नई दिल्ली 06सितम्बर।उच्चतम न्यायालय ने आज एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा कि समलैंगिक संबंध अपराध नहीं है।
न्यायालय ने भारतीय दंड संहिता की धारा-377 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर यह निर्णय सुनाया।उच्चतम न्यायालय ने समलैंगिक यौन संबंधों को अपराध करार देने वाली भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के दंडात्मक प्रावधान को आंशिक रूप से हटा दिया है।
न्यायालय की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने व्यवस्था दी कि 158 साल पुराने औपनिवेशिक कानून के कुछ अंश दंडात्मक प्रावधान के तहत नहीं आते।प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के उन अंशों को तर्कहीन बताया जिनके तहत सहमति से अप्राकृतिक यौन संबंधों को अनुचित ठहराया गया है।
संविधान पीठ में न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा शामिल हैं। पीठ ने धारा 377 को यह कहते हुए हटा दिया कि इससे समानता के अधिकार का उल्लंघन होता है।