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राहुल के ‘ब्रह्मास्त्र’ की क्या काट खोजेंगे म.प्र.में शिवराज ?–अरुण पटेल

अरूण पटेल

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने 6 जून को मंदसौर से कांग्रेस के चुनाव प्रचार अभियान की दिशा तय कर दी है और लगता है कि अब चुनाव तक प्रदेश में किसानों को लेकर ही कांग्रेस-भाजपा और अन्य राजनीतिक दलों में महासंग्राम छिड़ा रहेगा। सभी दलों का मकसद अधिक से अधिक किसानों का समर्थन जुटाना होगा और जिसकी बात किसान के गले उतर जायेगी वही अगले पांच साल के लिए प्रदेश की सत्ता पर काबिज हो जायेगा। प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने के 10 दिन के भीतर किसानों का कर्ज माफ करने का वायदा जिस अंदाज में राहुल ने किया और उसी अंदाज में जिस प्रकार से किसानों ने उसे लिया तथा सभा में मौजूद किसानों के चेहरे के जो हाव-भाव थे, उससे यह लगा कि उनके इस वायदे का असर हो रहा है। अब भारतीय जनता पार्टी की चिन्ता बढ़ना स्वाभाविक है और देखने की बात यही होगी कि प्रदेश के किसान-पुत्र मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान राहुल के इस ब्रह्मास्त्र की क्या काट खोज कर लाते हैं। कांग्रेस अब अपनी ताकत किसान-पुत्र मुख्यमंत्री की छवि को कर्जमाफी के हथियार से खंडित करने की पूरी-पूरी कोशिश करेगी। कांग्रेसजनों को राहुल ने साफ कर दिया है कि अब प्रदेश में कांग्रेस की राजनीति के दो चेहरे कमलनाथ व ज्योतिरादित्य सिंधिया ही होंगे। इस प्रकार राहुल ने यह संदेश कांग्रेसजनों को देने की कोशिश की है कि उनके एजेंडे में युवाओं के साथ-साथ अनुभवी नेताओं के लिए भी बराबर की जगह होगी।

मंदसौर में किसानों की सभा में जिस ढंग से कांग्रेस की अपेक्षा से कहीं अधिक जन-समूह आया उसने राहुल में भी जोश भर दिया और उन्होंने अपने भाषण में पहली बार किसानों के साथ ही पार्टीजनों को भी संदेश दिया। सामान्यत: यह पहला अवसर था जब कार्यकर्ताओं के साथ ही उपस्थित जन-समूह को उन्होंने कांग्रेस की सरकार बनने पर क्या हासिल होगा यह भी बताया। प्रदेश कांग्रेस चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष ज्योतिरादित्य सिंधिया का भाषण देने का अपना अलग ही अंदाज है और उनका अंदाज महफिल लूटने जैसा होता है। उनके बाद राहुल का भाषण देना और श्रोताओं से तारतम्य बनाये रखना यह बताता है कि अब राहुल भी उस अंदाज में अपनी बात कहने लगे हैं जो आसानी से जनता के दिल-दिमाग में बैठ जाये। यदि एक तरफ उन्होंने किसानों को लेकर कांग्रेस का नजरिया साफ किया तो दूसरी तरफ यह भी स्पष्ट कर दिया कि सरकार बनने की स्थिति में कामकाज में कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया की भूमिका रहेगी। कांग्रेस कार्यकर्ताओं को संघर्ष के लिए प्रेरित करते हुए उन्होंने यह भी खुलासा किया कि सत्ता में भागीदारी अब उसे ही मिलेगी जो नेता गांव-गांव घूमकर वहां की खाक छानेगा और भाजपा सरकार की हकीकत लोगों के गले उतारेगा। इस प्रकार राहुल यह साफ कर गए हैं कि अब सभी लोग एकजुट होकर भाजपा सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए कृत-संकल्पित हों और चुनावी समर में कूद जायें। ऐसा कहते हुए राहुल ने नेताओं की ओर देखा और कहा कि मैं मंच पर बैठे हुए इन लोगों से ही कह रहा हूं।

वैसे तो राहुल मंदसौर में 6 जून 2017 को पुलिस की गोली से मारे गये 6 किसानों की श्रद्धांजलि सभा में भाग लेने आये थे, लेकिन पांच माह बाद प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव का एजेंडा भी वे सेट कर गये। किसानों की समस्याओं और युवाओं में बढ़ती बेरोजगारी, महिला सुरक्षा तथा समाज के कमजोर तबकों से जुड़े मुद्दे उनके एजेंडे के अहम् हिस्से होंगे। उन्होंने यह भी साफ कहा कि सरकार बनी तो केवल किसानों के कर्ज ही माफ नहीं होंगे बल्कि किसानों पर गोली चलाने वालों को सजा भी दिलाई जायेगी। यदि यह कहा जाए तो गलत नहीं होगा कि इन्हीं मुद्दों के इर्द-गिर्द चुनावी महासंग्राम होगा। शिवराज की सर्वोच्च प्राथमिकता भी इन्हीं वर्गों के कल्याण की रही है और हाल के दिनों में उन्होंने इन्हीं को भाजपा से मजबूती से जोड़ने के लिए सरकार का खजाना खोल दिया है। किसानों के हित में सर्वाधिक योजनायें चलाने और खजाना खोल देने के बाद भी आखिर किसान आक्रोशित क्यों हैं और सड़कों पर क्यों उतरे हुए हैं इसकी काट खोजने के लिए अब भाजपा में और गहराई से चिंतन प्रारंभ हो गया है। हो सकता है आने वाले कुछ दिनों में किसानों को लेकर कुछ अन्य अहम् कदम उठाये जायें जिससे कि राहुल ने जो वायदा किया है उसका असर न्यूनतम हो सके।

कांग्रेस नेताओं की याददाश्त में वर्षों बाद कोई ऐसा जलसा हुआ होगा जिसमें एकसाथ इतनी ज्यादा भीड़ उमड़ी हो। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ का कहना है कि सरकार और प्रशासन के विरोध के बावजूद स्वस्फूर्त व स्वप्रेरणा से किसानों व युवाओं का जुटना ऐतिहासिक घटनाक्रम है। चूंकि प्रदेश कांग्रेस का निजाम हाल ही में बदल गया है इसलिए राहुल की इस यात्रा का मकसद यह भी था कि कार्यकर्ता तक यह संदेश पहुंचे कि वे इधर-उधर न भटकें क्योंकि प्रदेश में अब कांग्रेस यानी कमलनाथ व ज्योतिरादित्य ही पार्टी के चेहरे हैं। जब राहुल को अपने भाषण में कमलनाथ के नाम का उल्लेख करना जरूरी हुआ तो इसके साथ ही उन्होंने सिंधिया जोड़ा और जब सिंधिया के नाम के उल्लेख की जरूरत पड़ी तो साथ में कमलनाथ का नाम भी नत्थी कर दिया। इससे उन्होंने एक संकेत यह भी दिया कि कांग्रेस कार्यकर्ता किसी एक नेता के पिछलग्गू बनकर राजनीति न करें। राहुल ने रणनीति के तहत यह साफ कर दिया कि मैदानी चेहरे के रूप में पार्टी अब कमलनाथ और ज्योतिरादित्य पर ही दांव खेल रही है।

राहुल के कहने का अर्थ यह था कि जो जमीन पर संघर्ष करेगा उसे ही तवज्जो मिलेगी। लेकिन यदि पिछले 15-20 साल के कांग्रेस की गतिविधियों पर गौर किया जाए तो यह देखने में आया है कि नेताओं के घरों की गणेश परिक्रमा करने वालों को महत्व मिलता रहा है और जनाधार वाला कार्यकर्ता अंतत: पिछड़ गया है। क्या राहुल गांधी यह सुनिश्‍चित करेंगे कि अब ऐसा नहीं होगा जो पहले होता आया है और उन चेहरों के अलावा दीगर चेहरों को भी अहमियत मिलेगी जो कि नेताओं के इर्द-गिर्द नजर नहीं आते। यह किसी से छिपा नहीं है कि विभिन्न नेताओं के इर्द-गिर्द जिन्दाबाद के नारे बुलन्द करने वाले चेहरों की पार्टी में भरमार है। क्या इन चेहरों के इतर मैदानी पकड़ वाले कार्यकर्ताओं को लेकर नेताओं में एक राय बन पायेगी यह देखने की बात होगी। हाथ तो आपस में कई बार मिले हैं लेकिन क्या हाथ के साथ अब दिल भी मिल रहे हैं यह किसी कसौटी पर कसने के बाद ही पता चल सकेगा। वह कसौटी होगी टिकट वितरण की। कांग्रेस की एकता अक्सर टिकट के टेबल पर आकर ही छिन्न-भिन्न होती रही है। नेताओं के इर्द-गिर्द जो जिंदाबाद समूह बन गये हैं वे भी एकजुट हों और अलग-अलग नेताओं के इर्द-गिर्द न बंटे रहें, ऐसा करना भी कांग्रेस के लिए जरूरी होगा। अक्सर चुनाव के दौरान फतवे की चर्चा बहुत होती है और राहुल गांधी ने एकजुट रहने की जो अपेक्षा की है वैसे फतवेे जब तक बड़े नेता अपने कट्टर समर्थकों को नहीं देंगे तब तक मिले हुए हाथों से कोई खास फायदा नहीं होगा। अब दिल भी मिल गए हैं यह बात नीचे तक समर्थकों में पहुंच पायेगी तभी कुछ गुल खिल पायेगा। इस संदर्भ में गालिब का यह शेर काबिले गौर होगा- “हमने माना कि तगाफुल न करोगे लेकिन खाक हो जायेंगे हम तुमको खबर होने तक’’। गुटबंदी कांग्रेस में स्थायी भाव रही है और कई नेता यह दलील देते हैं कि यही पार्टी की असली ताकत है, जबकि यही कांग्रेस की हार की एक अहम् वजह रही है। कांग्रेस में इन दिनों एकता का राग अलापा जा रहा है और एकजुट करने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह काफी मशक्कत भी कर रहे हैं। गुटबंदी को ताकत समझने वालों के लिए बशीर बद्र का यह शेर मौजूं है- “दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे, जब कभी हम दोस्त हो जायें तो शर्मिन्दा न हों।’’

राहुल गांधी के कर्जमाफी के ऐलान और सभा के तुरन्त बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने चुटकी लेते हुए कहा कि राहुल बाबा मंदसौर में सिर्फ घड़ियाली आंसू बहाने आये हैं। कांग्रेस भी अब वार पर पलटवार करने में पीछे नहीं रहती और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने तत्काल कहा कि हम घड़ियाली आंसू बहाने नहीं किसानों के आंसू पोछने मंदसौर गये थे, हम वोटों की नहीं आपके झूठ की फसल काटने आये थे।

 

सम्प्रति-लेखक श्री अरूण पटेल अमृत संदेश रायपुर के कार्यकारी सम्पादक एवं भोपाल के दैनिक सुबह सबेरे के प्रबन्ध सम्पादक है।