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नजरबंदी के बीच स्विस बैंक में कैसे पहुंचे 7000 करोड़ ?-उमेश त्रिवेदी

उमेश त्रिवेदी

भारत के राजनीतिक अखाड़े में काले धन के बारे में स्विस बैंक की एक रिपोर्ट को लेकर राजनेताओ में एक मर्तबा फिर से जोर-आजमाइश शुरू हो गई है। देश के वित्तीय हालात कह रहे हैं कि आर्थिक मोर्चे पर मोदी-सरकार के पांव फिसलने लगे हैं। वित्तीय प्रबंध के मामले में मोदी-सरकार दो तरफ से घिरी महसूस होती है। एक ओर, डालर के मुकाबले रूपए की गिरावट अपने न्यूनतम भावों के साथ इतिहास मे दर्ज हो चुकी है। दूसरी ओर, मोदी-सरकार की तथाकथित सख्ती के बावजूद इस साल भारतीयों ने स्विस बैंक के खातों में पिछले 13 सालों की तुलना सबसे ज्यादा पैसा जमा किया है। यह आंकड़ा 7000 करोड़ तक पहुंच चुका है। गत वर्ष की तुलना में यह राशि 50 प्रतिशत ज्यादा है। काले धन की रोकथाम के नाम पर नोटबंदी करने वाली मोदी-सरकार स्विस बैंक में जमा इस राशि को लेकर होने वाले सवालो पर बगलें झांक रही है।

कांग्रेस सहित विपक्षी दलों के पहले भाजपा के सांसद वरिष्ठ नेता सुब्रमण्यम स्वामी मोदी-सरकार के आर्थिक-प्रबंधन को लेकर तीखे सवाल दागे हैं। भ्रष्टाचार और काले धन के नाम पर नोटबंदी करने वाली मोदी-सरकार इस बात पर चुप्पी ओढ़ ली है कि ‘जब सारी दुनिया के देशों के नागरिकों व्दारा स्विस बैंक में जमा कुल राशि में महज तीन प्रतिशत का इजाफा हुआ है, वंही भारतीयों की कुल जमा-पूंजी के आंकड़े में 50 प्रतिशत की बढ़ोतरी कैसे हुई है? स्वामी ने अपने ट्वीट में कटाक्ष किया है कि – ‘ब्रेकिंग न्यूज: वित्त मंत्रालय के सचिव हंसमुख अधिया की बड़ी उपलब्धि। रहस्यमयी स्विस बैंक में दुनिया का डिपॉजिट 3 फीसदी बढ़ा है। हालांकि भारतीयों का 50 फीसदी डिपॉजिट बढ़ गया है। अधिया इससे ज्यादा भी मैनेज कर सकते थे, लेकिन ईडी ने रूकावट डाल दी…।’ स्वामी के ट्वीट से जाहिर है कि वो मोदी-सरकार की वित्तीय-नीतियों पर सीधा हमला कर रहें हैं। भारत-सरकार इस सवाल पर भी अनुत्तरित है कि विदेशों मे काले धन को जमा करने के मामले में जब विशेष अभियान चल रहा है, सरकारी अधिकारियों के आंखो मे धूल झोंकते हुए भारतीयो ने इतनी बड़ी राशि कैसे और किन माध्यमों से जमा कराई है?

स्विस बैंक में जमा इस विशाल राशि पर सवाल इसलिए लाजिमी है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 8 नवम्बर 2016 के दिन देश में नोटबंदी लागू करते हुए दावा किया था कि यह कदम देश में काले धन और भ्रष्टाचार को नेस्तनाबूद करने की नियत से उठाया जा रहा है। मोदी ने नोटबंदी की तकलीफों से उबरने के लिए जनता से 50 दिन की मोहलत मांगी थी।नोटबंदी के बाद गत डेढ़ सालों में गंगा-यमुना में काफी पानी बह चुका है। राजनीति के थपेड़े अब विश्वास के उन तटबंधों को तोड़ने लगे हैं, जिन पर मंच सजाकर प्रधानमंत्री मोदी ने विकास के आकाश-दीप उड़ाए थे। प्रधानमंत्री बनने के पहले वो कहा करते थे कि स्विस बैंको में इतना काला धन जमा है कि देश के हर नागरिक को पंद्रह लाख रूपये मिल सकते हैं। भाजपा-अध्यक्ष अमित शाह ने इसे जुमला कहते हुए खारिज कर दिया था। लेकिन यह जुमला आज भी उन पर चस्पा है।

स्विस बैंक मे जमा धनराशि का आकार इसलिए चौंकाता है कि प्रधानमंत्री मोदी ने सत्तारोहण के तत्काल बाद यह आभास दिया था काले धन के मामले में उनकी सरकार बहुत सख्त है। सत्ता के गलियारों मे काला धन और स्विस बैंक एक दूसरे का पर्याय माने जाते हैं। सारी हेराफेरी सत्ताधीशों के संरक्षण में ही होती है। 2015 की रिपोर्ट के मुताबिक देश के लगभग सभी धनपति स्विस बैंक के खातेदार थे। 200 देशों के पूंजीपतियो के सौ अरब डालर से ज्यादा रकम स्विस बैंक में जमा है। इनमे 1200 हिन्दुस्तानियों के 25 हजार करोड रूपए भी शामिल है।

राजनीति में काले धन का तिलस्म अनबुझा नहीं है। हर सत्तासीन व्यक्ति काले धन के काले जादू से वाकिफ है। यह अलादीन का चिराग है, जो चुनाव के दरम्यान सात गुफाओं में बंद खजाने के दरवाजे खोलता है। इसलिए सरकारी नुमाइंदे स्विस बैंक में जमा भारतीयों की रकम को लेकर चौंकने का चाहे जितना नाटक करें, उससे भ्रमित होने की जरूरत नही हैं। यह नूरा कुश्ती है, जो यूं ही चलती रहेगी। चुनाव होते रहेंगे, सरकारे बनती रहेंगी, बिगड़ती रहेंगी, पार्टियां जीतती रहेंगी, हारती रहेंगी, और गरीब जनता यू ही ताकती रहेगी…। और आखिर में जब कोई बकौल मोदी, अपने खाते में पंद्रह लाख रूपए जमा कराने की बात करेगा, तो उसे जुमला कह कर लौट दिया जाएगा…।

 

सम्प्रति- लेखक श्री उमेश त्रिवेदी भोपाल एनं इन्दौर से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के प्रधान संपादक है। यह आलेख सुबह सवेरे के 30 जून के अंक में प्रकाशित हुआ है।वरिष्ठ पत्रकार श्री त्रिवेदी दैनिक नई दुनिया के समूह सम्पादक भी रह चुके है।