपा के प्रति रहा है।

भाजपा के मजबूत गढ़ों में मंदसौर शामिल है, हालांकि मंदसौर के मौजूदा सांसद सुधीर गुप्ता से भी लोगों की नाराजगी कम नहीं है और एक बार फिर मीनाक्षी नटराजन की लाटरी उसी सूरत में लग सकती है कि वे इस नाराजगी को अपने लिए सकारात्मक ढंग से वोटों में परिवर्तित कर पायें। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के सुधीर गुप्ता ने सुश्री नटराजन को 3 लाख 3 हजार 649 मतों के अन्तर से पराजित करते हुए एकतरफा जीत दर्ज कराई थी। 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है और वह किसानों में फैले असंतोष का फायदा भी नहीं उठा पाई। फिलहाल तो पुराने चुनावी रुझान को देखते हुए भाजपा की राह यहां आसान नजर आती है। मीनाक्षी नटराजन एक युवा चेहरा हैं और उनका मूल कार्यक्षेत्र रतलाम जिला रहा है, इस लोकसभा क्षेत्र में केवल एक विधानसभा क्षेत्र ही रतलाम जिले का आता है। मंदसौर जिले के जो भी दिग्गज कांग्रेस नेता रहे हैं अब उनकी मजबूत पकड़ नहीं बची है, यही कारण है कि यहां भाजपा की स्थिति मजबूत है।

 

सम्प्रति-लेखक श्री अरूण पटेल अमृत संदेश रायपुर के कार्यकारी सम्पादक एवं भोपाल के दैनिक सुबह सबेरे के प्रबन्ध सम्पादक है।