
रायपुर, 22 दिसम्बर।छत्तीसगढ़ की तीन महान विभूतियों छत्तीसगढ़ के गांधी के नाम से प्रसिद्ध पंडित सुन्दरलाल शर्मा, त्यागमूर्ति ठाकुर प्यारेलाल सिंह और संविधान पुरुष के रूप में विख्यात घनश्याम सिंह गुप्त के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर राजधानी के हाँडीपारा स्थित छत्तीसगढ़ी भवन में कल एक विचार-गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस गोष्ठी में स्वतंत्रता संग्राम, सामाजिक सुधार और जन-आंदोलनों में इन तीनों विभूतियों के ऐतिहासिक योगदान को स्मरण किया गया।
पंडित सुन्दरलाल शर्मा का जन्म 21 दिसम्बर 1881 को राजिम में, त्यागमूर्ति ठाकुर प्यारेलाल सिंह का जन्म 21 दिसम्बर 1891 को ग्राम दैहान (जिला राजनांदगांव) में तथा संविधान सभा के सदस्य रहे घनश्याम सिंह गुप्त का जन्म 22 दिसम्बर 1885 को दुर्ग में हुआ था। स्वतंत्रता आंदोलन में तीनों की सक्रिय और प्रभावशाली भूमिका रही। इसी कारण उनकी जयंती एक साथ मनाई गई।
कार्यक्रम की शुरुआत तीनों विभूतियों के चित्र पर माल्यार्पण से हुई। लोकतंत्र सेनानी एवं राज्य निर्माण सेनानी जागेश्वर प्रसाद ने स्वागत भाषण दिया, कार्यक्रम का संचालन किया तथा अंत में आभार प्रदर्शन भी किया। राज्य निर्माण आंदोलनकारी संगठन छत्तीसगढ़ समाज पार्टी (छसपा) द्वारा आयोजित इस विचार-गोष्ठी में इतिहासकार डॉ. के. के. अग्रवाल, वरिष्ठ रंगकर्मी एवं लेखक अरविन्द मिश्रा, संस्कृति कर्मी अशोक तिवारी, साहित्यकार एवं पत्रकार स्वराज्य करुण तथा छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण सेनानी, किसान नेता एवं पत्रकार गोवर्धन चंद्राकर ने अपने विचार रखे।
इतिहासकार डॉ. के. के. अग्रवाल ने पंडित सुन्दरलाल शर्मा की स्वतंत्रता संग्राम और अछूतोद्धार आंदोलन में ऐतिहासिक भूमिका पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उन्होंने एक साथ तीन बड़े कार्य किए,समाज में जन-जागरण के लिए ‘दानलीला’ खण्ड-काव्य सहित 18 ग्रंथों की रचना, राष्ट्रीय विद्यालय का संचालन तथा स्वदेशी आंदोलन, किसान आंदोलन, जंगल सत्याग्रह और नहर सत्याग्रह में सक्रिय भागीदारी। वे छत्तीसगढ़ में अछूतोद्धार आंदोलन के प्रणेता थे और स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान उन्हें जेल भी जाना पड़ा।
डॉ. अग्रवाल ने त्यागमूर्ति ठाकुर प्यारेलाल सिंह को याद करते हुए बताया कि उन्होंने वर्ष 1919 में राजनांदगांव में लगभग 36 दिनों तक चले छत्तीसगढ़ के प्रथम मजदूर आंदोलन का नेतृत्व किया। यह आंदोलन सूती कपड़ा मिल के मजदूरों द्वारा उनकी अगुवाई में किया गया था। ठाकुर साहब न केवल इस प्रथम मजदूर आंदोलन के अग्रदूत थे, बल्कि सहकारिता आंदोलन के भी पुरोधा थे। छत्तीसगढ़ में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में उनके प्रयासों से रायपुर में पहला कॉलेज ‘छत्तीसगढ़ कॉलेज’ स्थापित हुआ। इसके लिए वर्ष 1937 में उनकी अध्यक्षता में छत्तीसगढ़ एजुकेशन सोसायटी का गठन किया गया।
वरिष्ठ रंगकर्मी एवं लेखक अरविन्द मिश्रा ने पंडित सुन्दरलाल शर्मा के सार्वजनिक जीवन के अनेक अनछुए प्रसंगों का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि ‘दानलीला’ खण्ड-काव्य के माध्यम से पंडित शर्मा ने तत्कालीन समाज में व्याप्त शोषण के विरुद्ध जन-जागरण का संदेश दिया। इस काव्य में कंस द्वारा दूध-दही और खेतों की उपज के एकाधिकार का प्रतीकात्मक विरोध किया गया, जो ब्रिटिश शासन द्वारा भारतीय जनता के शोषण का संकेत भी था।
साहित्यकार एवं पत्रकार स्वराज्य करुण ने कहा कि तीनों विभूतियों की जीवन यात्रा किसी महाकाव्य से कम नहीं है। उन्होंने बताया कि ठाकुर प्यारेलाल सिंह वर्ष 1952 में मध्य प्रांत एवं बरार की विधानसभा में रायपुर से विधायक निर्वाचित हुए और उन्हें प्रतिपक्ष का नेता बनाया गया। वे वर्ष 1936, 1940 और 1944 में तीन बार रायपुर नगरपालिका परिषद के निर्वाचित अध्यक्ष रहे और शहर के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ठाकुर साहब पत्रकार भी थे और उन्होंने वर्ष 1950 से 1952 तक रायपुर से प्रकाशित अर्ध-साप्ताहिक समाचार पत्र ‘राष्ट्रबंधु’ का संपादन एवं प्रकाशन किया, जिसे विधायक बनने के बाद अपनी व्यस्तताओं के कारण स्थगित करना पड़ा।
घनश्याम सिंह गुप्त के योगदान को स्मरण करते हुए बताया गया कि उन्होंने संविधान सभा के सदस्य के रूप में स्वतंत्र भारत के संविधान के हिंदी अनुवाद में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
संस्कृति कर्मी अशोक तिवारी ने कहा कि वर्ष 1950 के दशक में जब असम प्रांत में पीढ़ियों से निवास कर रहे प्रवासी छत्तीसगढ़ियों को जमीन से बेदखल किए जाने की जानकारी मिली, तब ठाकुर प्यारेलाल सिंह ने तुरंत असम का दौरा किया। उन्होंने लगभग 50 दिनों तक गांव-गांव जाकर लोगों की समस्याएं सुनीं और असम तथा तत्कालीन मध्य प्रांत एवं बरार की सरकारों के स्तर पर उनके समाधान के लिए सक्रिय पहल की।
राज्य निर्माण सेनानी गोवर्धन चंद्राकर ने कहा कि आजादी के बाद शिक्षा और संचार के क्षेत्र में विकास हुआ है, लेकिन सामाजिक और आर्थिक शोषण किसी न किसी रूप में आज भी मौजूद है। उन्होंने चिंता जताई कि उच्च शिक्षा प्राप्त कर ऊंचे पदों पर पहुंचे अनेक लोग अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों से दूर हो गए हैं। उन्होंने कहा कि हमारी महान विभूतियों ने हमेशा अन्याय और शोषण के खिलाफ आवाज बुलंद की और समाज को आगे बढ़ने का मार्ग दिखाया, जिसे अपनाने की आवश्यकता है।
विचार-गोष्ठी में उर्दू शायर सुखनवर हुसैन, छत्तीसगढ़ी गीतकार रामेश्वर शर्मा, रसिक बिहारी अवधिया सहित गोविन्द धनगर, संजीव साहू, डॉ. श्यामलाल साकार, परसराम तिवारी, पं. शिवनारायण ताम्रकार, मिनेश चंद्राकर, रघुनंदन साहू, श्यामू राम सेन, गंगाराम साहू, आदर्श चंद्राकर, मुकेश टिकरिहा, हिमांशु चक्रवर्ती, आशाराम देवांगन, उमैर खान, डॉ. छगनलाल सोनवानी, ऋतु महंत, रोहित चन्द्रवंशी और रामकुमार देवांगन सहित अनेक प्रबुद्धजन उपस्थित रहे।
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